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शूद्रकमलाकर - (या शूद्रधर्मतत्त्व) ले. कमलाकरभट्ट। संविधान। छोटे छोटे गेय छन्द। अनुप्रासों का प्रचुर प्रयोग। शूद्रकुलदीपिका - ले.- रामानन्द शर्मा । विषय- बंगाल के भव्य चरित्र-चित्रण। विदूषक नहीं, फिर भी हास्य रस का पुट कायस्थों के इतिहास एवं वंशावली का विवेचन ।
है। कथासार- शिवपुत्र स्कन्द देवताओं का नेतृत्व करते हुए शूद्रकृत्यम् - (अपर नाम -श्रुतिकौमुदी) ले.- मदन पाल।
असुरों को परास्त कर दानव-राज शूर को मयूररूप में वाहन शूद्रधमोद्योत- ले.- दिनकरभट्ट। लेखक के दिनकरोद्योत का
बनाते हैं और इन्द्र की कन्या देवसेना से विवाह करते हैं। यह एक अंश है। पुत्र गागाभट्ट ने ग्रंथ पूर्ण किया।
"शूरमयूर" का अभिप्राय- शूर नामक दानव का मयूर बन जाना। शूद्रपंचसंस्कारविधि - ले.- कश्यप।
शूर्पणखाप्रलाप-चम्पू - ले.- नारायण भट्टपाद । शूद्रपध्दति . ले.- कृष्णतनय गोपाल (उदास विरुदधारी)
शूर्पणखाभिसार - ले.- डॉ. वीरेन्द्रकुमार भट्टाचार्य। संस्कृत विषय- शूद्रों के 10 संस्कार। इस बृहत् ग्रंथ में- गर्भाधान,
प्रतिभा में प्रकाशित गीतिनाटय। दृश्यसंख्या- पांच। गद्य तथा पुंसवन, अनवलोभन, सीमन्तोन्नयन, जातकर्म, नामकरण, निष्क्रमण,
प्राकृत का अभाव। नृत्यगीतों से भरपूर। शूर्पणखा की राम अन्नप्राशन, चूडाकर्म, विवाह एवं पंचमहायज्ञों का विवरण किया
तथा लक्ष्मण से प्रणययाचना और लक्ष्मण द्वारा छल से उसे है। मयूख एवं शुद्धितत्त्व का उल्लेख है।
विरूप करना वर्णित है। कहीं कहीं उत्तान वर्णन है। 2) अविपाल। पिता-देहणपाल। ई. 15 वीं शती। यह ग्रंथ
शूलपाणि शतकम् - ले.- कस्तूरी श्रीनिवास शास्त्री। राजमहेन्द्री सोम मिश्र के ग्रंथ पर आधारित है।
में प्राध्यापक। शूद्रविवेक- ले.- रामशंकर।
शूलिनीकल्प - श्लोक- संख्या- 200।
शूलिनीस्तोत्रम् - आकाशभैरव कल्प के अन्तर्गत, उमाशूद्र-श्राद्धपद्धति- ले.- रामदत्त ठक्कुर ।
महेश्वर संवाद रूप। श्लोक- 28401 29 अध्यायों में पूर्ण । शूद्रसंस्कारदीपिका- ले.- गोपालभट्ट। कृष्णभट्ट के पुत्र ।
विषय शूलिनी देवी का मंत्र, प्राणबीज, शक्तिबीज, नेत्रबीज, शूद्राचार - केवल पुराणों के उद्धरणों का संग्रह।
श्रोत्रबीज, जिह्वाबीज, महावाक्य, मंत्रगायत्री, अकारादि 50 वर्ण, शूद्राचारचिन्तामणि- ले.- मिथिला नरेश हरिनारायण के
दिक्पालबीज आदि मंत्रों के 10 अंग, जपमन्त्र, स्तोत्र पूजाविधि सभापंडित।
आदि। शूद्राचारपद्धिति - ले.- रामदत्त ठक्कुर ।
शृंगारकलिका (खंडकाव्य) - ले.- राय भट्ट । शूद्राचारविवेकपद्धति - ले.- गौडमिश्र ।
शृंगारकुतूहलम् - ले.- कौतुकदेव। विषय- कामशास्त्र । शूद्राचारशिरोमणि - ले.- कृष्ण शेष। पिता- नृसिंह शेष ।
शृंगारकोश (भाण) - ले.- गीर्वाणेन्द्र दीक्षित । ई. 17 वीं (गोविंदार्णव के लेखक) पिलानी नरेश के अनुरोध से लिखित ।
शती (उत्तरार्ध)। रचना काशी में। प्रथम अभिनय वरदराज
के वसन्तोत्सव यात्रा के अवसर पर। उद्देश वेश्याप्रेमियों की शूद्राचारसंग्रह - ले.- नवरंग सौन्दर्यभट्ट।
पतनोन्मुख प्रवृत्ति का प्रदर्शन। इसका नायक शृंगारशेखर अपने शूद्राह्निकाचार - ले.- श्रीगर्भ । सन् 1540-41 में लिखित । पूरे दिन की वैशिक चर्चा का प्रस्तुतीकरण करता है। शूद्राह्निकाचारसार - ले.- यादवेन्द्र शर्मा। पिता- वासुदेव।। शृंगारकोश - ले.- रमणपति। गौड के राजकुमार रघुदेव की आज्ञा से लिखित ।
शृंगारकौतूहल - कवि- लालामणि। शूद्रोत्पत्ति - कृष्ण-शेष कृत शूद्राचारशिरोमणि में उल्लिखित । शृंगारतटिनी - ले.- भट्टाचार्य। (2) ले. रामदेव। शून्यतासप्तति - ले.- नागार्जुन। विषय- माध्यमिक कारिका शृंगारतरंगिणी (भाण) - ले.- श्रीनिवासाचार्य। ई. 19 वीं के सिद्धान्तों का समर्थन । कारिका-70। वसुबन्धु की परमार्थसप्तति शती। तथा ईश्वरकृष्ण की सांख्यसप्तति के लिये यह आदर्श प्रतीत शृंगारतिलकम् - ले.- रुद्रट। तीन भागों में। इस में श्रव्य होती है।
काव्य में रस प्रादुर्भाव कैसा होता है यह स्पष्ट किया है। शूरजनचरितम् - ले.-चन्द्रशेखर। ई. 17 वीं शती (प्रथम इसके बाद के लेखकों ने इसका प्रभूत मात्रा में तथा सादर चरण) अकबर के समकालीन युवराज शूरजन की जीवनी का उल्लेख किया है। इस पर हरिवंशभट्ट के पुत्र गोपालभट्ट ने चित्रण । सर्गसंख्या -बीस । ऐतिहासिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण काव्य। रसतरंगिणी नामक टीका लिखी है। शूरमयूरम् (रूपक) - ले.- नारायण शास्त्री। 1860-1911। शंगारतिलकम् (भाण) - ले.- रामभद्र दीक्षित। ई. 17 सन 1888 ई. में प्रकाशित। प्रथम अभिनय कुम्भेश्वर मन्दिर वीं शती। कम्भकोणम निवासी। प्रथम अभिनय मदरै में कृत्तिका महोत्सव के अवसर पर। अंकसंख्या- सात। परिणय के महोत्सव के अवसर पर । नायक भुजंगशेखर का कथावस्तु शंकर संहिता से गृहीत। प्रधान रस वीर। कुशल कतिपय वेश्याओं के साथ अनंगव्यापार इस भाण में दिखाया
संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड/373
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