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1623 में लिखित |
वैजयन्ती - ले. - व्यंकटेश बापूजी केतकर विषय- गणितशास्त्र ।
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वैजयन्ती - सन 1953 में बागलकोट से पंढरीनाथाचार्य के सम्पादकत्व में इस पत्रिका का प्रकाशन आरंभ हुआ। इसके संचालक थे गलगली रामाचार्य। यह प्रति मंगलवार को प्रकाशित होती भी इसका वार्षिक मूल्य पाच रु. था। इस पत्रिका में महाभारत की कथाओं का गद्य रूप, अर्वाचीन संस्कृत पुस्तकों की समालोचना और बालकों के लिये सामग्री भी प्रकाशित की जाती थी। धनाभाव के कारण कुछ समय के पश्चात् इस पत्रिका का प्रकाशन स्थगित हो गया । वैतरणीदानम् - विषय वैतरणी पार करने के लिए काली
गाय का दान | बैतानश्रौतसूत्रम् अथर्ववेद से संबंधित श्रीतसूत्र इसमें दर्शपूर्णमासादि इष्टि के चार ऋत्विजों के कर्तव्य दिये गये है। वैदर्भीवासुदेवम् (नाटक) मृत्यु- 1905 ई. सन 1888 में। तिन्नेवेल्ली जनपद, कैलासपुर से प्रकाशित। अंकसंख्या पांच शृंगार, वीर तथा हास्य रस का सामजस्य । अभिनयोचित सुबोध संवाद। उन्नसवीं शती के भारतीय समाज के संबंध में महत्त्वपूर्ण सांस्कृतिक सूचनाएं । विषयकृष्ण-रुक्मिणी के विवाह की कथा ।
वैदिकतांत्रिकाधिकारनिर्णयले. भडोपनामक दक्षिणाचारमतप्रवर्तक काशिनाथ । विषय- उपासकों की रुचि के अनुसार उनके वैदिक, तान्त्रिक, वैदिकतान्त्रिक, तान्त्रिकवैदिक आदि विभिन्न भेद दिखलाये गये है ।
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वैदिक धर्मवर्धिनी सन 1947 में श्रियाली (मद्रास) से सोमदेव शर्मा के संपादकत्व में संस्कृत और तामिल भाषा में इस पत्रिका आरंभ हुआ। इसी प्रकार 1960 में मद्रास से बालसुब्रह्मण्यम के संपादकत्व में "श्रीकामकोटिप्रदीप" और 1956 में कोयम्बतूर से के. व्ही. नरसिंहाचार्य के सम्पादकत्व में "आनन्दकल्पतरुः नामक द्विभाषी पत्रिकाओं का प्रकाशन हुआ। वैदिकमनोहरा सन 1950 में कांचीवरम् से पी.बी. अण्णंगराचार्य के सम्पादकत्व में इस पत्रिका का प्रकाशन प्रारंभ हुआ। वह वैष्णवों की पत्रिका है। इसमें रामानुजीय दर्शन संबंधी लेख प्रकाशित होते है। इसके कुछ अंकों में द्रविड तथा हिंदी भाषा में रचनाएं भी प्रकाशित की गयी है। वैदिकवैष्णव सदाचार ले. - हरिकृष्ण । इसमें आगे व्रजनाथ ने सुधार किया।
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वैदिकसर्वस्वम् ले कृष्णानन्द श्लोक 1000 1 वैदिकाचारनिर्णय सच्चिदानन्द ।
वैद्यकशब्दसिन्ध कवि काशिनाथ ई. 19-20 वीं शती
वैद्यकशब्दसिन्ध्य
ले. उमेश गुप्त ई. 19 वीं शती
352 / संस्कृत वाङ्मय कोश ग्रंथ खण्ड
वैद्य भाकरोदय ले. - सुन्दरराज । जन्म - 1841,
आयुर्वेदिक शब्दावली का कोश वैद्यकसारोद्धारले. हर्षकीर्ति ई. 17 वीं शती । वैद्यचिंतामणि ले. धन्वंतरि ।
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वैद्यकशास्त्रम् ले. देवानन्द पूज्यपाद जैनाचार्य ई. 5-6 वीं शती। माता- श्रीदेवी पिता माधवभट्ट । वैद्यजीवनम् ले लोलिंबराज ई. 17 वीं शती आयुर्वेद शास्त्र का प्रसिद्ध ग्रंथ इस ग्रंथ की रचना, सरस और मनोहर ललित शैली में हुई है। और रोग तथा औषधि का वर्णन, ग्रंथकार ने अपनी प्रिया के संबोधित करते हुए किया है। इसका हिन्दी अनुवाद (अभिनव सुधा-हिंदी टीका) कालीचरण शास्त्री ने किया है।
वैद्यहम् ले. सुरेन्द्रमोहन बालचित लघुनाटक किसी अंध वृद्धा ने नेत्रों की चिकित्सा के बहाने उसकी वस्तुएं चुरानेवाले वैद्य की कथा "मंजूषा" में प्रकाशित ।
ले. धन्वंतरि । वैद्यमहोत्सव - ले. श्रीधर मिश्र । वैद्यवल्लभ ले. श्रीकान्त दास ।
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वैजवाप यजुर्वेद की लुप्त शाखा इस शाखा की संहिता या ब्राह्मण दोनों उपलब्ध नहीं। वैजवाप श्रौतसूत्र के कई उद्धरण इधरउधर मिलते है। वैजबाप-: - गृह्यसूत्र प्रकाशित है। यजुर्वेद की एक लुप्त शाखा ।
वैधेय
वैनतेय यजुर्वेद की एक लुप्त शाखा ।
वैनायक - संहिता - महेश्वर भार्गव संवादरूप । श्लोक 220 | विषय- हरिद्रागणपति प्रयोग तत्सम्बन्धी मन्त्र तथा मन्त्रों के निर्माण का प्रकार यह सम्पूर्ण ग्रंथ 8 पटलों में विभक्त है। वैभाष्यम् - ले. स्थिरमति । ई. 4 थी शती । वैयाकरणसिद्धान्तकारिका ले-भट्टोजी दीक्षित । व्याकरण शास्त्रीय महत्त्वपूर्ण ग्रंथ । लेखक के भतीजे (रंगोजी भट्टके पुत्र) कोण्डभट्ट द्वारा ग्रंथ वैयाकरणभूषणम् तथा वैयाकरण भूषणसार नामक टीकाये लिखी गयी है। वैयाकरणभूषणम् की क्लिष्टता दूर करनेवाली शंकरशास्त्री मारुलकर द्वारा शांकरी टीका लिखी हुई है।
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वैयाकरणसिद्धान्तमंजरी - ले. नागोजी भट्ट। पिता शिवभट्ट | माता सती ई. 18 वीं शती। वैयासिकन्यायमाला ले. भारती कृष्णतीर्थ । ई. 14 वीं शती । इसमें ब्रह्मसूत्र के सभी अधिकरणों का सार है। प्रत्येक . अधिकरण का संक्षेप दो श्लोकों में है। प्रथम श्लोक में पूर्वपक्ष का प्रतिपादन तथा दुसरे में सिद्धान्त निरूपण है। वैराग्यनीति-शृंगारशतकम् ले. पं. तेजोभानु रावलपिण्डी के निवासी अभिनवभर्तहरि उपाधि तीन शतकों के लेखन निमित्त प्राप्त ।
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