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पीठाधीश्वर श्री हर्याचार्य कृष्णभक्ति शाखा में जो स्थान जयदेव के गीत-गोविंद को है, वही स्थान राम मधुरा भक्ति शाखा में प्रस्तुत गीति-ग्रंथ को प्राप्त है। इस ग्रंथ के 6 सर्ग हैं। ग्रंथ में वर्णन है श्रीराम के महारास का वर्णन है । दृष्टांत के लिये निम्न पद पर्याप्त होगा
क्रीडति रघुमणिरिह मधुसमये पश्य कुशोदरि भूपति- तनये । जानकि हे वर्धितयौवन-मानमये ।। कापि क्चुिम्बति तं कुल-बाला गायति काचिदमुं धृतताला कामपि सोऽपि करोति सहासां कलयति कांचन कामविकासाम् ।। हरि-वर्णितमिदमनुरघुवीर
निवसतु चेतसि सरसगभीरम् ।।
श्रीतत्त्वचिन्तामणि
श्लोक- 2001 श्रीतत्त्वबोधिनी ले. कृष्णानन्द । गुरु- श्रीनाथ। श्लोक2500 I पटल 15 1 विषय- गुरुस्तोत्र, कवच आदि. नित्यकर्मानुष्ठान, शिवपूजा-विधि, पूजा के आधार तथा न्यासों का विवरण साधारण पूजा, जपरहस्य, पंचांग, पुरश्चरण, ग्रहणावसर के पुरश्चरण का विवरण, होम, कुमारीपूजा, षट्चक्रविधि, शान्ति, पुष्टि, वश्य आदि पट्कर्म, शान्तिकल्पविधि, आथर्वणोक्त ज्वरशान्ति इ ।
श्रीतन्त्रम् देवी महादेव संवादरूप छह पटलों में पूर्ण श्लोक- 4251
ले. पूर्णानन्द परमहंस । गुरु- ब्रह्मानन्द ।
श्रीदामचरित (नाटक) ले. सामराज दीक्षित । मथुरा के निवासी। ई. 17 वीं शती। अंकसंख्या- पांच कथासारनायक सुदामा है। प्रमुख पात्र है दारिद्र्य तथा उसकी पत्नी दुर्मति । ये दोनों सुदाम के घर पर आतिथ्य लाभ करते हैं। पत्नी वसुमती सुदामा को कृष्ण के पास जाने के लिए बाध्य करती है। लौटने पर लक्ष्मी मिलती है। सत्यभामा और विदूषक भी श्रीकृष्ण के साथ श्रीदामपुरी आते हैं। श्रीदिव्यदम्पतिवरस्तव ले. वेंकटवरद। श्रीमुष्णग्राम (मद्रास) के निवासी। ई. 18 वीं शती ।
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श्रीधरोच्छिष्टपुष्टि ले. - प्रज्ञाचक्षु गुलाबराव महाराज । विदर्भ-निवासी । श्रीनाथादिषडानायंक्रम - ले. स्वयंप्रकाशेन्द्र सरस्वती । श्लोक
321 I
श्रीनिवासकर्णामृत ले. सिद्धान्ती सुब्रह्मण्य कवि । श्रीनिवासकाव्यम् - ले. त्र्यंबक । पिता- पद्मनाभ (क्वचित् श्रीधर निर्दिष्ट ) | श्रीनिवास कुलाब्धि - चन्द्रिका - ले. वेंकटवरद श्रीमुष्ण
ग्राम, मद्रास के निवासी ई. 18 वीं शती । श्रीनिवासगुणाकरकाव्यम् ले. अभिनवरामानुजाचार्य पितावेंकटराव कांवेंट निवासी वादिभास्करवंशीय सर्गसंख्या17। इसके प्रथम आठ सर्गो की टीका कवि ने स्वयं लिखी है तथा शेष ग्यारह सर्गों की बन्धु वरदराज ने ।
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श्रीनिवासचम्पू ले श्रीनिवास वेंकटेश के पुत्र विषय। । तिरुपति क्षेत्र के माहात्म्य का वर्णन ।
श्रीनिवासचरित्रम् ले वेकटवरद श्रीमुष्ण ग्राम, मद्रास । के निवासी। ई. 18 वीं शती ।
श्रीनिवासदीक्षितीयम् - ले. गोविन्ददास तथा श्रीनिवास । विषय रामानुजी वैष्णव आचार्य श्रनिवास मुनि की तीर्थयात्रा का वर्णन ।
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श्रीनिवासविलास (भाण)
ले. व्ही. रामानुजाचार्य ।
श्रीनिवासविलास (चम्पू)
ले.
श्रीनिवास ई. 19 वीं शती । (2) ले. वेंकटेश । (3) ले. श्रीकृष्ण । श्रीनिवास-शतकम् लेवल सुंदरशर्मा हैदराबाद (आन्ध्र) के निवासी इस भक्तिप्रधान शतक काव्य में "मकुटनियम" का पालन करते हुए तिरुपति के देवता की स्तुति है। काव्य में सर्वत्र एक ही चतुर्थपंक्ति रखना यह मकुटनियम की विशेषता है।
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श्रीनिवासामृतार्णव ले. वेंकटवरद श्रीमुष्ण ग्राम (मद्रास) । के निवासी। ई. 18 वीं शती ।
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श्रीनिवासार्चन - महारत्नम् ले शंकराचार्य गौडभूमिनिवासी श्लोक- 7771 प्रकाश-7। विषय- शिवपूजा के काल और अकाल, न्यास आदि का निरूपण करते हुए शिवपूजाविधि का प्रतिपादन । श्रीपण्डित सन् 1967 से वाराणसी में यह मासिक पत्रिका प्रकाशित हुई। काशी के प्रख्यात विद्वान् आचार्य मधुसूदन शास्त्री इसके संपादक एवं चन्द्रोदय मिश्र सहकारी संपादक थे । मधुसूदन प्रेस भदैनी, वाराणसी में इसका मुद्रण होता था। इस में मुख्यतः शास्त्रीय विषयों पर लेख प्रकाशित होते थे। - । श्रीपरापूजनम् ले. शिवयोगी चिडूपानन्द श्लोक- 9691 श्रीपालचरितम् - ले. सकलकीर्ति जैनाचार्य। ई. 14 वीं शती। पिता कर्णसिंह। माता शोभा। 7 सर्ग (2) ले. - श्रुतसागरसूरि जैनाचार्य ई. 17 वीं शती श्रीपुरपार्श्वनाथ स्तोत्रम् ले. विद्यानन्द जैनाचार्य ई. 8-9 वीं शती ।
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श्रीपुष्टिमार्गप्रकाश सन् 1893 में मुंबई से प्रकाशित वल्लभ सम्प्रदाय के इस मासिक पत्र में उक्त सम्प्रदाय के नियम और सिद्धातों का विवेचन संस्कृत- गुजराती में प्रकाशित किया जाता था। श्रीपूजारत्नमख से सत्यानन्द श्लोक 8801
संस्कृत वाङ्मय कोश ग्रंथ खण्ड / 383