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शिवगीतिमालिका - ले.- चन्द्रशेखर सरस्वती । कांची-कामकोटी के आचार्य। 12 सर्ग। शिवचन्द्रिका - ले.- वासुदेव दीक्षित। श्लोक- 3500। 11 पटलों में पूर्ण। शिवचम्पू - ले.- विरूपाक्ष । शिवचरित्रम् - ले.- वादिशेखर । शिवचूडामणि - दामोदर समाधि द्वारा संगृहीत। उमा-महेश्वर संवाद रूप। 12 उल्लासों में पूर्ण।। शिवत्त्वरत्नाकर - एक श्लोकबद्ध धर्मकोश। वासवभूपाल (या बसवप्प नायक) नामक राजा ने इसकी रचना की। 1694 से 1794। केलादी प्रदेश के अधिपति। अपने पुत्र सोमेश्वर के प्रश्नों के उत्तर में प्रस्तुत ग्रंथ की रचना बसवप्प ने की। ग्रंथ में अनेक स्मृति, शैवग्रंथ, राज्यशास्त्र, संगीतशास्त्र, वैद्यकशास्त्र, पाकशास्त्र, कामशास्त्र आदि विषयों के ग्रंथों की जानकारी संकलित है। ग्रंथ के कल्लोल नामक नौ भाग हैं। ये 9 कल्लोल तरंगों में विभाजित हैं जिनकी संख्या 108 है। श्लोकसंख्या- 30 हजार है। मद्रास में वी.एस.नाथ एण्ड कं. द्वारा प्रकाशित। शिवतत्त्व-रहस्यम् - ले.- नीलकण्ठ दीक्षित। ई. 17 वीं शती। विषय- दर्शन।
शिल्पशास्त्रविधानम्- ले.- मय। शिल्पशास्त्र विषयक ग्रंथ। शिल्पशास्त्र के उपदेशक - मत्स्य पुराण में प्राचीन भारत के अठारह शिल्प शास्त्रोपदेशक बताए हैं :
भृगुरत्रिर्वसिष्ठश्च विश्वकर्मा मयस्तथा। नारदो नग्नजिच्चैव विशालाक्षः पुरन्दरः । ब्रह्मा कुमारो नन्दीशः शौनको गर्ग एव च। वासुदेवोऽनिरुद्धश्च तथा शुक्रबृहस्पती।
अष्टादशैते विख्याताः शिल्पशास्त्रोपदेशकाः ।। इन अठारह में से आज केवल भृगु, अत्रि, विश्वकर्मा, मय, नारद, गर्ग, और शुक्र के ग्रंथ मुद्रित और हस्तलिखित रूप में उपलब्ध हैं जिनके सहारे प्राचीन भारतीय वास्तुशास्त्र की जानकारी मिलती है। शिल्पशास्त्र के संदर्भ ग्रंथ - विश्वकोश, मेदिनीकोश, तैत्तिरीय आरण्यक, शतपथ-ब्राह्मण, मत्स्यपुराण, महाभारत, शेषस्मृति, अमरकोश, शिल्पदीपिका, वास्तुराजवल्लभ, भृगुसंहिता, मयमत, काश्यपसंहिता, शिल्पदीपक, कौटिलीय अर्थशास्त्र, योगवासिष्ठ, बृहत्पाराशरीयकृषि, आरामरचना, मनुष्यालयचंद्रिका, मनुष्यविद्या, ऋग्वेद, अथर्ववेद, वास्तुज्योतिष, राजरत्न, राजगृहनिर्माण, शिल्परत्न, रसरत्नसमुच्चय, युक्तिकल्पतरु, बोधायन-धर्मसूत्र, अब्धियान, वराहपुराण, मार्कण्डेय, ज्योतिश्चक्र, नौकानयन, मनुस्मृति, मानसार, धर्मसूत्र, अगस्त्यसंहिता, भरद्वाज-वैमानिक-प्रकरण, अगस्त्यमत गोभिलगृह्यसूत्र, वास्तुविद्या तैत्तिरीयब्राह्मण, युद्धजयार्णव, और वसिष्ठसंहिता। शिवकामिस्तवरत्नम् - ले.- अप्पय्य दीक्षित । शिवकाव्यम् - कवि- श्री पुरुषोत्तम बंदिष्टे। ई. 17 वीं शती। मूलतः महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के पेडगांव के निवासी। कवि ने श्री दौलतराव शिन्दे की छावनी (लष्कर) में रहकर प्रस्तुत महाकाव्य की टीका पूर्ण की।
(1) काव्येतिहास संग्रह, पुणे से ई.सं. 1885 में इस रचना के प्रथम भाग का (7 चमत्कारों का) प्रकाशन हुआ। इस का संपादन श्री नारायण काशीनाथ साने ने किया है।
(2) दूसरे भाग का (शेष 8 चमत्कारों का) प्रकाशन ई. 1887 में काव्येतिहास संग्रह पुणे के द्वारा ही किया गया है। इसका संपादन श्री जनार्दन बल्लळ मोडक ने किया है। इसमें 20 सर्ग तथा 1192 पद्य हैं। इस में शिवाजी महाराज से दूसरे बाजीराव पेशवा तक मराठा साम्राज्य का इतिहास संगृहीत है। शिवकैवल्यचरितम् - ले.-मुम्बई के प्रसिद्ध डाक्टर श्री व्यंकटराव मंजुनाथ कैकिणी, (एफ.आर.सी.एस.)। कवि ने
अपने पूर्वज साधु, करवार जिले के कैकिणी-ग्रामवासी, शिवकैवल्य का चरित्र इस काव्य में 6 उल्लासों में वर्णित किया है। शिवगीतमालिका - ले.-चण्डशिखामणि।
शिवताण्डवम् - पार्वती-ईश्वरसंवादरूप। पूर्वार्ध और उत्तरार्ध में विभक्त। पूर्वार्ध में 14 और उत्तरार्ध में 15 पटल हैं। राजा अनूपसिंह की प्रेरणा से नीलकण्ठ (पिता- गोविंदराज) ने इस पर "अनूपाराम" नामक टीका लिखी है तथा प्रेमनिधि पन्त द्वारा रचित "मल्लादर्श' और नीलकण्ठ चतुर्धर कृत टीका है। शिवताण्डवतन्त्रम् - ले.- श्रीनाथ। श्लोक- 1500। शिवताण्डवाभिनय - ले.- कामराज । शिवताण्डव पर टीका। श्लोक 3501 शिवदर्शनार्चनपद्धति - अलवर के राजा विनयसिंह के लिए प्रणीत। शिवदयासहस्रम् - ले.-नृसिंह । शिवद्युमणिदीपिका - यह दिनकरोद्योत ही है। शिवदृष्टि - ले.- शमानन्द। श्लोक- 700। अध्याय- 71 इस पर लेखक की विवृत्ति नामक टीका है। शिवधर्मशास्त्रम् - नन्दिकेश्वर प्रोक्त। विषय- दुष्ट ग्रह आदि
की शान्ति करने वाले विविध देवों के स्तवों का संग्रह। शिवधर्मोत्तरम् - शैव सम्प्रदाय का ग्रंथ। श्लोक- 9400 । शिवनारायण-भंज-महोदयम् (नाटक) - ले.- नरसिंह मिश्र । पुरुषोत्तम क्षेत्र (जगन्नाथपुरी) में प्रथम अभिनीत । "अंक' के स्थान पर “लोक" शब्द का प्रयोग। लोकसंख्या- पांच। यह तत्त्वचिन्तनात्मक नाटक कवोंझर के राजा शिव नारायण के
संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड/367
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