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नामक शास्त्र शिव ने पार्वती को सुनाया, अतः इसे शिवस्वरोदय कहते हैं। इसमें 395 श्लोक हैं। स्वास्थ्य कैसे रखा जाये, रोग निर्मूलन, किसी प्रश्न का उत्तर कैसे ढूंढा जाये आदि अनेक गूढ विषय इस शास्त्र के अध्ययन से ज्ञात होते हैं। शिवस्वामिप्रोक्तं व्याकरणम् - ले.- शिवस्वामी वर्धमान । इसका निर्देश पतंजलि, कात्यायन के साथ करते हैं। यह उच्च कोटि का व्याकरण है। शिवाग्निपद्धति - श्लोक- 2001 शिवाजि-चरितम् (नाटक)- ले.- हरिदास सिद्धान्तवागीश। रचनाकाल-सन 1945 । अंकसंख्या- दस । उच्चस्तरीय छायातत्त्व, गीतों का बाहुल्य, लम्बी एकोक्तियों द्वारा अर्थोपक्षेपण, सूक्तियों तथा लोकोक्तियों का सुचारु प्रयोग, मंच पर शवयात्रा दिखाना, प्रस्तावना में पारिपार्श्वक का तिरंगा झंडा लेकर आना, मंच पर सर्कस दिखाना, जयन्तीदेवी द्वारा स्त्रियों की सेना की योजना आदि इसकी विशेषताएं हैं। जनता में देशप्रेम जगाना इस का उद्देश्य है। शिवाजीचरितम् (काव्य)- ले.- कालिदास विद्याविनोद । प्रस्तुत काव्य कलकत्तासंस्कृत साहित्य पत्रिका के 11 वें अंक में प्रकाशित हुआ है। शिवाजिविजयम् (प्रेक्षणक) - ले.- रंगाचार्य। संस्कृत साहित्य परिषत्पत्रिका (कलकत्ता) से सन 1938 में प्रकाशित । अंकसंख्या- दो। नांदी, प्रस्तावना, भरतवाक्य का अभाव । संवाद अत्यंत लम्बे। पद्य नहीं। शिवाजी के आगरे में बन्दी होने से साधुवेष में राजधानी पहुंचने तक का कथाभाग वर्णित। शिवाद्वैत-प्रकाशिका- ले.- भडोपनामक काशीनाथभट्ट । पिताजयरामभट्ट। विषय- धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष रूप। चतुर्विध पुरुषार्थों में मोक्ष ही परम श्रेष्ठ पुरुषार्थ है और वह आत्म-तत्त्वज्ञान के अधीन है, तथा आत्मतत्त्व का ज्ञान शिवाधीन हैं, एवं महाशक्ति की आत्मा शिव है, जिनकी पूजा मोक्ष की ओर अग्रेसर करती है। इसमें पूजा का वैदिक आकार-प्रकार निर्दिष्ट है जो तान्त्रिक पूजा के आकार प्रकार से विशिष्ट है। शिवाद्वैतसिद्धान्त - वीरशैव सम्प्रदाय का ग्रंथ। पटल-33 । पार्वती-परमेश्वर संवादरूप। विषय- लिंगधारण, शिवाग्निजनन, दीक्षाविधान, पंचाक्षरविधान, लिंगलक्षण, वीरशैव का वैशिष्ट्य
आदि। शिवानन्दलहरी - ले.- प्रा. कस्तूरी श्रीनिवासशास्त्री। शिवापराधभंजन-स्तोत्रम्- ले.- शंकराचार्य । शिवाम्बुकल्प - रुद्रायामलान्तर्गत। ईश्वर-पार्वती संवादरूप। श्लोक-125 | विषय- स्वमूत्र का पान के रूप में तान्त्रिक उपयोग, जिससे सर्वविध रोगों का विनाश कहा गया है। शिवाम्बुविधिकल्प - श्लोक-1801 विषय- स्वमूत्रपान का महत्त्व।
शिवाराधनदीपिका - ले.- हरि। श्लोक-1500 । शिवार्कोदय - ले.- गागाभट्ट। ई. 17 वीं शती। पितादिनकर भट्ट। जैमिनीय पूर्वमीमांसा पर शबरस्वामी के भाष्य का कुमारिलभट्ट द्वारा छन्दोबद्ध विवरण अपूर्ण (केवल प्रथम अध्याय का प्रथम पाद) होने से शिवाजी महाराज की सूचना पर लेखक द्वारा विवरण कार्य प्रस्तुत ग्रंथ के रूप में पूर्ण किया गया। शिवार्चनचन्द्रिका - ले.- श्रीनिवासभट्ट। पिता- श्रीनिकेतन । गुरु-सुन्दरराज। श्लोक-5840। प्रकाश-16। विषय- दैनिक पूजा, पुरश्चरण, तथा गणेश, शक्ति, विष्णु, सूर्य, शिव आदि की उपासना। गुरु लक्षण, सत् और असत् शिष्यों के लक्षण । गुरु और शिष्य की परीक्षा । दीक्षा के काल आदि का निरूपण। दीक्षा के अधिकारी ब्राह्मण, क्षत्रिय आदि के विभिन्न मंत्र, वर्णसंकरों के दीक्षाधिकार का विवेचन, मंत्रों के पुल्लिंग, स्त्रीलिंग आदि लिंगों का कथन इ. । शिवार्चनदीपिका- ले.- अद्वैतानन्दनाथ। श्लोक-2000। शिवार्चनपद्धति - ले.- अमरेश्वर । शिवार्चनमहोदधि - ले.- भद्रनन्द। श्लोक-4200। शिवार्चनशिरोमणि - ले.- ब्रह्मानन्दनाथ। गुरु- लोकानन्दनाथ । श्लोक- 40001 उल्लास- 201 2) ले.- नारायणानंदनाथ । शिवालयप्रतिष्ठा-ले.- राधाकृष्ण । शिवावतारप्रबंध - ले.-व्यंकटेश वामन सोवनी। समय इ.स. 1882 से 1925 | विषय- शिवाजी महाराज का चरित्र । शिवाष्टपदी - ले.- वेङ्कप्पा नायक। मैसूरधिपति। ई. 17 वीं शती। शिवाष्टमूर्तितत्त्वप्रकाश - ले.- रामेश्वर । सदाशिवेन्द्र सरस्वती के शिष्य। शिवोत्कर्षमंजरी - ले.- नीलकण्ठ दीक्षित । ई. 17 वीं शती ।
शैव काव्य। शिशुगीतम् - ले.- डॉ. सुभाष वेदालंकार । अलंकार प्रकाशन, आदर्शनगर, जयपुर-4। शिशुगेय 30 गीतों का संग्रह । विषयराष्ट्रभक्ति। शिशुपालवधम् - गुजरात निवासी महाकवि माघ द्वारा रचित संस्कृत महाकाव्य । ई. 7 वीं सदी (उत्तरार्ध)। इस महाकाव्य में 20 सर्ग और श्लोकसंख्या-1645 है। पंद्रहवें सर्ग के प्रक्षिप्त 34 श्लोक एवं कविवंश वर्णन के 5 श्लोक मिलाकर यह संख्या 1684 होती है। युधिष्ठिर द्वारा आयोजित राजसूय यज्ञ के समय भगवान् श्रीकृष्ण द्वारा सुदर्शन चक्र से चेदिराज शिशुपाल का वध किया था, यही कथा इसमें है। संस्कृत साहित्य के पंच महाकाव्यों में इसकी गणना होती है।
माघ में कवित्व की अपेक्षा पांडित्य-भरपूर था। अंगभूत रस "वीर" है। परंतु शंगार को महाकाव्य के मध्य-भाग में
370/ संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड
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