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का पुट । लोकोक्तियों से भरपूर । ययाति-शर्मिष्ठा की प्रणय-कथा निबद्ध । विशेष-विष्कम्भक में शुक्रादि बड़े लोग, नायक और विदूषक का सहगान, मदिरामत्त चेट का विदूषक को प्रेयसी समझना आदि। शल्यतंत्रम् - उमा-महेश्वर संवादरूप। श्लोक- 387| विषयविष, अपस्मार (मृगी) आदि की शान्ति के लिए विविध दैवी उपाय । भूतबाधा और ग्रहबाधा दूर करने के उपाय भी निर्दिष्ट । शशिकला-परिणयम् (अपरनाम यज्ञोपवित) - ले. -ऋद्धिनाथ झा। मिथिलानरेश कामेश्वरसिंह के भतीजे जीवेश्वरसिंह के यज्ञोपवीत समारोह के उपलक्ष्य में अभिनीत । दरभंगा से सन 1947 में प्रकाशित। रचना सन 1941 में। अंकसंख्या- पांच। विषय- भक्त सुदर्शन के शशिकला के साथ विवाह की कथा। शहाजीराजीयम्- ले.- काशी लक्ष्मण। शहाजीविलासगीतम् - ले.-ढुण्डिराज। शाकटायन-व्याकरणटीका - ले.- भावसेन त्रैविद्य। जैनाचार्य । ई. 13 वीं शती। शाकटायनन्यासः (शाकटायन व्याकरण की व्याख्या) - ले.-प्रभाचन्द्र। जैनाचार्य। दो मान्यताएं। ई. 8 वीं शती या ई. 11 वीं शती। शाकटायनशब्दानुशासनम् - ले.-शाकटायन पाल्यकीर्ति । दाक्षिणात्य जैनाचार्य। गुरु- अर्ककीर्ति। ई. 9 वीं शती। इस ग्रंथ पर प्रभाचंद्र, यक्षवर्मा, अजितसेन, अभयचंद्र, भावसेन, दयापाल आदि विद्वानों की टीकाएं हैं। शाकलसंहिता (ऋग्वेद)- ऋग्वेद की शाखाओं में सम्प्रति शाकलसंहिता ही प्रचलित और मुद्रित है। इसका वर्गीकरण 3 प्रकार से किया गया है। 1) अष्टक, वर्ग और मन्त्र । 2) मण्डल, सूक्त और मन्त्र 3) मण्डल, अनुवाक, सूक्त और मन्त्र । ऋप्रातिशाख्य के अनुसार वर्गीकरण का चतुर्थ प्रकार भी प्रश्नरूपविच्छेद है। इनमें सम्प्रति द्वितीय वर्गीकरण (10 मंडलों का) ही प्रचलित और उपयुक्त है। इसीलिए इस संहिता को 'दशतमी' भी कहते हैं। संपूर्ण संहिता के 8 अष्टक, 64 अध्याय और (वालखिल्य के 18 वर्ग मिला कर) 2024 वर्ग हैं। अथवा 10 मण्डल और (वालखिल्य के 11 सूक्त मिला कर) 1028 सूक्त हैं। (देखिये ऋग्वेद)
यह संहिता विश्व की सबसे प्राचीन ग्रंथ-सम्पदा मानी जाती है। इस पर अनेक प्राचीन, अर्वाचीन, देशी-विदेशी विद्वानों द्वारा भाष्य, टीका और व्याकरण लिखे गये हैं। अन्तर साक्ष्य है कि इसमें वालखिल्य सूत्र बाद में मिलाये गये। ये मूल ऋग्वेद-शाकलसंहिता के नहीं हैं। बाष्कल के हैं ऐसा कहा जाता है। निरुक्तकार यास्क और ऐतरेय आरण्यकम् के बहुत पूर्व इसके पदपाठ की रचना ही चुकी थी। इसी के आधार पर "क्रम'' पूर्वक जटा आदि आठ विकृतियाँ आविष्कृत हुई।
"स्वतःप्रमाण माने गये ऋग्वेद की मंत्रसंख्या, अक्षर, स्वर, उच्चारणादि की सर्वाङ्गीण शुद्धता और अपरि नीयता बताने के लिए ही इसका आविष्कार हुआ है। ऋग्वेद का विपुलसाहित्यप्रातिशाख्य, अनुक्रमणियों, बृहद्देवता, शिक्षाकल्पादि छह वेदाङ्ग भी इसी अभिप्राय से निर्मित हैं। ब्राह्मण और निरुक्त के साथ वेदार्थज्ञान के लिए भी ये आत्यांतिक सहाय्यक होते हैं। ऋषिः- "अग्निमीळे' से प्रारंभ होने वाली इस उपलब्ध संहिता में उदात्त, अनुदात्त, स्वरित तीन स्वर हैं। इसके द्रष्टा या स्मर्ता माने जाने वाले ऋषि निम्नलिखित हैं- प्रथम मण्डल 23 ऋषि विभिन्न, द्वितीय के गृत्समद, तृतीय के विश्वामित्र, चतुर्थ के वामदेव, पंचम के अत्रि, षष्ठ के भारद्वाज सप्तम के सपरिवार वसिष्ठ, अष्टम के वरंजि-गोत्रज सहित कण्व (आश्वलायन के अनुसार-प्रगाथ), नवम के अनेक ऋषि और दशम के भी अनेक ऋषि।
मण्डल 2 से 7 तक एक विशेष प्रकार की परिवारिकता तथा समाबद्धता पायी जाती है; जबकी 1, 8 और 10 मण्डलों पर यह बात लागू नहीं होती। होम और पवमान देवता से सम्बद्ध नवम मण्डल के सूत्रों में छन्दों की क्रमबद्धता है। ये सभी बातें देखकर आधुनिकों की धारणा है कि द्वितीय से सप्तम मण्डल तक सभी सूक्त मौलिक अर्थात् ऋग्वेद के बीच हैं। अन्य मंडलों का क्रमिक विकास हुआ है। कुछ विद्वान् 2 से 7 मण्डलों के तथा 1,4,9,10 मण्डल के भिन्न भिन्न सार सिद्ध करने का प्रयास करते है, क्योंकि इनमें मूल में कुछ भिन्न भिन्न नये विषय आ गये हैं यथा-सृष्टि, दर्शन, विवाह. अन्तेष्टि मंत्र-तंत्र आदि।
देवता- यास्क आदि वेदज्ञों के मतानुसार प्रत्येक मंत्र का कोई न कोई देवता अवश्य है। इन देवों की संख्या 33 है। इनका वर्गीकरण विविध प्रकार से किया गया है (क) 11 पृथिवीस्थानीय, 11 आन्तरिक्ष और 11 घुस्थानीय। (ख) 8 वसु 11 रुद्र, 12 आदित्य, 1 आकाश, 1 पृथिवी। (ग) 11 रुद्र, 12 आदित्य, 8 वसु. 1 प्रजापति, 1 वषट्कार । सायण के अनुसार देवता तो 33 ही हैं, किन्तु देवों की विशाल संख्या बताने के लिए 33-39 देवों का उल्लेख किया गया है। छंद- मनुष्यों को प्रसन्न और यज्ञादिकी रक्षा करनेवाले बताये गये है। ऋग्वेद में मुख्य छन्द 21 है जो 24 अक्षरों से लेकर 104 अक्षरों तक होते है।
ऋग्वेद में अधिकतर सूक्त स्तुति सम्बद्ध हैं। यज्ञ में इनका प्रयोग होतृगण के ऋत्विज करते हैं। सर्वाधिक मन्त्र इन्द्र के हैं, तत्पश्चात् अग्नि और वरुण के मंत्र पाये जाते हैं। सूक्तों के विषय - ऋग्वेद के सूक्तों में 20 संवाद सूक्त; 12 तन्त्रसंबंधी, 20 धर्मनिरपेक्ष, 5 अन्त्येष्टि, छूत, 3 उपदेश.
संम्कत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड /361
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