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शारीरक-चतुःसूत्रीविचार- ले.- बेल्लमकोण्ड रामराय। शारीरं तत्त्वदर्शनम्- ले.- वैद्य पुरुषोत्तम सखाराम हेर्लेकर। अमरावती (विदर्भ) निवासी। अनुष्टुभ् छन्दोबद्ध शरीरविज्ञान विषयक ग्रंथ। वैद्यसम्मेलन द्वारा मैसूर में स्वर्णपदक तथा प्रशस्तिपत्रक से सत्कृत। पाश्चात्य प्रणाली के भिषजों के भी उत्कृष्ट अभिप्राय इस ग्रंथ पर मिले हैं। शारीर-निश्चयाधिकार- ले.- गंगाराम दास। विषय स्त्रियों के स्वास्थ्य का विचार। शार्दुलशकटम्- ले.-डॉ. वीरेन्द्रकुमार भट्टाचार्य । संस्कृत साहित्य परिषद्, कलकत्ता से सन 1969 में प्रकाशित। इस युग की समस्याएं, हडताल आदि का वातावरण । टेलिफोन आदि साधनों का रंगमंच पर प्रयोग। अंकसंख्या- पांच। एकोक्तियों द्वारा भावसम्प्रेषण। पुलिसों का श्रमिकों के प्रति व्यवहार, दरिद्र कर्मचारियों का मदिरापान में दुख भूलना आदि का वास्तव चित्रण। नायक आदिशूर, राष्ट्रीय परिवहन संस्था के सर्वाध्यक्ष हैं। कथासार- परिवहन संस्था के कर्मचारी हडताल करते हैं। सर्वाध्यक्ष श्रमिक नेताओं से बात करके बसें शुरू करते हैं। कलकत्ता, दुर्गापूर और उत्तर बंगाल के परिवहन-अध्यक्ष को सूचना मिलती है कि फिर हडताल हुई है। यहां जिलाधीश और राज्यपाल बस-कर्मचारियों को संबोधित करने वाले हैं, निमंत्रण पत्र बंट चुके हैं। अब हडताल में यह सब विफल होगा, इस चिन्ता में सर्वाध्यक्ष आदिशूर चिन्तित हैं। हडताल में एक कर्मचारी मारा जाता है। श्रमिकों का मोर्चा राज्यपालभवन की और जाता है, परन्तु आदिशूर श्रमिकों को सुविधाएं प्रदान करने का आश्वासन देकर उनको शान्त करते हैं। अन्त में आदिशूर-विरचित संस्थागीत कर्मियों द्वारा गाया जाता है।
शास्त्रदीपिका- ले.- पार्थसारथी मिश्र । ई. 10-11 वीं। पितायज्ञात्मा। यह एक स्वतंत्र व सर्वाधिक प्रौढ कृति है। इसी के कारण इन्हें "मीमांसाकेसरी" की उपाधि प्राप्त हुई है। इस में बौद्ध, न्याय, जैन, वैशेषिक, अद्वैत, वेदांत व प्रभाकार-मत (मीमांसा-दर्शन का एक विभाग) विद्वत्तापूर्ण खंडन करते हुए, आत्मवाद, मोक्षवाद, सृष्टि व ईश्वर प्रभृति विषयों का विवेचन किया गया है। इस पर 14 टीकाएं उपलब्ध होती हैं जिनमें सोमनाथ की मयूखमालिका व अप्पय्य दीक्षित की मयूखावली नामक टीकाएं प्रसिद्ध हैं। [शास्त्रनिष्ठकाव्यानि- अनेक पंडित कवियों ने अपने काव्यों में प्रस्तुत कथावस्तु का वर्णन करते हुए जिस शब्दावली का प्रयोग किया उसमें व्याकरण तथा अलंकारशास्त्र के उदाहरण भी प्रस्तुत किये। भट्टिकाव्य से इस पद्धति को चालना मिली। इस पद्धति का अनुसरण करने वाले कतिपय काव्य ग्रंथ(1) दशाननवध - ले.- योगीन्द्रनाथ तर्कचूडामणि, व्याकरण के उदाहरण (2) रावणार्जुनीयम्, 27 सर्गो का काव्य, ले.भूम या भौमक, रावण तथा कार्तवीर्य कथा, पाणिनि की संपूर्ण अष्टाध्यायी के उदाहरण प्रयुक्त। जयादित्य की काशिका में तथा क्षेमेन्द्र के सुवृत्ततिलक में उल्लेख, 7 वीं शती, इस काव्य पर परमेश्वर की टीका है। (3) लक्षणादर्श - ले.म. म. दिवाकर, 14 सर्ग, महाभारत कथा तथा पाणिनीय नियमों के उदाहरण (4) यदुवंश- ले.- काशीनाथ, यदुवंश इतिहास तथा पाणिनीय नियमों के उदाहरण (5) पाणिनीसूत्रोदाहरणम्- ले.- अज्ञात, भागवत कथा तथा पाणिनि के नियमों के उदाहरण प्रयुक्त। (6) समुद्राहरण- ले.- नारायण । 20 सर्ग। मलबार के ब्रह्मदत्त के पुत्र। (7) वासुदेवविजय - ले.- वासुदेव। (8) धातुकाव्यम्- ले.- नारायण, भीमसेन के धातुपाठ तथा माधव की धातुवृत्ति के उदाहरण। (9) वाक्यावली- ले.- अज्ञात, 4 सर्ग, व्याकरण, अलंकार, छन्द तथा अन्य प्रकारों के उदाहरण। (10) श्रीचिह्नकाव्यम्कृष्णकथा, 12 सर्ग, प्रथम, 8 सर्गों के लेखक- कृष्णलीलाशुक। वररुचि के प्राकृत प्रकाश के उदाहरण, शेष सगों के लेखक शिष्य दुर्गाप्रसाद यति, त्रिविक्रम के प्राकृत व्याकरण के उदाहरण ।] शास्त्रमंडलपूजा - ले.- ज्ञानभूषण । जैनाचार्य । ई. 16 वीं शती। शास्त्रसारसमुच्चय टीका- ले.-माधवनन्दी। जैनाचार्य। ई. 12 वीं शती। शास्त्रसमन्वय- ले.- प्रज्ञाचक्षु गुलाबराव महाराज। विदर्भ निवासी। 20 वीं शती (पूर्वार्ध) शास्त्रसारावलि- ले.- हरिभानु शुक्ल । शास्त्रसारोद्धार- ले.- कृष्णशास्त्री होशिंग । ई. 15 वीं शती। शहाजी-प्रशस्ति- ले.- भास्कर कवि। शाहराजाष्टपदी- ले.- श्रीनिवास ।
शार्दूलशाखा (सामवेदीय)- शार्दूल-संहिता का ग्रंथ पहले कभी उपलब्ध रहा होगा, परन्तु अब उपलब्ध नहीं है।
शार्दूलसम्पात (व्यायोग) - ले.- को. ला. व्यासराजशास्त्री। विषय- विश्वामित्र द्वारा यज्ञरक्षा के लिए दशरथ के पास पुत्र राम की मांग। शालकर्मपद्धति- पशुपति कृत दशकर्मदीपिका का एक अंश । शालग्रामदानपद्धति- ले.- बाबा देव। ई. 19 वीं शती। शालग्रामपरीक्षा- ले.- शंकर दैवज्ञ।। शालग्रामलक्षण- ले.- सदाशिव द्विवेदी। शालीय शाखा (ऋग्वेद)- इस शाखा के संहिता, ब्राह्मण
और सूत्रादि ग्रंथ अभी तक अप्राप्त हैं। काशिकावृत्ति में शाखाकार ऋषियों के साथ इनका स्मरण किया है। शास्त्रदर्पण- ले.- अमलानंद। ई. 13 वीं शती। शास्त्रदीप - ले.- अग्निहोत्री नृहरि । ई. 17 वीं शती। विषयप्रायश्चित्त।
संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड / 365
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