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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir साप्ताहिक पत्रिका का मूल्य वार्षिक तीन रुपये था। समाचारों सूर्यादि-पंचायतन-प्रतिष्ठापद्धति - ले.-दिवाकर। भारद्वाज के अतिरिक्त धार्मिक, सामाजिक और अन्य सामयिक निबधों महादेव के पुत्र। विषय- सूर्य, शिव, गणेश, दुर्गा एवं विष्णु का भी इसमें प्रकाशन होता था। राजनैतिक कुचक्र और की मूर्तियों की स्थापना । धनाभाव के कारण आगे सन 1913 में आप्पाशास्त्री की मृत्यु सूर्यार्घ्यदानपद्धति - ले.-माधव (या महादेव) रामेश्वर के के बाद इसका प्रकाशन स्थगित हो गया। इस पत्रिका का पुत्र । ई. 16 वीं शती। आदर्श श्लोक यह था सूर्योदय- सन 1926 में भारत-धर्ममहामण्डल (वाराणसी) द्वारा "शिवपदसरसीरुहैकभृङ्गी इस मासिक पत्र का प्रकाशन आरंभ हुआ। कुछ समय के प्रियतम-भारत-धर्मजीवितेयम् । लिये इसका स्वरूप पाक्षिक था जिसका संपादन गोविन्द नरहरि मदयतु सुधियां मनांसि कामं वैजापुरकर ने दीर्घकाल तक किया। इसका वार्षिक मूल्य 5 चिरमिह सूनृतवादिनी सृवृत्तैः ।। रुपये था। प्रायः 30 वर्षों तक इस का प्रकाशन नियमित सूरसंक्रान्तिदीपिका - ले.-जयनारायण तर्कपंचानन । होता था। विभिन्न कालखण्डों में इसका संपादन विन्ध्येश्वरीप्रसाद सूर्यपंचांगम्- रुद्रयामल के अन्तर्गत भैरव-भैरवी संवाद रूप।। शास्त्री, अन्नदाचरण तर्क-चूडामणि, पंचानन तर्करन भट्टाचार्य श्लोक 612। विषय- श्री सूर्यदेव-पटल, श्रीसूर्यदेव-पूजापद्धति, और शशिभूषण भट्टाचार्य ने किया। इस पत्रिका को काशीनरेश श्रीसूर्यदेव-सहस्रनाम, श्रीसूर्यदेव-कवच तथा श्रीसूर्यदेव-स्तवराज। से आर्थिक सहायता उपलब्ध होती थी। सूर्यपटलम् - रुद्रयामलान्तर्गत । भैरव-भैरवी संवादरूप। श्लोक सूर्योदयकाव्यम् (अपरनाम खंडेश्वरी-लीलाविलासम्) - 110। विषय- कौलमतानुसार सूर्यदेव की पूजा। दो पटल हैं- ले.- हरि कवि। यह एक चम्पूकाव्य है जिसमे ज्ञानराज और प्रथम में सूर्यदेव के मंत्र और उनके विनियोग के नियम हैं अंबिका का पुत्र सूर्यसूरि का परिचय कवि ने दिया है। हरि और दूसरे पटल में (जो गद्यमय है) सूर्यपूजा पद्धति है। के पिता का नाम था अनन्त । सूर्य सूरि के चरित्र से यह सूर्यप्रकाश - ले.-हरिसामन्तराज। पिता- कष्ण। यह धर्मशास्त्र ज्ञात होता है कि उसके दादा विज्ञानेश्वर ही उसके गुरु थे। पर एक बृहत् निबन्ध है।। प्रस्तुत चम्पू में विज्ञानेश्वर और उनकी पत्नी सरस्वती के संवाद सूर्यप्रार्थना - ले.-विद्याधर शास्त्री। जयपुर निवासी। में सूर्यसूरि का चरित्र बताया गया है। बीड (महाराष्ट्र) के सुलतान अहमद के अत्याचार से आत्मरक्षा करने के लिए सूर्यशतकम् - ले.- मयूर। बाणभट्ट के श्यालक तथा मित्र। सूर्य सूरि ने अमावस्या के रात्रि में चंद्रप्रकाश प्रकट किया स्तोत्र में सूर्य की आभा, गोल, किरण, रथ, सारथि आदि था, यह अद्भुत घटना काव्य में बताई गई है। खण्डेश्वरी का वर्णन तथा रोगनिवारण शक्ति का स्तवन है। सूर्य के सूर्यसूरि की उपास्य देवता थी जिसका मंदिर चम्पावती (आधुनिक सर्वोच्च देवता होने का वर्णन है। अभिनवगुप्त तथा मम्मट नाम बीड) नगर में विद्यमान है। उस्मानिया विश्व विद्यालय द्वारा इसका उल्ख किया गया है। मयूराष्टकम् के आठ श्लोकों के संस्कृत विभागाध्यक्ष डॉ. प्रमोद गणेश लाले ने प्रस्तुत में स्त्रीसौन्दर्य की आभा तथा चित्ताकर्षण का वर्णन है। विद्वानों चम्पू काव्य की पांडुलिपि आंध्र प्रदेश मराठी साहित्य परिषद् "का मत है कि वह स्वयं मयूर की कन्या का वर्णन है। से प्राप्त की और उसका प्रकाशन नवरसमंजरी ग्रंथ के साथ सूर्यशतक के टीकाकार - (1) त्रिभुवन पाल, (2) यज्ञेश्वर एक ही ग्रंथ में सन 1979 में किया। (3) गंगाधर, (4) बालंभट्ट, (5) हरिवंश, (6) गोपीनाथ, सुवर्णसूत्रम्- ले.-पुरुषोत्तमजी। वल्लभाचार्य से 6 वीं पीढी (7) जगन्नाथ, (8) रामभट्ट, (9) रामचन्द्र। कुछ अज्ञात के वैष्णव आचार्य। आचार्य वल्लभ के पुत्र गोसाई विट्ठलनाथ टीकाकार भी हैं। द्वारा लिखित "विद्वन्मण्डन" की यह पांडित्यपूर्ण विवृत्ति है। सूर्यशतक नामक अन्य काव्य - (2) ले.-धर्मसूरि। ई. सेतु- ले.-भट्टाचार्य। निंबार्क सम्प्रदायी देवाचार्य के सर्वश्रेष्ठ 15 वीं शती। (3) ले.- पं. शिवदत्त त्रिपाठी। (4) ले.-प्रधान ग्रंथ "सिद्धान्तजाह्नवी" पर उनके शिष्य का विस्तृत व्याख्यान । वेंकप्प। (5) ले.-म.म. रामावतार शर्मा। वाराणसीनिवासी। इसका प्रथम तरंग चतुःसूत्री तक प्राप्त तथा मुद्रित। शेष भाग (6) ले.- गोपाल शर्मा । (7) ले.-श्रीधर विद्यालंकार । (8) अभी तक अप्राप्य है। ले.-राघवेन्द्र सरस्वती । (9) लिंग कवि। (10) कोदण्डरामय्या। सेतुबन्ध - ले.-भासुरानन्दनाथ दीक्षित (उपनाम भास्करराम) सूर्यसिद्धान्तसारिणी - ले.-चिन्तामणि दीक्षित। पिता- गंभीरराम भारती दीक्षित । वामकेश्वर तंत्रान्तर्गत नित्याषोडसूर्यस्तव - (1) ले.-हनुमान् (2) उपमन्यु (3) (अपरनाम शिका की टीका। श्लोक- 8126। आठ विश्रामों में पूर्ण । साम्बपंचाशिका) ले. साम्बकवि। ई.9 वीं शती। इस पर ग्रंथकार कहते हैं- जो लोग नित्याषोडशिका रूप महासागर को क्षेमराज (या राजानक) की टीका है। क्षेमराज ने नारायण पार करना चाहें, वे आठ विश्रामों से युक्त सेतुबन्ध का सहारा कृत स्तवचिन्तामणि पर भी टीका लिखी है। अवश्य लें। संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड/417 For Private and Personal Use Only
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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