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सारभूत है। ग्रन्थकार ने इसकी रचना में लगभग 160 तंत्र गुह्यषोढा, व्यापकादि न्यासों की विधि, वैधहिंसा-विचार, रुधिरदान,
और आगम ग्रन्थों का अवलोकन कर उनसे सहायता ली है। लेपधारणादि, त्रिविध रात्रिपूजा महानिशादिनिरूपण, ब्राह्मण के ग्रन्थारंभ में सब ग्रन्थों की, तदनन्तर विषयों की सूची भी, मद्यपान आदि विधिपर विचार, प्रायश्चित्तादि चितासाधन, चिता ग्रन्थकार ने सत्रिविष्ट कर दी है। बीजवर्ण निर्णय, सृष्टि का के लक्षण, शवसाधन, पंचमुद्रा, मंत्रसिद्धि के उपाय, शक्तिकवच, क्रम, दीक्षाप्रकरण, नित्य और काम्य, दीक्षापद की निरुक्ति, लतासाधन, शक्ति के गमनागमन का विवेक, महाशंख, गुरुलक्षण, गुरुदोष, पिता, पितामह तथा अपने से न्यून अवस्था यंत्रादिविधि, वज्रपुष्पादिशोधनविधि, उग्रतारा, नीलसरस्वत्यादि के वाले से दीक्षाग्रहण का निषेध, स्वपलब्ध मंत्र की विधि, दीक्षा कवच, कौलप्रायश्चित्त, पूर्णाभिषेकादि विधि इत्यादि। में मांस आदि का नियम, समय की अशुद्धि का निरूपण, आगमसार - ले.-श्रीराम भट्टाचार्य के छठे पुत्र श्री रघुमणि । देवपर्वकथन, षट्चक्र, अष्टवर्गचक्र, नक्षत्रचक्र, तारामैत्रीविचार, श्लोकसंख्या- 3052। यह तंत्रशास्त्र में वर्णित विविध प्रकरणों अकथहादिचक्र, ऋणिधनिचक्र का दूसरा प्रकार हरचक्र, का संग्रह है। ग्रंथकार कहते हैं कि साधक धर्म, अर्थ काम उपासना-निर्णय आदि सैकडों विषय वर्णित हैं।
और मोक्ष की प्राप्ति के लिये जगन्मय जगन्नाथ को इस स्तुति आगम-प्रामाण्यम् - इस पांडित्यपूर्ण ग्रंथ में श्री वैष्णवों के से प्रसन्न करें। आधारभूत पांचरात्रसिद्धान्त की प्रामाणिकता का विवेचन किया
आगम-सारसंग्रह - (नामान्तर तत्त्वतरंगिणी) ले.- श्री.योगेन्द्र । गया है। अधिकांश विद्वानों की दृष्टि में पांचरात्र सिद्धांत वैदिक
श्लोकसंख्या- 167। इसमें केवल दो उल्लास हैं। प्रमाण रूप मत का विरोधी माना जा चुका था। यामुनाचार्य (आलवंदार)
से 20 के लगभग तंत्र ग्रंथों का उल्लेख है। विषय- सदाशिव ने अपने इस ग्रंथ में विपुल युक्तियों एवं तर्कों के दृढ आधार
की निर्गुणता, सत्त्वादि गुणों के संपर्क तक ब्रह्म का सगुणत्व, पर उस मान्यता का प्रबल खंडन किया है।
जीवध्यान प्रकार, शक्तिस्वरूप, श्रीकृष्ण आदि का प्रकृतिमयत्व,
कुलज्ञान की महिमा, कौलिकों की प्रशंसा आदि । आगमतत्त्वसंग्रह - श्लोकसंख्या- 100। यह ग्रंथ दो परिच्छेदों में पूर्ण है। प्रथम परिच्छेद में आगमों का प्रामाण्य सिद्ध
आगमोत्पत्यादि वैदिकतांत्रिक-निर्णय - रचयिता-भडोपनामक किया गया है। द्वितीय परिच्छेद में आगम-प्रमेय का संक्षेपतः
जयरामभट्टपुत्र वाराणसीगर्भज, दक्षिणाचारमत प्रवर्तक काशीनाथ । विवेचन किया गया है। ले.- तुंगभद्रा तीर निवासी मराठी
श्लोकसंख्या- 3301 ग्रंथारम्भ के श्लोकों में इसका नाम पंडित विश्वरूप केशवशर्मा। गुरु-क्षेमानन्द कल्पलतिका के
"आगमोत्पत्ति-निर्णय" कहा गया है। यह ग्रंथ केवल तंत्रों रचयिता थे। सौकायकल्पतरु के लेखक माधवानंद, क्षेमानन्द
की संख्या का ही प्रतिपादन नहीं करता, अपि तु तांत्रिक के गुरु थे। निर्माणकाल - आश्विन शुक्ल 5 कलिसंवत्सर
क्रियाओं के आवश्यक कर्त्तव्यनियमों का भी प्रतिपादन करता -4933 है। इसमें आगम तत्त्वों का विशद और उपयोगी संग्रह
है। वैदिक और तांत्रिक विभेद कैसे हुआ इत्यादि विषय विस्तार है। इसमें प्रमाण रूप से उद्धृत आगम और तंत्र के ग्रंथों
से इसमें वर्णित हैं। इस लिये इसका नाम "आगमोत्पत्यादि, की संख्या 60 के लगभग है। और तंत्र संबधित सैकड़ों
वैदिकतांत्रिक-निर्णय पड़ा। इसके प्रारम्भ में संपूर्ण आगम ग्रंथों विषय वर्णित हैं।
की संख्या बतलाते हुए, उनमें से कितने भूलोक में, कितने
स्वर्ग में और कितने पाताल में हैं यह प्रतिपादन किया है। आगमदीपिका - ले.-प्रज्ञाचक्षु गुलाबराव महाराज।
तंत्र ग्रंथ और संहिताग्रंथों की लम्बी लम्बी सूची भी दी गयी विदर्भनिवासी। 20 वीं शती।
है। आगमों की उत्पत्ति, युगधर्म, कौलिक और वैदिक आगमसंग्रह - (नामान्तर-एकजटाकल्प) श्लोकसंख्या- 4961 ।
कर्म-विचार, षोडश संस्कार, स्वप्न में उक्त द्विविध पूर्णाभिषेकविधि 16 पटलों में पूर्ण। लेखक के पिता का नाम श्रीरामकान्त ।
का प्रकार, महाविद्या के छह आनायों के प्रकार, श्रीविद्यायंत्र माता-कात्यायनी। इन्होंने बहुत तन्त्रों का अवलोकन कर तारा
के धारण की महिमा, वाममार्गियों की अंत्येष्टि क्रिया आदि के विषय में होने वाले संशयों का निवारक यह एकजटाकल्प
विषयों का विवेचन है। रचा है। विषय-तारा, उग्रतारा, एकजटा आदि के एकरूप होने पर भी नामभेद से भेद। उनके मन्त्रों में भेद । एकजटा के
अग्निवेश - कृष्ण यजुर्वेदनीय सौत्र शाखा। प्रस्तुत अग्निवेश अधिकार में प्रातःकृत्य, सहस्रार, कुण्डलिनी के अवस्थान,
सूत्र के उद्धृत वचन अनेक ग्रंथों में मिलते हैं। आदि। प्रातःकृत्य किये बिना पूजा करने में दोष, पशु और
आचमनोपनिषद - एक गौण उपनिषद्। विषय- आचमन वीर के प्रातःकृत्य में विशेष, पतित की सन्ध्याव्यवस्था, संक्रान्ति
विधि का वर्णन। आदि में वैदिक सन्ध्या का निषेध होने पर भी तांत्रिक संध्या
आचारनवनीतम् - ले.- अय्या दीक्षित। ई. 17 वीं शती । की आवश्यकता, अशौच आदि में भी तांत्रिक संध्या पूजा . आचारनिर्णय - यह हर गौरी संवाद रूप ग्रंथ 35 पटलों
आदि की कर्त्तव्यता, तांत्रिक तर्पणविधि, कामनाओं के भेद से में पूर्ण है। इसमें कायस्थों की उत्पत्ति, ब्राह्मणों के कर्त्तव्य, वस्त्र के परिमाण, पीठचिन्तन पुष्पादि-शोधन, जीवन्यास-षोढा, सुयज्ञ राजा के प्रति सुतपा नामक ब्राह्मण का उपदेश, कलियुग
24 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड
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