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(2) सन 1953 में काठमांडू (नेपाल) से श्री योगी विदेशों के समाचारों के सार प्रकाशित किये जाते थे। नरहरिनाथ और बुद्धिसागर पराजुली के सम्पादकत्व में इसका संवत्सरकल्पलता - ले.-व्रजराज (वल्लभाचार्य के पुत्र विट्ठलेश प्रकाशन प्रारंभ हुआ जो लगभग ढाई वर्षों तक चला। यह के भक्त) विषय- कृष्णजन्माष्टमी से आरम्भ कर साल भर के एक इतिहास प्रधान मासिक पत्र था, अतः इसमें प्राचीन अन्य उत्सवों का विवरण। शिलालेखों का अधिक प्रकाशन हुआ। इसका वार्षिक मूल्य संवत्सरकृत्यम् (सवंत्सरकौस्तुभ या संवत्सरदीधिति)चार रुपये था।
अनन्तदेव के स्मृतिकौस्तुभ का एक भाग। संस्कृतसाकेत - सन 1920 में महात्मा गांधी द्वारा संचालित
संवत्सरकृत्यप्रकाश - भास्करराय के यशवन्तभास्कर का एक सत्याग्रह आंदोलन की पृष्ठभूमि के अंग्रेजी शासन के विरोध
अंश। में अयोध्या से इस पत्र का प्रकाशन आरंभ हुआ। प्रथम
संवत्सरकौमुदी - ले.-गोविन्दानन्द । दस वर्षों तक इसके सम्पादक हनुमत्प्रसाद त्रिपाठी थे। बाद
संवत्सरदीधिति - अनन्तदेवकृत स्मृतिकौस्तुभ का एक अंश। में सन 1931 से 1940 तक रूपनारायण मिश्र ने तथा 1940 से 1958 तक ब्रह्मदेव शास्त्री ने इसका सम्पादन किया।
संवत्सरनिर्णयप्रतानम् - ले.-पुरुषोत्तम।। समाचार प्रधान इस पत्र में धार्मिक समाचार, उत्सवों, पर्यों
संवत्सरोत्सवकालनिर्णय - ले.-पुरुषोत्तम। यह ग्रंथ ब्रजराज की सूचना, लघु निबन्ध, कविताएं, रामायण, महाभारत के
की पद्धति को स्पष्ट करने के लिए प्रणीत हुआ है। ई. 16 वीं शती। अंश प्रकाशित किये जाते थे।
2) ले.- निर्भयराम। संस्कृतसाहित्यपरिषत्पत्रिका - सन 1918 में कलकत्ता से संवत्सरप्रयोगसार - ले.-श्रीकृष्ण भट्टाचार्य। पिता-नारायण । इस पत्रिका का प्रकाशन आरंभ हुआ। इसका प्रकाशन संस्कृत संवर्तस्मृति - जीवानन्द एवं आनन्दाश्रम द्वारा प्रकाशित । साहित्य परिषत् (168 राजादीनेन्द्र स्ट्रीट कलकत्ता -4) से
संवादसूक्त - ऋग्वेद के कुछ सूक्तों का प्रबंध काव्य, नाटक किया जाता है। यह पत्रिका नियमित रूप से प्रकाशित होती से संबध माना जाता है। ऐसे सूक्तों को "संवादसूक्त" कहा
आ रही है। प्रारंभ काल में यह पत्रिका वेदान्त-विशारद श्री ____ गया है। ऐसे सूक्तों की संख्या बीस है। इन सूक्तों के स्वरूप अनन्तकृष्णशास्त्री के सम्पादकत्व में प्रकाशित हुई। बाद के पर विद्वानों में अनेक मतभेद हैं। प्रो. ओल्डनबर्ग के अनुसार कालखंड में इसका सम्पादन श्री पशुपतिनाथ शास्त्री, संवादसूक्त के आख्यान प्रथम गद्यपद्यात्मक थे। पद्य-गद्य से महामहोपाध्याय कालीपद तर्काचार्य, क्षितीशचन्द्र चट्टोपाध्याय
अधिक सरस थे। परिणामतः गद्य भाग की बजाय पद्य ही आदि महानुभावों ने किया।
प्रधान हो गये। संस्कृतसाहित्यविमर्श - ले.-कविराज द्विजेन्द्रनाथ शास्त्री। मेरठ ये संवादसूक्त प्राचीन आख्यानों के अवशिष्ट भाग हैं। के निवासी। ई. 1956 में प्रकाशित आधुनिक पद्धति से दूसरी ओर प्रो. सिल्वां लेव्ही, प्रो. हर्टल आदि का मत है। संस्कृत साहित्य का इतिहास इस में ग्रथित किया है। उनके अनुसार प्राचीन नाटकों के अविशिष्ट भाग ही ये सूक्त संस्कृतसाहित्यसुषमा - संपादक- देवनारायण पाण्डे ।
हैं। संगीत और वाक्यों द्वारा, अभिनय के साथ यज्ञ के समय तुलसी-स्मारक विद्यालय के शास्त्री। राजापुर (बांदा) से प्रकाशित
इन्हें प्रस्तुत किया जाता था। प्रो. विंटरनिट्ज के अनुसार ये पत्रिका।
प्राचीन लोकगीत के नमुने है। इन सूक्तों में कथात्मक एवं संस्कृतसाहित्येतिहास - ले.-प्रा. हंसराज अगरवाल । लुधियाना।
रूपकात्मक इस भांति दो भागों का मिश्रण होने से आगे दो खण्डों में संस्कृत साहित्य का इतिहास ।
चलकर इनसे महाकाव्य एवं नाटकों का उदय हुआ। भारतीय
साहित्य में इस दृष्टि से इन सूक्तों का बहुत महत्त्व है। संस्कृतसौरभम् - सुभाष वेदालंकार। जयपुरवासी। ई. 20 वीं शती।
इन संवादसूक्तों में पुरुरवा-उर्वशी (ऋ. 10.95)
यम-यमीसंवाद (ऋ 10.11) एवं सरमा पणी संवाद (ऋ. संस्कृतानुशीलन-विवेक (प्रबन्ध) - ले.-ग.श्री. हुपरीकर।
10.108) महत्त्व के हैं। विषय- संस्कृत अध्यापन की पद्धति का सविस्तर विवेचन। संस्कृति - 19 नवम्बर 1961 से पुण्यपत्तन (पुणे) से पं.
संवित् - सन् 1965 से जयन्त कृष्ण दवे के सम्पादकत्व में बालाचार्य वरखेडकर के सम्पादकत्व में विजय नामक दैनिक
यह पत्रिका भारतीय विद्याभवन द्वारा मुंबई से प्रकाशित हो रही है। पत्र का प्रकाशन प्रारंभ हुआ और पन्द्रह दिनों बाद ही इसका
संविकल्प - पार्वती-शिव संवादरूप। विषय- भंग या गांजा नाम बदलकर "संस्कृतिः" रखा गया। इसका वार्षिक मूल्य
की उत्पत्ति और उनके तांत्रिक उपयोग। 15 रु. और एक अंक का मूल्य छः पैसे था। दो पृष्ठों वाले संविदुल्लास - ले.- गोरक्ष (अथवा महेश्वरानन्द) इस पत्र में राजनैतिक समाचारों के अतिरिक्त प्रादेशिक एवं संविधाहात्यम् - त्रिपुरासिद्धान्त का 15 वां कल्प। शिव-पार्वती
संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड / 403
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