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आत्मानुशासनम् - ले.- गुणभद्र। जैनाचार्य। ई. 9 वीं शती (उत्तरार्ध)। आत्मानुशासनटीका - ले.- प्रभाचन्द्र। जैनाचार्य। समय- दो मान्यताएं (1) ई. 8 वीं शती। (2) ई. 11 वीं शती। आत्मार्थपूजापद्धति - श्लोकसंख्या 5000। यह शैव तंत्र का ग्रंथ है। आत्मार्पणस्तुति - ले. अप्पय दीक्षित। आत्मावलीपरिणय - प्रकरण। ले. रामानुजाचार्य । आत्मोपदेश - ले. महालिंगशास्त्री। अंग्रेजी काव्यों का अनुवाद । आत्रेय शाखा - (कृष्ण यजुर्वेद) आत्रेय एक गोत्र का नाम है। इस गोत्र वाले अनेक आचार्य हुए जिनमें दश आत्रेय गोत्र वाले, दश शुक्ल आत्रेय गोत्र वाले, तथा पांच कृष्णात्रेय वाले हुए। संभव है कि आत्रेय शाखा वाले ही कृष्ण आत्रेय कहलाते होंगे। तैत्तिरीय संहिता और आत्रेय संहिता में समानता .. अवश्य है, किन्तु कुछ भेद भी हैं। तैत्तिरिय संहिता के पदपाठकार आत्रेय ऋषि माने जाते हैं। आथर्वणतंत्रसार - ले. कटकाचार्य। आथर्वणप्रोक्त देवीरहस्यस्वरूप क्रमोपासनाप्रयोग - ले. जगन्नाथ सूरि । गुरु- भास्करराय । भावनोपनिषत् तथा भास्कररायकृत भावनोपनिषद्भाष्य के आधार पर लिखित । आदर्श - (अपरनाम भावार्थचिन्तामणि) ले.- महेश्वर न्यायालंकोर । विषय-काव्यप्रकाश पर टीका । ई. 17 वीं शती। आदर्शगीतावली - ले. जीवरामोपाध्याय। आदिकवि - ले. बुद्धदेव पाण्डेय (श. 20)। भारती 6-1 में प्रकाशित। विषय आदिकवि वाल्मीकि की कथा।।
आदिकाव्योदय (प्रकरण) - ले- महालिंग शास्त्री। तामिलनाडु-निवासी। प्रथम रचना 1932 में। परिवर्धित संस्करण 1942 में। नायक के रूप में आदिकाव्य रामायण। वाल्मीकि द्वारा लवकुश के पालन से लेकर लवकुश द्वारा रामायणगान तक की कथा है। अन्त में राम के अश्वमेध के समय लव तथा कुश प्रभंजन और जलप्लावन को शान्त करते हैं
और राम का पत्नी-पुत्रों से मिलन होता है। आदिक्रियाविवेक - ले, मथुरानाथ तर्कवागीश। आदित्यस्तोत्ररत्नम् - ले- अप्पय दीक्षित । आदिपुराणम् - (1) ले. सकलकीर्ति। जैनाचार्य। पिता- . कर्णसिंह। माता-शोभा। ई. 14 वीं शती। बीस सर्ग। (2) ले- हस्तिमल्ल। जैनाचार्य ई. 13 वीं शती।।
आदिपुराणम् - चौबीस जैन पुराणों में सर्वाधिक प्रसिद्ध पुराण। रचयिता- जिनसेन जो शंकराचार्य के परवर्ती थे। इस पुराण में प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव की कथाएं 47 पर्वो में वर्णित हैं। श्लोकसंख्या 12 हजार। इसमें जंबुद्वीप एवं उसके अंतर्गत सभी पर्वतों का वर्णन किया गया है।
आनन्दकन्दचम्पू - (1) ले.- समरपुंगव दीक्षित। इसमें कतिपय शैव साधुओं का चरित्र वर्णन किया है। (2) ले.. पं. मित्र मिश्र । ओरछा नरेश वीरसिंह देव का आश्रित । विषयबालकृष्ण की लीलाओं का वर्णन । आनन्दकल्पलतिका - ले.- महेश्वर तेजानन्दनाथ। विषयतंत्रशास्त्र। आनंदगायनम् - ले. राधाकृष्णजी। आनन्द-चन्द्रिका - (अपरनाम 'उज्ज्वल-नीलमणि-किरण) लेविश्वनाथ चक्रवर्ती। ई. 17 वीं शती। रूप गोस्वामी लिखित 'उज्ज्वलनीलमणि' पर टीका।
आनन्दचन्द्रिका - सन् 1923 में बंगलोर से कारूपल्लि शिवराम के सम्पादकत्व में इस पत्रिका का प्रकाशन आरंभ हुआ। यह पत्रिका अधिक काल तक नहीं चल पायी।
आनन्दतन्त्रम् - श्लोक-संख्या 1913। यह देवी और कामेश्वर संवादरूप ग्रन्थ 20 पटलों में पूर्ण है। विषय- लिंगरहस्य और शक्ति की अर्चा। शक्ति-पूजा का विस्तृत विवरण 15 पटलों तक है। अन्तिम पांच पटलों मे जातिभेद का निषेध एवं विविध दर्शन शास्त्रों तथा तान्त्रिक दर्शनों का विवेचन किया गया है। दक्षिण भारत में इसका अधिक प्रचार है। प्रथम पटल की पुष्पिका से ज्ञात होता है कि यह नित्याषोडशिकार्णवतन्त्र के अन्तर्गत भगमालिनी संहिता का एक अंश है। नित्याषोडशिकार्णव तन्त्र की श्लोकसंख्या परंपरा के अनुसार बत्तीस करोड मानी (?) है और तदन्तर्गत भगमालिनी संहिता की श्लोकसंख्या एक लाख। आनन्द-तरंगिणी - ले- बेचाराम न्यायालंकार। ई. 19 वीं शती । विषय- चन्द्रनगर से वाराणसी तक की यात्रा का वर्णन । आनन्द-दामोदर चम्पू - ले. भुवनेश्वर । आनन्ददीपिनी टीका - श्लोकसंख्या 800। यह 20 श्लोकी कर्पूरस्तोत्र की ब्रह्मानन्द सरस्वती कृत व्याख्या है। इसमें कालिका का मन्त्रोद्धार भी है। आनन्दबोधलहरी - श्रीशंकराचार्य विरचित। श्लोक - 30। यह जीवन्मुक्तानन्द-तरंगिणी के नाम से प्रसिद्ध है। आनंदमंगलम् - ले- भारतचन्द्र राय। ई. 18 वीं शती। आनन्द-मन्दाकिनी- ले. मधुसूदन सरस्वती। ई. 16 वीं शती। स्तोत्र-संग्रह। आनन्दमयी पूजा - विषय- आनन्दमयी की कौलाचारसंमत गुप्त तांत्रिक पूजा जिस को जानकर उत्तम साधक शिवसायुज्य को प्राप्त होता है। इसमें रुद्रयामल, लिंगागम, कुलार्णव, कुलसार आदि तंत्र-ग्रन्थ उल्लिखित हैं। आनन्दमहोदधि - ले.- रूपगोस्वामी। ई. 16 वीं शती। श्रीकृष्ण विषयक काव्य। आनन्द-संजीवनम् - ले.- मदनपाल ।
26/ संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड
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