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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra वैराग्यशतकम् वीं शती । ले. नीलकण्ठ (अय्या दीक्षित ) ई. 17 2) ले. अप्पय दीक्षित । वैशेषिकशास्त्रीय पदार्थनिरूपणम् ले रुद्रराम। वैशेषिकसूत्राणि ले. कणाद, जो वैशेषिक दर्शन के प्रवर्तक माने जाते है। वैशेषिक दर्शन का यह मूल ग्रंथ है। यह 10 अध्यायों में है। इसमें कुल 370 सूत्र है। इसका प्रत्येक अध्याय दो आह्निकों में विभक्त है। इसके प्रथम अध्याय में द्रव्य, गुण व कर्म के लक्षण एवं विभाग वर्णित है। द्वितीय अध्याय में विभिन्न द्रव्यों व तृतीय में 9 द्रव्यों का विवेचन है । चतुर्थ अध्याय में परमाणुवाद का तथा पंचम में कर्म के स्वरूप व प्रकार का वर्णन है। षष्ठ अध्याय मे नैतिक समस्याएं व धर्माधर्म विचार है, तो सप्तम का विषय है गुण- विवेचन । अष्टम नवम व दशम अध्यायों में तर्क, अभाव, ज्ञान और सुख-दुःख विभेद का निरूपण है। वैशेषिक सूत्रों की रचना, न्यायसूत्रों से पूर्व हो चुकी थी इसकी रचनाका काल ई. पू. तीसरा शतक माना जाता है। वैशेषिक सूत्र पर सर्वाधिक प्राचीन भाष्य " रावणभाष्य" था, पर यह ग्रंथ उपलब्ध नहीं होता और इसकी सूचना ब्रह्मसूत्र शांकरभाष्य की टीका "रत्नप्रभा" में प्राप्त होती है। भारद्वाज ने भी इस पर वृत्ति की रचना की थी, किंतु वह भी नहीं मिलती। "वैशेषिक सूत्र" का हिंदी भाष्य पं. श्रीराम शर्मा ने किया है। इस पर म.म. चंद्रकांत तर्कालंकार कृत अत्यंत उपयोगी भाष्य है, जिसमें सूत्रों की स्पष्ट व्याख्या है। वैशम्पायन धनुर्वेद मद्रास मैन्युस्किए लाईब्रेरी में सुरक्षित वैशम्पायनस्मृति मिताक्षरा एवं अपरार्क द्वारा उल्लिखित । वैषम्योद्धारणी लेकमा कविराज ई. 17 वीं शती । किरातार्जुनीयम् महाकाव्य की व्याख्या । वैष्णवकरणम् - ले. शंकर । विषय- ज्योतिष शास्त्र । वैष्णवचन्द्रिका ले. - रामानन्द न्यायवागीश । वैष्णवतोषिणी ले. जीव गोस्वामी । रचना सन 1583 में । श्रीमद्भागवत की यह टीका, भागवत के केवल दशम स्कंध पर है। इसका उद्देश्य है सनातन गोस्वामी की बृहत्तोषिणी का सार प्रस्तुत करना । उपलब्ध बृहत्तोषिणी तथा प्रस्तुत वैष्णवतोषिणी का तुलनात्मक अनुशीलन करने से, यह तथ्य ध्यान में आ सकता है। यह टीका, श्रीकृष्णचन्द्र की लीला को विस्तार के साथ समझने एवं उसका आस्वादन करने के उद्देश्य से लिखी गयी है। टीकाकार के कथनानुसार श्रीधर स्वामी की भावार्थदीपिका (श्रीधरी) के अव्यक्त एवं अस्फुट भावों का प्रकाशन ही वैष्णवतोषिणी का उद्देश्य है । टीका के विस्तृत उपोद्घात में, पूर्वाचार्यों का नामनिर्देशपूर्वक एवं आदरभाव से स्मरण किया गया है। टीकाकार के सहायक के रूप में, 23 www.kobatirth.org - - गोपाल भट्ट और रघुनाथ का उल्लेख भी प्रस्तुत टीका में है। जीव गोस्वामी, पाठभेद के लिये बड़े जागरूक टीकाकार थे। पूर्व भाग में प्रस्तुत व्याख्या के पूर्वपक्ष का निर्देश है, तथा सबसे अंतिम भाग में अपना सिद्धान्त प्रतिपादित है । आद्यपाठ गौडीयो का है और द्वितीय पाठ काशी का। इनके नाना देशीय मूल का भी अनुसंधान किया गया है। फलतः दशम स्कंध की यह विशिष्ट टीका, गौडीय वैष्णवों के अभिमत दार्शनिक सिद्धान्तों का निरूपण बड़े ही प्रमाणपूर्वक करती है। यही इसका सांम्प्रदायिक वैशिष्ट्य है। वैष्णव धर्मपद्धति ले कृष्णदेव वैष्णव धर्ममीमांसा ले. - अनन्तराम । वैष्णव-धर्म-शास्त्रम् विषय- संस्कार, गृहस्थधर्म, आश्रम, पारिव्राज्य, राजधर्म अध्यायसंख्या पांच। श्लोक 109। वैष्णवधर्म-सुरद्रममंजरी ले. संकर्षण शरणदेव गुरु केशव काश्मीरी, जो निवार्क मतानुयायी विद्वान् थे विषय मत की श्रेष्ठता । - वैष्णव धर्मानुष्ठानपद्धति - ले. कृष्णदेव । पिता- रामाचार्य । वैष्णवपूजाध्यानादि श्लोक 6750 विषय वैष्णव और | - शैव पूजापद्धतियों का स्पष्टीकरण वैष्णवमताब्ज - भास्कर ले. स्वामी रामानंदजी रामानंदी वैष्णवसिद्धान्तों का एकमात्र विवेचक महनीय ग्रंथ श्री. रामानुजाचार्य द्वारा व्याख्यात विशिष्टाद्वैत सिद्धान्त ही रामानंदजी को सर्वथा मान्य है। अंतर इतना ही है कि श्रीवैष्णवों के द्वादशाक्षर मंत्र के स्थानपर रामानंदी वैष्णवों को रामषडक्षर मंत्र (ओम् रां रामाय नमः) ही अभीष्ट है। इसी पार्थक्य के कारण रामानंदी वैष्णव स्वयं को "बैरागी वैष्णव' के नाम से अभिहित करते है। - - For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रामानंदजी के अन्यतम शिष्य सुरसुरानंद ने उनसे तत्त्व श्रेष्ठ जप, उत्तम ध्यान, मुक्तिसाधन, श्रेष्ठ धर्म, वैष्णवलक्षण तथा प्रकार, वैष्णवों के निवास स्थल, कालक्षेप के प्रकार तथा प्राप्य वस्तु की जिज्ञासा के लिये 10 प्रश्न पूछे थे। उन्हीं प्रश्नों के उत्तरों के अवसर पर प्रस्तुत ग्रंथ रत्न की रचना हुई। रामानंदजी को श्रीवैष्णवों का तत्त्वत्रय सर्वथा मान्य है। रामानंदजी ने भगवान् श्रीरामचंद्र को परम पुरुष मान कर उनकी उपासना का प्रवर्तन बडे ही आग्रह तथा निष्ठा के साथ किया । इसीलिये उनके अनुयायी वैष्णवगण, रामावत सम्प्रदाय के अंतर्गत माने जाते है । - वैष्णावरहस्वम् - चार प्रकाशों में पूर्ण विषय नामोपदेश, गुरुपद का आश्रय, आराध्य का निर्णय, साध्य के साधन का निरूपण ई. वैष्णवलक्षणम् ले. कृष्ण ताताचार्य । वैष्णवसन्दर्भ सन 1903 में वृन्दावन से नित्यसखा संस्कृत वाङ्मय कोश ग्रंथ खण्ड / 353 -
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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