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सम्मान में लिखा है। शिवनृत्यतंत्रम् - दक्षिणामूर्ति -पार्वती संवादरूप। श्लोक- 124। पटल-9, विषय- तांत्रिक पूज, संबंधी विविध मंत्रों का प्रतिपादन। शिवपंचाक्षरीमन्त्रपूजाविधि - ले.- नृसिंह। श्लोक- 400। शिवपंचांगम् - रुद्रयामल तन्त्रान्तर्गत। श्लोक- 509 । शिवपादकमलरेणुसहस्रम् - ले.- सुन्दरेश्वर। शिवपादस्तुति - ले.- कस्तूरी श्रीनिवास शास्त्री। शिवपुष्पांजलि - ले.- विद्याधरशास्त्री । शिवपूजनपद्धति - ले.- हरिराय । शिवपूजातंरगिणी - ले.- काशीनाथ जयराम जडे । श्लोक- 200। शिवपूजानुक्रमणी - श्लोक- 700। शिवपूजापद्धति - ले.- राघवानंदनाथ। श्लोक- 1400। शिवपूजासंग्रह - ले.- वल्लभेन्द्र सरस्वती । शिवपूजासूत्रव्याख्यानम् - ले.. रामचंद्र। पिता- पांडुरंग । गोत्र-अत्रि। विषय- बोधायन सूत्र की शिवपरक व्याख्या । शिवप्रतिष्ठा - ले.- कमलाकर। शिवप्रसादसुन्दरस्तव - ले.- शंकरकण्ठ। श्लोक- 108 । शिवबोधज्ञानदीपिका - ले.- नवगुप्तानन्दनाथ । श्लोक- 38 । शिवभक्तानन्दम् - ले.- बालकवि। शिवभक्तिरसायनम् - ले.- भडोपनायक काशीनाथ। पिताजयराम। विषय- आदि के दो उल्लासों में शिवपूजा की विधि वर्णित। तीसरे उल्लास में देवी की पूजापद्धति वर्णित । आरम्भ । में पूजक के प्रातःकृत्य निर्दिष्ट । अन्त के दो उल्लासों में देव की नैमित्तिक पूजा का वर्णन । शिवभारतम् - ले. कवीन्द्र परमानन्द। छत्रपति श्री. शिवाजी महाराज के जीवनकार्य पर रचित इस महाकाव्य के कर्ता हैं नेवासा (महाराष्ट्र) के निवासी श्री. गोविंद निधिवासकर अर्थात् नेवासकर, (उपाख्य श्री. परमानंद कवीन्द्र)। आप शिवाजी के समकालीन थे। सन 1674 में अपने राज्याभिषेक प्रसंग पर उपस्थित कवि परमानंद को शिवाजी ने कहा कि वे उनके जीवन पर एक बृहत् काव्य की रचना करें। तब श्री. परमानंद ने 100 अध्यायों की योजना करते हुए श्री. शिवाजी के चरित्र पर एक महाकाव्य की रचना करने का निश्चय किया किन्तु "सूर्यवंश" नामक इस नियोजित अनुपुराण ग्रंथ के 31 अध्याय एवं 32 वें अध्याय के केवल 9 श्लोक ही रचे जा सके। इस अपूर्ण ग्रंथ में शिवाजी द्वारा सन् 1661 में श्रृंगारपुर पर की गई चढाई तक का शिव-चरित्र गुंफित है। इस काव्यकृति पर शिवाजी ने श्री. परमानंद को कवीन्द्र की पदवी प्रदान की। श्री. परमानंद इस ग्रंथ को लेकर काशी गए थे। उन्होंने ग्रंथ के पहले ही अध्याय में कहा है कि काशी के पंडितों
की प्रार्थना पर उन्होंने गंगाजी के तट पर इस महाकाव्य का पाठ किया।
शिव-भारत की अधिकांश रचना अनुष्टुभ् छंद में है, किन्तु प्रत्येक अध्याय के अंतिम कुछ श्लोक, अन्य बड़े छंदों में भी आबद्ध हैं। इस वीर रस-प्रधान महाकाव्य में ओज, प्रसाद, माधुर्य आदि काव्यगुणों का दर्शन होता है।
श्री. शिवाजी द्वारा किये गये अफजलखान के वध का प्रसंग शिवभारतकार परमानंद ने पर्याप्त विस्तार के साथ चित्रित किया है। एक जनश्रुति के अनुसार अफजलखान के वध के लिये शिवाजी ने बाघ-नखों के प्रयोग की बात बताई है। तदनुसार अफजलखान के वध के पहले स्वयं देवी भवानी ने प्रकट होकर शिवाजी से कहा था
विधिना विहितोऽस्त्यस्य मृत्युस्त्वत्पाणिनामुना ।
अतस्तिष्ठामि भूत्वाहं कृपाणी भूमणे तव।। अर्थ- (हे शिव नप) ब्रह्मदेव की ऐसी योजना है कि तेरे इन हाथों से अफजलखान की मृत्यु हो। इसी लिये हे राजा, में तेरी तलवार बनी हुई हूं।
श्री. शिवाजी महाराज के जीवन-कार्यों तथा उनकी शासनव्यवस्था आदि का प्रत्यक्ष अवलोकन करते हुए ही कवीन्द्र परमानंद ने इस महाकाव्य की रचना की थी। अतः ऐतिहासिक दृष्टि से भी प्रस्तुत शिवभारत को बड़ा महत्त्वपूर्ण माना जाता है। सन 1687 में कवीन्द्र परमानंद का देहावसान हुआ। शिवमहिमकलिकास्तव - ले.- अप्पय्य दीक्षित। शिवमहिम्नः स्तोत्रम् - पुष्पदंत नामक कवि ने इसकी रचना की। इसका मूल नाम धूर्जटिस्तोत्र है। स्तोत्र का प्रारंभ "महिम्नः" शब्द से हुआ है, इसी कारण इसे महिम्नः स्तोत्र कहा गया है।
मध्यप्रदेश में ओंकारमांधाता में अमलेश्वर के मंदिर में एक दीवार पर यह स्तोत्र खुदा है। 31 वें श्लोक के बाद "इति महिम्नःस्तवनं समाप्तमिति" ऐसा उल्लेख है। इसका काल 1063 दिया गया है। __ आज उपलब्ध स्तोत्र में 43 श्लोक हैं। अर्थात् 11 श्लोकों की रचना बाद में किसी ने की है। मधुसूदन सरस्वती ने इसकी व्याख्या की है जिसमें शिव विष्णु का अभेद स्पष्ट किया है। शिवमाला - ले.- राजानक गोपाल। शिवमुक्तिप्रबोधिनी - ले.-काशीनाथ। भडोपनामक जयराम भट्ट के पुत्र। मुख्य उद्देश्य यह है कि मुक्ति ज्ञान से होती है और शिवपूजा से साधक को शक्ति प्राप्त होती है। शिवार्चनचन्द्रिका - ले.- अप्पय्य दीक्षित। शिवरत्नावली - ले.- उत्पलदेव । काश्मीरी शैवाचार्य । शिवभक्ति परक 21 स्तोत्रों का संग्रह। शिवरहस्यम् - स्कन्द-सदाशिव संवादरूप शैव तंत्र का ग्रंथ । अंश-12। विषय- शिवसहस्रनाम, काशीप्रशंसा,
368 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड
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