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से उपयोगी सामग्री प्रकाशित होती थी। इसका वार्षिक मूल्य केवल एक रु. था। श्रीकंठचरितम् - (महाकाव्य) ले.- मंखक। ई. 12 वीं शती। काश्मीर निवासी। श्रीकृष्ण-कौतुकम् - ले.- जीव न्यायतीर्थ । जन्म- 1894 । कीर्तनिया परम्परा का रूपक। "प्रतिभा" 8-1- में प्रकाशित। सारस्वत उत्त्सव पर अभिनीत। गद्यांश अल्प, गीतितत्त्व का बाहुल्य। कथासार- राधा की ननदें जटिला तथा कुटिला राधा-कृष्ण के संबंध को लेकर राधा पर आरोप लगाती हैं। अन्त में राधा कृष्णरहस्य का उद्घाटन करती है कि कृष्णजी बाहर नहीं, हृदय में मिलते हैं। श्रीकृष्ण-गद्यसंग्रह - ले.- पं.- कृष्णप्रसाद शर्मा घिमरे।। काठमांडू, नेपाल के निवासी। समय- 20 वीं शती। श्रीकृष्ण पद्यसंग्रह भी आपने लिखा है। श्रीकृष्णचरितामृतम् नामक आपका महाकाव्य दो खंडों में प्रकाशित हुआ है। आपकी कुल 12 रचनाएं प्रकाशित हैं और आप कविरत्न एवं विद्यावारिधि उपाधियों से विभूषित हैं। श्रीकृष्णचन्द्राभ्युदयम् (नाटक)- ले.- म.म.शंकरलाल। रचनाकाल- सन 1912। प्रथम प्रयोग मोरवीनरेश व्याघ्रजित् की आज्ञा से। अंकसंख्या-पांच। कृष्ण की शिवभक्ति दर्शाना प्रमुख उद्देश्य है। छायातत्त्व का प्राधान्य । अनेक घटनाएं परंतु उनमें सुसूत्रता नहीं है। गायन तथा वादन का प्रचुर प्रयोग। कौटुंबिक शिष्टाचार तथा कुटुम्ब-स्त्रियों में परस्पर सौहार्द की शिक्षा इसमें दी गई है। कथासार- कृष्ण की पत्नी जाम्बवती इच्छा प्रकट करती है कि सभी पत्नियों को समान संख्या में पुत्रोत्पत्ति हो। अतः कृष्ण शिव की आराधना करते हैं। शिवजी प्रत्येक पत्नी को दस पुत्र तथा एक कन्या पाने का वर देते हैं। पुत्रोत्पत्ति का उत्सव मनाया जाता है, परंतु रुक्मिणी के पुत्र को शम्बरासुर हरण कर ले जाता है। जाम्बवती का पुत्र साम्ब के विवाह पर भी जाम्बवती म्लान है, क्यों कि रुक्मिणी का खोया हुआ पुत्र मिलने तक वह प्रसन्न नहीं हो सकती। अन्त में शिव प्रकट होकर कामदहन की घटना बताते हैं और रति ने किस प्रकार काम को पुनः प्राप्त किया वह प्रसंग सुनाते हैं। रहस्योद्घाटन होता है कि यही कामदेव रुक्मिणी का खोया पुत्र है। शंकरजी कृष्ण को चक्र प्रदान करते हैं। श्रीकृष्णचरितम् - गद्य रचना। ले.- कविशेखर राधाकृष्ण तिवारी। सोलापुर (महाराष्ट्र) के निवासी। श्रीकृष्णचरितम्- ले.- पं.- शिवदत्त त्रिपाठी। ई. 19-20 वीं शती। भागवत के आधार पर 134 स्तबकों का ग्रंथ है। दण्डी आदि पूर्वसूरियों का अनुकरण, इसमें दीखता है। श्रीकृष्णचरितामृतम् - ले.- पं. कृष्णप्रसाद शर्मा घिमिरे। ई. 20 वीं शती। काठमांडू (नेपाल) के निवासी। यह बृहत्काय
महाकाव्य दो खंडों में प्रकाशित हुआ है। इसके रचयिता कविरत्न और विद्यावारिधि उपाधियों से विभूषित हैं। आपकी 12 रचनाएं प्रकाशित हैं। श्रीकृष्ण-चैतन्यम्-ले.- अमियनाथ चक्रवर्ती । ई. 20 वीं शती। श्रीकृष्णजन्म-रहस्यम् (रूपक) ले.- श्रीकान्त गण। ई. 18 वीं शती। अंकसंख्या-दो। गीतात्मक संवादों द्वारा कृष्णजन्म की कथा प्रस्तुत। प्रयाग से प्रकाशित । श्रीकृष्णतन्त्रम् - गोशालाकल्पान्तर्गत, श्लोक-59201 विषयज्येष्ठातंत्र, नागबलिकल्प, तृणगर्भाविधि, शक्तिदण्डबलि । सर्पबलि, कुबेरकल्प और श्रीकृष्णतन्त्र इ. । श्रीकृष्ण-दौत्यम् - ले.- भास्कर केशव ढोक। "भारती" पत्रिका में प्रकाशित लघु नाटक। नान्दी है, किन्तु प्रस्तावना तथा भरतवाक्य का अभाव। श्रीकृष्णद्वारा पाण्डवों के दौत्य की कथावस्तु। श्रीकृष्णनृपोदयप्रबन्धचम्पू - ले.- कुक्के सुब्रह्मण्य शर्मा। मैसूरनरेश का चरित्र। श्रीकृष्णप्रयाणम् - ले.- विद्यावागीश। ई. 18 वीं शती । कृष्णदौत्य की कथा। संवाद संस्कृत में, गीत असमी में रागनिविष्ट। अंकिया नाट कोटि की रचना । श्रीकृष्णभक्तिचंद्रिका - ले.- अनन्तदेव। ई. 16 वीं शती। प्रथम अभिनय पण्डितों की सभा में। समाज को रोचक ढंग से उपदेश देने वाली नाट्यकृति। लेखक ने इस कृति को नाटक कहा है, परंतु पंच सन्धियां, पंच अवस्थाएं तथा कम से कम पांच अंक आदि नियमों का पालन इसमें नहीं हुआ है। अंत में भरतवाक्य भी नहीं। प्रारम्भ में शैव तथा वैष्णव अपने अपने देवता की महत्ता प्रतिपादन करते हुए, दूसरे की निन्दा करते हैं। दोनों का शास्त्रार्थ चलता है, इतने में अभेददर्शी महावैष्णव वहां आकर युक्तियों से उन्हें उपदेश देता है कि, वस्तुतः वे दोनों (शिव-विष्णु) एक ही हैं। फिर मंच पर शाब्दिक एवं तार्किक आते हैं। उनमें वाद-प्रतिवाद चलता है जिसे सुनकर एक मीमांसक वहां आकर कहता है कि तुम दोनों से तो हम मीमांसक श्रेष्ठ हैं। तीनों में ठन जाती है, इतने में एक श्रीकृष्ण-भक्त आकर उन्हें समझाता है कि कृष्ण ही परब्रह्म है। तभी वेदान्ती भी वहीं उपस्थित होता है। परंतु श्रीकृष्णभक्त उन सब को समझाकर भक्ति की महिमा को मनवाने में सफल होता है। कृष्ण की विश्वात्मकता से प्रभावित होकर अभक्त भी भक्त बन जाते हैं। श्रीकृष्णलीला - (नाटिका) ले.-बैद्यनाथ। ई. 18 वीं शती (पूर्वार्ध)। महाजनक देव के आदेश से लक्ष्मीयात्रोत्सव में अभिनीत। राधा-कृष्ण तथा विजयनन्दन और चन्द्रप्रभा का परिणय वर्णित। श्रीकृष्णलीला-तरंगिणी (संगीत-काव्य) - ले.- श्री.
संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड / 381
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