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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परिवर्तों में आचारशास्त्र , शून्यतासिद्धान्त आदि विषय चर्चित सूक्तिरत्नावली- अंग्रेजी दैनिक टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रतिदिन है। 18 परितो का प्राचीनतम चीनी अनुवाद 415-426 ई. छपने वाले सुभाषितों का संस्कृत अनुवाद। 100 श्लोक। में धर्मरक्ष द्वारा संपन्न हुआ। इसके पश्चात् अनेक अनुवादों अनुवाद कर्ता प्र.दा.पण्डित, वकील जलगांव (महाराष्ट्र)। में ग्रंथ का आकार बृहत् होता गया। इस में महायान सम्प्रदाय सूक्तिसंग्रह - ले.-कुमारमणि भट्ट। ई. 18 वीं शती। के दार्शनिक सिद्धान्त अभिव्यक्त हैं। जापान में अधिपति शोकोतु सूक्तिसुन्दर - सुन्दरदेव कवि द्वारा संकलित सुभाषित संग्रह । ने इस ग्रंथ की प्रतिष्ठापना के लिये एक भव्य बौद्ध मंदिर बनाया है। ई. 17 वीं शती। इस में तत्कालीन कवियों के सुभाषित प्रभूत सुलेमच्चरितम् - ले.-श्रीकल्याणमल्ल तोमर। ग्वालियर के मात्रा में संकलित हैं। अकबर, निजामशाह, शाहजहान जैसे तोमर राजवंशीय राजा कल्याण सिंह से अभिन्न । प्रस्तुत रचना यवन राजाओं के स्तुतिपर श्लोक इनकी विशेषता है। अकबरीय की पाण्डुलिपि- गव्हर्नमेंट ओरिएण्टल मेन्युस्क्रिप्ट लायब्रेरी मद्रास कालिदास नामक कवि की अकबरस्तुति इस में समाविष्ट है में उपलब्ध है। रचना में चार पटल तथा 571 पद्य हैं। कवि जिसमें कही कहीं संस्कृत रचना में उर्दू शब्द प्रयोग भी दिखाई ने इस रचना में हजरत सुलेमान का चरित्र चित्रित किया है। देते हैं। प्रस्तुत काव्य के प्रथम पटल के क्रमांक 2 से 13 तक के सूक्तिसुधा - सन 1903 में वाराणसी से भवानीप्रसाद शर्मा पद्यों में कल्याणमल्ल को अनंगरंग के पश्चात् प्रस्तुत रचना के सम्पादकत्व में इस मासिक पत्रिका का प्रकाशन आरंभ करने की आज्ञा का विवरण है। इससे अनंगरंग तथा सुलेमच्चरित हुआ। इसके संरक्षक महामहोपाध्याय गंगाधर शास्त्री तैलंग के कर्ता श्रीकल्याणमल्ल सिद्ध होते हैं। श्री हरिहरनिवास द्विवेदी थे। पत्रिका का वार्षिक मूल्य 3 रुपये था। इसका प्रकाशन ने 'ग्वालियर के तोमर' नामक ग्रंथ में उक्त कवि कल्याणमल्ल दो वर्षों तक हुआ। इस पत्रिका में अर्वाचीन काव्य, नाटक, को कल्याणसिंह तोमर से अभिन्न माना है। चम्पू, अष्टक, दशक,शतक, गीति, तथा दार्शनिक निबन्ध एवं सुशीला(उपन्यास) - ले.- आइ. कृष्णम्माचार्य। परवस्तु समस्यापूर्ति का प्रकाशन किया गया। रंगाचार्य के पुत्र । हिन्दु स्त्री का आदर्श जीवन चित्रित। सूतकनिर्णय - ले.-भट्टोजी। लक्ष्मीधर के पुत्र । सुश्रुतम् (या सुश्रुतसंहिता) - ले.-सुश्रुताचार्य । गुरु- दिवोदास।। सूतकसिद्धान्त - ले.-देवयाज्ञिक। पाणिनि ने 'सौश्रुतपार्थिवा' का निर्देश किया है। सुश्रुत शस्त्रवैद्य सूत्रधार मंडन कृत वास्तुशास्त्र विषयक ग्रंथ- (मुद्रित) थे। इस संहिता के पांच भाग (या स्थान) हैं- (1) सूत्रस्थान, देवतामूर्ति-प्रकरण, वास्तुराजवल्लभ, प्रसादमंडन, रूपमंडन (2) निदानस्थान, (3) शारीरस्थान, (4) चिकित्सास्थान और (5) कल्पस्थान । उत्तरस्थान सहित संहिता को वृद्धसुश्रुत कहते (अमुद्रित), वास्तुशास्त्र, वास्तुमंडन, वास्तुसार और वास्तुमंजरी। हैं। लघुसुश्रुत नामक तीसरा पाठ भी प्रचलित है। शल्यतंत्र सूत्रप्रकाश- अप्पय दीक्षित। पाणिनीय सूत्रों की व्याख्या । एवं त्वचारोपण इस ग्रंथ के विशिष्ट विषय हैं। सूत्रभाष्यम् - ले.-मध्वाचार्य। ई. 12-13 वीं शती। द्वैत मत सुश्लोकलाघवम् - ले.- विठोबा अण्णा दप्तरदार। ई. 19 विषयक ग्रंथ। वीं शती। लेखक के श्लेषप्रधान सुभाषितों का संग्रह। महाराष्ट्र सूत्रवाङ्मयदर्शनम् - स्वर्गीय भारतरत्न महामहोपाध्याय डॉ. के कीर्तनकारों में विशेष प्रचलित । पांडुरंग वामन काणेजी के 103 वें जन्मदिन निमित्त भाण्डारकर सुषमा - ले.-गौरीप्रसाद झाला। सेन्ट झेवियर महाविद्यालय, .. प्राच्यविद्या संशोधन मंदिर द्वारा प्रकाशित। इस पुस्तक का (मुंबई) के संस्कृताध्यापक। स्फुट काव्यसंग्रह । संपादन, देववाणी मंदिर (मुंबई) के संचालक श्री. भि. वेलणकर ने किया है। 75 पृष्ठों के इस पुस्तक में महाराष्ट्र के ख्यातनाम सुहल्लेख - ले.-नागार्जुन। मूल संस्कृत विलुप्त। तिब्बती 15 विद्वानों के अन्यान्य विषयों के सूत्रवाङ्मय पर अभ्यासपूर्ण अनुवाद उपलब्ध । लेखक ने अपने सुहद् यज्ञश्री सातवाहन संस्कृत निबंधों का संकलन किया है। सन 1982 में प्रकाशित । को परमार्थ तथा व्यवहार की नैतिक शिक्षा इस पत्र द्वारा दी है। ईत्सिंग द्वारा भूरि प्रशंसित। उनके अनुसार इस रचना का सूत्रालंकारवृत्तिभाष्यम् - ले.- स्थिरमति। ई. 4 थी शती। अध्ययन समूचे भारत में होता था। अश्वघोष के सूत्रालंकार की वृत्ति पर भाष्य । सिल्वां लेवी द्वारा सूक्तिमुक्तावली - पुरुषोत्तम द्वारा संकलित । ई. 12 वीं शती। संपादित तथा प्रकाशित। सूक्तिमुक्तावली - ले.-गोकुलनाथ। ई. 17 वीं शती। सूनृतवादिनी - सन 1906 में विद्यावाचस्पति आप्पाशास्त्री सुक्तिमुक्तावली - ले.-विश्वनाथ सिद्धान्त पंचानन। ई. 18 वीं राशिवडेकर के सम्पादकत्व में कोल्हापुर से इस साप्ताहिक शती। पत्रिका का प्रकाशन आरंभ हुआ। इसका प्रकाशन प्रति शनिवार, सूक्तिरत्नाकर - ले.- शेषनारायण, (व्याकरण- महाभाष्य की संस्कृत चन्द्रिका कार्यालय कोल्हापुर से होता था। 1909 तक प्रौढ व्याख्या)। यह नियमित रूप से प्रकाशित होती रही। चार पृष्ठों के इस 416/ संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड For Private and Personal Use Only
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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