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गया है। कुलागंनाओं के साथ भी प्रणयव्यापार वर्णित है जो पूर्ववर्ती भाणों में नहीं पाया जाता। कहते हैं कि वरदाचार्य के शंगारतिलक भाण की प्रतिद्वन्दिता में यह भाण सन 1693 में लिखा गया। 2) ले. अविनाशी स्वामी। ई. 19 वीं शती। 3) ले. कालिदास । लघुकाव्य। 4) ले. गागाभट्ट । शृंगारदर्पण - ले.- पद्मसुन्दर । शृंगारदीपक (भाण) - ले.-विज्ञमूरि राघवाचार्य। ई. 19 वीं शती। (उत्तरार्ध)। कांचीपुरी में श्रीदेवराज की यात्रा के अवसर पर अभिनीत । नायिका शृंगारचन्द्रिका का विट रसिकशेखर के साथ, अनंगशेखर की सहायता से समागम वर्णित । कांजीवरम् और श्रीरंगम् का समसामयमिक वर्णन इसमें है। शृंगारदीपिका (भाण)- ले.- वेंकटाध्वरी। शृंगारनायिकातिलकम् - ले.- रंगनाथाचार्य । शंगारनारदीयम् (प्रसहन) - ले.- महालिंगशास्त्री। रचना1938 में। लम्बे गीत तथा एकोक्तियां। देवीभागवत की नारदकथा पर आधारित। मूल कथा में नाट्योचित परिवर्तन किया है। शृंगारप्रकाश - ले.- भोजदेव। अलंकार शास्त्र की बृहत् रचना। इस रचना का हेमचन्द्र शारदातनय ने बडा आधार लिया है। 36 अध्याय (प्रकाश)। प्रथम आठ अध्यायों में व्याकरण के वैशिष्ट्य तथा वृत्ति का विवेचन है, नौ और दस वें अध्याय में काव्य के गुण, दोष (भाषा तथा कल्पना पर आधारित)। ग्यारहवां अध्याय महाकाव्य की तथा बारहवां नाटक की चर्चा करता है। शेष चौबीस भागों में रस की निष्पति, परिपोष आदि की चर्चा है रसों में शृंगार को प्राधान्य दिया है। शृंगारमंजरी - ले.- शाहजी। तंजौर नरेश। विषय- साहित्य और रति शास्त्र। 2) ले.- राममनोहर। 3) ले.- मानकवि। 4) ले.- केरलवर्मा। ई. 19 वीं शती। त्रावणकोर नरेश। यह भाण है। 5) शृंगारमंजरी (सट्टक) - ले.-विश्वेश्वर पांडेय। ई. 18 वीं शती। पाटिया ग्राम (जि. अल्मोडा) के निवासी। बाबूलाल शुक्ल द्वारा वाराणसी में प्रकाशित। शृंगारमंजरी शाहराजीयम् (नाटक) - ले.- पेरिय अप्पा दीक्षित । ई. 17 वीं शती। (उत्तरार्ध)। प्रथम अभिनय तिरुवायूर में भगवान् पंचनदीश्वर के चैत्रमहोत्सव के अवसर पर। दस अंक, प्रधान रस-शृंगार। शिखरिणी वृत्त का बहुल प्रयोग। कथासार- शाहजी स्वप्न में देखी हुई सुन्दरी का चित्र बनाते हैं। ज्योतिषी बताते हैं कि यह सिंहल की राजकुमारी शृंगारमंजरी है। सिंहल प्रदेश पर सिन्धुद्वीप का राजा आक्रमण करता है,
तो शाहजी सिंहल की सहायतार्थ वहां पहुंचते हैं। वहा नायकनायिका में प्रेम पनपता है, परंतु महारानी इसमें रोडा अटकाती है। अन्त में महारानी को मनाकर राजा उससे अनुमति पा लेता है और शृंगारमंजरी के साथ राजा का विवाह हो जाता है। शृंगारमाला - ले.- सुकाल मिश्र। ई. 18 वीं शती। शृंगारसौंदर्य - ले.- राम। पिता- रामकृष्ण। शृंगारशतकम् (खण्डकाव्य) - ले.- भर्तृहरि। इनके तीनों शतक बहुत समय से जनता में समादृत हैं। इनमें मनुष्य मात्र को सुचारु रूप से जीवन यापन करने लिये उपदेश परक मार्गदर्शन है। भाषा ओघवती, मधुर तथा प्रसादमयी है। प्रत्येक श्लोक स्वतंत्र कल्पना है। कीथ जैसे पाश्चात्य विद्वानों को विश्वास नहीं होता कि ये तीनों शतक एक ही व्यक्ति लिख सकता है। उनका मत यह है कि इसमें भर्तृहरि ने अपने श्लोकों के साथ विशेषकर शृंगारशतक में अन्य रचनाओं का संकलन किया है। वर्तमान प्रतियों में प्रक्षेप अवश्य पाए जाते हैं, पर वह सहजता से पहचाने जाते हैं। तीनों शतकों के अधिकांश श्लोक भर्तृहरि के ही हैं। 2) ले.- व्रजलाल। 3) ले.- जर्नादन। 4) ले.- नरहरि । 5) ले.- तेनोभानु। 6) ले.- नीलकण्ठ।।
शृंगारशेखर (भाण) - ले.- सुन्दरेश शर्मा । प्रथम अभिनय तंजौर में बृहदीश्वर के वसन्तोत्सव के अवसर पर। हास्य प्रधान रचना। शृंगार-सप्तशती - ले.-परमानंद। पिता- व्रजचन्द्र। रचना ई. 1869 में। शृंगारसरसी - ले.- भावमिश्र । शृंगारसर्वस्वम् (भाण) - ले.- अनन्त नारायण। श. 18 वीं शती। प्रथम अभिनय केरल के जमोरिन मानविक्रम की अध्यक्षता में मायक महोत्सव में, सन 1743 ई. में। शृंगारसर्वस्वम् - रचयिता- नल्ला दीक्षित (भूमिनाथ) भाण कोटि की रचना। लेखक द्वारा बीस वर्ष से कम अवस्था में रचित। भाणोचित वैदर्भी शैली। अनंगशेखर नामक विट की एक दिन की चरितगाथा वर्णित । वेश्याओं के साथ कुलवधूओं के जारकर्म भी वर्णित। शृंगारसार - ले.-चित्रधर। 7 पद्धति (अध्याय)। नृत्य और संगीत के साथ कामशास्त्रीय विषय की चर्चा । 2) ले.- कालिदास। शृंगारसारसंग्रह - शम्भुदास । शृंगारसुधाकर (भाण) - ले.- रामवर्मा। 1757-1765 ई. । त्रिवेंद्रम में पद्मनाम के चैत्रौत्सव में प्रथम अभिनीत। मित्रों के अनुरोध पर रचना हुई है। कथासार - नायक माधव नामक विट की भेंट शृंगारशेखर से होती है, जो रतिरत्नमालिका नामक वेश्या पर आसक्त है। उन दोनों का मिलन कराने का
374/ संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड
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