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में शूद्र का क्षत्रिय कर्म करना, चित्रांगद के प्रति ब्राह्मणों का शाप तथा बगलामंत्र जप की महिमा बगलामंत्र के ग्रहण मात्र से कायस्थों का ब्राह्मण होता है, आदि बातों का वर्णन है। केवल इसके 35 वें पटल को पढने और सुनने से मनुष्य सफल-मनोरथ हो जाता है और बगला देवी की स्तुति कर कालीविग्रह बन जाता है इत्यादि विषय वर्णित है। आचारसारतंत्र-(1) यह मौलिक तंत्रग्रंथ 8 पटलों में पूर्ण है। इसमें कौलाचार प्रतिपादित है। अन्य तंत्रों के समान इसमें भी श्रीपार्वतीजी के महाचीनाचार पर शिवजी से प्रश्न करने पर उन्होंने वसिष्ठजी का वृतान्त कहा। वसिष्ठजी ने श्रीतारादेवी को प्रसन्न करने के निमित्त कामाख्या योनिमण्डल में 10 वर्ष तक उनकी आराधना की, किन्तु ताराजी का अनुग्रह उन्हें प्राप्त नहीं हुआ। पिता ब्रह्माजी के सदुपदेश से वे जनार्दन रूपी बुद्ध से चीनाचार की शिक्षा लेने चीन गये। उन्होंने कौलाचार का उन्हें उपदेश दिया। उससे उन्हें सिद्धि प्राप्त हुई इत्यादि।
(2) श्लोकसंख्या 202 | विषय- कौलिकों के आधार जिसमें "संविदा" स्वीकार कर विधि, उसके शोधन के मंत्र, दूध आदि में मिला कर संविदा पीने का विशेष फल, त्रिकटु
आदि के चूर्ण के साथ घी में भूजी विजया के प्रहण का फल और माहात्म्य, सुरा के ध्यान, स्वयंभू कुसुम के शोधन, एवं पूजाविधि वर्णित हैं। आचारप्रदीप - ले.- नीलकण्ठ चतुर्धर । आचाररत्नम् - ले.- दिनकरभट्ट (ई. 17 वीं शती)। आचारसार - ले.-वीरनन्दी। जैनाचार्य। ई. 12 वीं शती। आचारादर्श - ले.- दत्त उपाध्याय। ई. 13-14 वीं शती। आचारामृतचन्द्रिका - ले.- सदाशिव दशपुत्र । आचारार्क-ले. दिवाकर । पिता- शंकरभट्ट । ई. 17 वीं शती। आचारेन्दुशेखर - ले.- नागोजी भट्ट। ई. 18 वीं शती। पिता-शिवभट्ट। माता-सती। विषय- धर्मशास्त्र। आचार्यदिग्विजय-चंपू - रचयिता- वल्लीसहाय। ई. 16 वीं शती। इसमें कवि ने आचार्य शंकर की दिग्विजय को वर्ण्य विषय बनाया है। आनंदगिरि कृत "शांकर-दिग्विजय" काव्य इस अप्रकाशित चंपू का आधार ग्रंथ है। इसकी प्रति खंडित सी है जो सप्तम कल्लोल तक ही है। यह सप्तम कल्लोल भी प्राप्त प्रति में अपूर्ण है। इस चंपू के पद्य सरल तथा प्रसादगुणयुक्त हैं। गद्य भाग में अनुप्रास एवं यमक का प्रयोग किया गया है। इस काव्य ग्रंथ का विवरण मद्रास के डिस्क्रिप्टिव कैटलाग में प्राप्त होता है। आचार्यपंचाशत् - ले.- वेंकटाध्वरि। यह वेदान्तदेशिक का स्तोत्र है। आचार्यमतरहस्यविचार - ले.- हरिराम तर्कवागीश। आचार्यविजयचंपू - रचयिता-कवि-तार्किकसिंह वेदांतचार्य। यह
खंडितरूप में ही प्राप्त है जिसमें 6 स्तबक हैं। इस चंपू काव्य में प्रसिद्ध दार्शनिक आचार्य वेदान्तदेशिक का जीवनवृत्त वर्णित है तथा अद्वैत वेदांती कृष्णमिश्र प्रभृति के साथ उनके शास्त्रार्थ का उल्लेख किया गया है। वेदांतदेशिक 14 वीं शताब्दी के मध्य भाग में हुए थे। कवि ने प्रारंभ में वेदांताचार्यों की वंदना की है। इस काव्य में दर्शन एवं कविता का सम्यक् स्फुरण परिलक्षित होता है। इसकी भाषा-शैली बाणभट्ट एवं दंडी से प्रभावित है। यह ग्रंथ अभी तक अप्रकाशित है और उसका विवरण मद्रास के डिस्क्रिप्टिव कैटलाग में प्राप्त होता है। उसमें वेदांतदेशिक की कथा को प्राचीनोक्ति कहा गया है। आतुरसंन्यासविधि - (1) ले. नारायणभट्ट। ई. 16 वीं शती। पिता- रामेश्वरभट्ट (2) ले. कात्यायन । आत्मतत्त्वविवेक - ले.-उदयनाचार्य। ई. 10 वीं शती। (उत्तरार्ध) कल्याणरक्षित के अन्यापोहविचारकारिका और श्रुतिपरीक्षा तथा धर्मोतराचार्य के अपोहनामप्रकरणम् और क्षणाभंगसिद्धि इन दोनों बौद्ध ग्रंथों का खंडन इस ग्रंथ में किया है। आत्मतत्त्वविवेक-दीधिति-टीका - ले.- गुणानन्द विद्यावागीश। आत्मतर्कचिंतामणि - ले.- निजगुणशिवयोगी। समय ई. 12 वीं से 16 वीं शती तक माना जाता है। आत्मनाथार्चनविधि - इस का विषय प्रज्ञानदीपिका से लिया है। ग्रंथ 18 स्कन्धों में पूर्ण हुआ है। यह तांत्रिक ग्रंथ सूत्र शैली में लिखा है। आत्मनिवेदन-शतकम् - ले.- बटुकनाथ शर्मा।
आत्मपूजा - ले.- श्रीनाथ । श्लोकसंख्या 2000। 19 उल्लास । इसके आरंभिक दो उल्लासों में तांत्रिक विषयों का वर्णन किया है। इसके बाद तृतीय उल्लास से गुरु-शिष्य-संवाद के रूप में दार्शनिक विषय ही प्रचुरमात्रा में वर्णित हैं। युगानुसार शास्त्राचरण, पश्वाचार, वैष्णवाचार, शैवाचार आदि आचारभेद, शाक्ताचार, पंचतत्त्वप्रमाण, शक्तिप्रमाण, दक्षिणाचार, पंचतत्त्वकथन चक्र में जाति-भेद का अभाव, वामाचार सिद्धान्ताचार और कौलाचार। आत्मरहस्य के अधिकारी का निरूपण, ब्रह्मचैतन्य कथन, स्वात्मचैतन्य कथन, जीव और परमेश्वर का ऐक्य कथन, ब्रह्म की सर्वस्वरूपता, मायाशक्ति कथन, कारण शरीर और सूक्ष्म स्वरूप कथन। 24 तत्त्वों की उत्पत्ति, षट्चक्र निरूपण, काशीमाहात्म्य आदि विषयों का प्रतिपादन है।
आत्ममीमांसा - ले.- समंतभद्र। इसमें जैन मत के स्याद्वाद का विवेचन तथा अन्य दर्शनों की विचारपरिप्लुत समीक्षा है। आत्मरहस्यम् - ले. श्रीनाथ। अध्यायसंख्या 19। आत्मविक्रम (नाटक) - ले.- रमानाथ मिश्र । रचना सन 1953 में। राजा हरिश्चन्द्र का कथानक। अंकसंख्या पांच । सम्भवतः सन 1961 में प्रकाशित । आत्मनात्मविवेक - ले.- पद्मपादाचार्य। ई. 8 वीं शती।
संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड / 25
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