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और उभयपदी यह क्रम रखा है। यह क्रम काशकृत्स्र धातुपाठ के अनुसार है। शब्दाम्भोजभाकर (जैनेन्द्र- व्याकरण) - ले.- प्रभाचन्द्र (जैनाचार्य)। समय- दो मान्यताएं। 1) 8 वीं शती। (2) ई. 11 वीं शती। शब्दभोजभास्करन्यास - ले.- देवनंदी। ई. 5 वीं शती। शब्दार्णव - ले.- आचार्य गुणनन्दी। ई. 10 वीं शती। जैनेन्द्रव्याकरण का व्याख्या ग्रंथ। शब्दार्थ-चिन्तामणि - कवि- चिदम्बर। रामायण- महाभारत कथापरक व्यर्थी काव्य। शब्दार्थ-रत्नम् - ले.- तारानाथ तर्कवाचस्पति (1822-1825 ई.) । इसमें व्याकरण के कतिपय सिद्धान्तों की चर्चा की गई है। शब्दार्थ-सन्दीपिका - ले.- नारायण विद्याविनोद । ई. 16 वीं
शरणागति - ले.-श्रीनिवास राघवाचार्य । शरणार्थि-संवाद - ले.- डॉ. वीरेन्द्रकुमार भट्टाचार्य । बंगला देश की स्वतन्त्रता के पश्चात् का वातावरण चित्रित । पाकिस्तानियों की क्रूरता तथा भारतीयों की सहृदयता की चर्चा । हर्ष, दुःख, द्वेष, क्रूरता, उदारता, कृतज्ञता, व्यंग आदि भावनाओं का चित्रण। शरभ-उपनिषद् - पिप्पलाद-ब्रह्मदेव संवादरूप। यह उपनिषद्, पिप्पलाद का महाशास्त्र माना जाता है जो 108 उपनिषदों में समाविष्ट है। इसमें ब्रह्मा, विष्णु व महेश की एकरूपता प्रतिपादित की गई है। शरभकल्प - श्लोक- 450 । शरभतन्त्रम् - श्लोक- 450 । शरभपंचांगम्- आकाश-भैरवकल्पान्तर्गत। श्लोक- 2421 । विषय- 1) शरभपटल, 2) शरभकवच, 3) शरभपद्धति, 4) शरभहृदय, 5) शरभ-सहस्रनामस्तोत्र, इ. शरभपूजा (पद्धति) - ले.-मल्लारि। श्लोक 800। 2) आकाशभैरवतंत्रार्गत। उमामहेश्वर संवादरूप। लगभग 325 श्लोकात्मक ग्रंथ। विषय- पक्षिराज शरभ के पूजा प्रकारों का वर्णन।
शती।
शब्दालोकरहस्यम् - ले.- गोपीनाथ मौनी। शब्दालोकविवेक - ले.- गुणानन्द विद्यावागीश । शब्दावतारन्यास - ले.- देवनन्दी । जैनेन्द्र धातुपाठ की वृत्ति । शरभारासुरविजयचम्पू - ले.-सोंठी भद्रादि रामशास्त्री। ई. 1856 से 1915। पीठापुरम् (आन्ध्र) के निवासी। शम्भुचयोपदेश - मूल तामील ले.- के.एस.वेङ्कटरमण । अनुवाद- महालिंगशास्त्री। शम्भुराजचरितम् - ले.-हरिकवि। सूरत-निवासी महाराष्ट्रीय पण्डित। कविकलश के आदेश से लिखित छत्रपति सम्भाजी का चरित्र। शम्भुलिंगेश्वरविजयचम्पू - ले.-पं. पंढरीनाथाचार्य गलगली। न्यायवेदान्तविद्वान् तथा प्रवचनकेसरी इन उपाधियों से विभूषित
और मधुरवाणी, पंचामृत, तत्त्ववाद तथा वेदपुराणसाहित्यग्रंथमाला के संपादक। 1982 में इस ग्रंथ का प्रथम प्रकाशन हुबली (कर्नाटक) से हुआ। 12 तरंगों में (पृष्ठसंख्या 300 ) कर्नाटक के महान् सत्पुरुष विद्यावाचस्पति श्री. शम्भुलिंगेश्वर स्वामीजी का चरित्र इस पांडित्यपूर्ण चम्पू में लेखक ने वर्णन किया है। इस ग्रंथ को 1984 का साहित्य अकादमी का पुरस्कार प्राप्त हुआ। बाणभट्ट अथवा त्रिविक्रमभट्ट जैसे प्राचीन साहित्यिकों का इस चंपू में सर्वत्र अनुकरण दिखाई देता है। शम्भुविलासम् (काव्य) - ले.-विश्वनाथ भट्ट रागडे। ई. 17 वीं शती। शम्भुशतकम् - ले.-विठ्ठलदेवुनि सुंदरशर्मा । हैद्राबाद (आन्ध्र) । के निवासी। "शम्भो गिरीश गिरीराजसुताकलत्र। "इस पंक्ति का आरंभ से अंत तक चतुर्थ पंक्ति में उपयोग किया है। इस पद्धति को मकुटनियम कहते हैं।” (2) ले.- रघुराजसिंह।। बघेलखंड के अधिपति। मृत्युंजय शंकर भगवान् की स्तुति।
शरभराजविलासम् (काव्य) - ले.-कावलवंशीय जगन्नाथ। ई. 1722। पिता- श्रीनिवास। तंजावर के भोसले वंश के तथा सरफोजी राजा का चरित्र। शरफोजी भोसले एक महान् विद्यारसिक नृपति एवं "सरस्वतीमहाल" नामक प्रख्यात ग्रंथालय के संस्थापक थे। शरभार्चन-चन्द्रिका - ले.-सदाशिव। शरभा पारिजात - ले.- रामकृष्ण दैवज्ञ। पिता- आपदेव । माता- भवानी । 2) श्लोक- 2174 । तन्त्रसारोद्धार से संकलित। शरभेशकवचम् (या शरभेश्वरकवचम्) - आकाशभैरवकल्पान्तर्गत, उमा-महेश्वर संवादरूप। यह शरभेशकवच भूत प्रेत आदि के भय की निवृत्ति के लिए धारण किया जाता है।। शरभेश्वरमन्त्रप्रकाश - श्लोक- लगभग 190। इसमें शरभेश्वराष्टक भी संनिविष्ट है। शरभोपनिषद् - 108 उपनिषदों में से एक। ब्रह्मा, विष्णु महेश में श्रेष्ठ कौन इस पर ब्रह्मदेव एवं पैप्पलाद के बीच जो संवाद हुआ उसका वर्णन इसमें है। शिव को श्रेष्ठ माना गया है। शरावती-जलपातवर्णनचम्पू - ले.-कुक्के सुब्रह्ममण्य शर्मा। शरीर-निश्चयाधिकार - ले.- गंगारामदास । विषय- स्त्रियों के स्वास्थ्य की चिकित्सा। शर्मिष्ठा-विजयम् (नाटिका) - ले.-नारायण शास्त्री (1860-1911 ई.) चेन्नानगरी के गीर्वाण भाषा रत्नाकर प्रेस से सन 1884 में प्रकाशित। प्रधान रस- उत्तान शृंगार, हास्य
360/ संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड
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