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विषय में एक विद्वत्सभा का आयोजन 1960 में हुआ था। वैकुण्ठविजय चम्पू - ले.-राघवाचार्य । श्रीनिवासाचार्य के पुत्र । इस विद्वत्सभा में दक्षिण भारत के ख्यातिप्राप्त 11 विद्वानों ने विषय- अनेक तीर्थक्षेत्रों तथा मन्दिरों का वर्णन । शंकरवेदान्त से संबंधित विविध विषयों पर पढे हुए संस्कृत वैकुण्ठविजयम् (नाटक) - ले.-अमरमाणिक्य। ई. 16 वीं निबंधों का चयन ग्रंथ रूप में किया गया। 1962 में प्रस्तुत शती। विषय- उषा-अनिरुद्ध की प्रणयकथा। निबंधसंग्रह प्रकाशित हुआ। अध्यात्म-प्रकाश कार्यालय द्वारा
वैखानसगृह्यसूत्रम् यह सूत्र कृष्ण यजुर्वेद की तैत्तिरीय शाखा मूलाविद्यानिरास (अथवा शंकरहृदयम्) इत्यादि वेदान्तविषयक
का है। विवाहादि संस्कार एवं पाकयज्ञ की जानकारी दी गई है। विविध ग्रंथों का प्रकाशन हुआ है।
वैखानसतन्त्रम् - ले.-मरीचि। पटल- 50। वेदांतविलासम् (नाटक) ( या यतिराजविजयम्) -
वैखानसधर्मप्रश्न - ले.-महादेव। अपने सत्याषाढ श्रौतसूत्र पर ले.-वरदाचार्य। ई. 17 वीं शती। प्रथम अभिनय श्रीरंगपटनम
लिखे गये वैजयंती नामक भाष्य में कृष्ण-यजुर्वेद के छह में विष्णु की चैत्रोत्सव यात्रा में। छ: अंकों का नाटक, जिसमें
श्रौतसूत्रों का उल्लेख कर, उसे वैखानस कहा है। प्रस्तुत ग्रंथ रामानुज की जीवनी का चित्रण है।
में तीन तीन प्रश्नों के तीन भाग है। प्रत्येक के खंड है।कुल कुल पात्रसंख्या- 38, जिसमें 15 पात्र प्रतीकात्मक है।
41 खंड है। विषय -चार वर्ण, उनके अधिकार, चार आश्रम, नायक "वेदान्त उनके, नारद, भरत आदि प्रमुख पात्र शंकर,
ब्रह्मचारी के चार प्रकार, कर्तव्य, वानप्रस्थ, भिक्षु, योगी, संध्या, भास्कर, यादव चार्वाक आदि अन्य चरित्र नायक। मानव पात्र
अभिवादन, आचमन, अनध्याय, ब्रह्मयज्ञ,अन्नग्रहण के नियम, तथा प्रतीक पात्रों का रंगमंच पर वार्तालाप। साम्प्रदायिक दृष्टि से
प्रेतसंस्कार आदि की चर्चा । महत्त्वपूर्ण चार्वाक, बौद्ध, जैन, पाशुपत, मायावादी, भास्करीय,
वैखानसधर्मसूत्रम् - यह कृष्ण-यजुर्वेद की तैत्तिरीय शाखा यादवीय, द्वैती आदि सम्प्रदायों की प्रमुख मान्यताओं की झलक ।
से सम्बद्ध है। इसमें वर्णाश्रम के कर्तव्यों का प्रमुखतः वर्णन कथासार- राजा मायावाद से प्रभावित होकर, नायक वेदान्त है। आश्रमों का वर्गीकरण परिपूर्ण है। मिश्रजाति की सूचि अपनी पत्नी सुमति का तिरस्कार करके, भ्रष्टाचारी मिथ्यादृष्टि भी है जो अन्यन्त्र नहीं मिलती। धर्मनियम मनुस्मृति के अनुसार से विवाह करता है। बौद्ध और चार्वाक उसे प्रोत्साहित करते है। जब यतिराज के ज्ञानप्रकाश से नायक को पश्चाताप होता वैखानसमन्त्रप्रश्न- इस पर नसिंह वाजपेयी (पिता- माधवाचार्य) है, तब परित्यक्ता सुमति को वह पुनः आदरणीय स्थान देता। की टीका है। है। सन 1956 ई.में तिरुपति देवस्थान द्वारा प्रकाशित ।
वैखानसशाखा (कृष्ण यजुर्वेदीय) - यह सौत्र शाखा ही वेदांतशतकम् - ले.-नीलकण्ठ चतुर्धर । पिता गोविंद। माता- है। इस का कल्प उपलब्ध है। फुल्लांबिका। ई. 17वीं शती।
वैखानस श्रौतसूत्रम् - कृष्ण यजुर्वेद की तैत्तिरीय शाखा का वेदान्तसार - ले.- यामुनाचार्य (आलंवदार) ब्रह्मसूत्र की एक सूत्र । बोधायन, आपस्तंब सत्याषाढ के बाद इसका उल्लेख लघ्वक्षरा टीका।
आता है । दशपूर्ण मास, सोमयाग आदि की जानकारी दी गई है। वेदान्तसिद्धान्तमुक्तावली - ले.-प्रकाशानंद । ई. 15 वीं शती। वैखानससूत्रदर्पण - ले.-नृसिंह । माधवाचार्य वाजपेययाजी के वेदान्तसिद्धान्तसूक्तिमंजरी - ले.-गंगाधरेन्द्र सरस्वती। पुत्र । वैखानसगृह्य के अनुसार घरेलू कृत्यों पर एक लघुपुस्तिका । वेदांतसंग्रह - ले.-रामानुजाचार्य। ई. 1017-1137। शंकर मत इल्लौर में सन 1915 में मुद्रित।। तथा भेदाभेदवादी भास्कर मत का खंडन करनेवाला सशक्त वैखानससूत्रानुक्रमणिका - ले.-वेंकटयोगी। कोण्डपाचार्य के ग्रंथ। रामानुजाचार्य के जिन प्रसिद्ध ग्रंथों पर श्रीवैष्णव संप्रदाय पुत्र। के सिद्धान्त आधारित है, उनमें यह एक प्रमुख ग्रंथ है। वैखानसागम - ले.-भृगु द्वारा प्रोक्त यह ग्रंथ चार अधिकारों वैरणाविति पाणिनीयसूत्रस्य व्याख्यानम् - ले.-शिवरामेन्द्र में विभाजित है। (क) यज्ञाधिकार। श्लोक 2400। अध्याय सरस्वती।
49 में पूर्ण। विषय- भगवान् विष्णु के यज्ञ, पूजन आदि का वेष्टनव्यायोग - ले.-वीरेन्द्रकुमार भट्टाचार्य। आधुनिक दैनंदिन विशद रूप से प्रतिपादन (ख) क्रियाधिकार। श्लोक 3690 । जीवन का चित्रण। नायक कल्कि भगवान, जिनका आयुध है अध्याय- 35। विषय- भगवान् की प्रतिमा प्रतिष्ठा तथा पूजा "वेष्टन' अर्थात् (घेराव)। कथासार - संजय के नेतृत्व में
की विधि। (ग) यज्ञाधिकार, नित्याग्निकार्य विशेष। श्लोक पाच श्रमिक शिल्पाध्यक्ष तथा श्रमाध्यक्ष के पास अपनी मांगे 6280। अध्याय- 48। (घ) अर्चनाधिकार। श्लोक- 2360 । लेकर आते है और उन्हें घेराव करते है। अन्त में श्रमिकों अध्याय 381 की विजय होती है और नेता के रूप में कल्कि भगवान् वैजयंती - महादेवभट्ट। हिरण्यकेशि श्रौतसूत्र की टीका। प्रवेश कर सब का अभिनन्दन करते है।
वैजयन्ती - ले. नन्दपण्डित। विष्णुधर्मसूत्र की टीका। सन
संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड/351
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