SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 366
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ले. माध्यन्दिनीय ले अनन्तदेव वृद्धिश्राद्धप्रयोग ले. नारायणभट्ट (प्रयोगरत्न का एक अंश) । वृद्धिश्राद्धविधि - ले.- करुणाशंकर । वृद्धिश्राद्धविनिर्णय उद्धव के पुत्र । वृन्दावनपद्धति बल्लभाचार्य सम्प्रदाय के अनुयायियों के लिए। वृन्दावनमंजरी - ले. मानसिंह । विषय कृष्णकथा । वृन्दावनमहिमामृतम् - ले. प्रबोधानन्दसरस्वती । ई. 16 वीं शती । कृष्णचरितपर काव्य । - ले. मानांक ई. 10 वीं शती। यह - वृन्दावनयमकम् चित्रकाव्य है। - · वृन्दावनविनोदम् ले रुद्रा न्यायवाचस्पति । ई. 16 वीं शती 2) ले जयराम न्यायपंचानन । वृषभदेव चरितम् ले पं. शिवदत्त त्रिपाठी। वृषाभानुचरितम् ले. सकलकीर्ति जैन मुनि का चरित्र । वृषोत्सर्गकौमुदी - ले. रामकृष्ण। L वृषोत्सर्गपद्धति - ले. नारायण। रामेश्वर के पुत्र । ई. 16 वीं शती । वृषोत्सर्गप्रयोग (या नीलवृषोत्सर्गप्रयोग ) - ले. अनन्तभट्ट । नागदेव के पुत्र । वृषोत्सर्गप्रयोग (वाचस्पतिसंग्रह) यजुर्वेद के अनुयायियों के लिए। - - - www.kobatirth.org वृषोत्सर्गविधि - ले. मधुसूदन गोस्वामी । वृषोत्सर्गादिपद्धति कात्यायनकृत 307 श्लोकों में पूर्ण वेंकटेश (प्रहसन) ले वेंकटेश्वर ई. अठारहवी शती । वेंकटेशचम्पू ले. धर्मराज कवि ई. 17 वीं शती। इस चंपू काव्य में तिरुपति क्षेत्र के देवता वेंकटेश की कथा वर्णित है। प्रारंभ में मंगलाचरण, सज्जनप्रशंसा तथा खलनिंदा है इसके गद्य भाग में "कांदबरी" एवं "दशकुमारचरित" की भांति रचना सौंदर्य परिलक्षित होता है। 1 - वेंकटेशचरितम् - ले. घनश्याम । ई. 16 वीं शती । विषयतिरुपति के वेंकटेशवर की कथा । - - वेंकटेश्वरपत्रिका ले. मद्रास से इसका प्रकाशन होता था। वेंकटगिरिमाहात्म्यम् ले देवदास । विषय- वेंकटगिरि के निवास का माहात्म्य । वेगराजसंहिता ले. वेगराज। सन् 1503 में रचित । वेणी विषय - यात्रा के पूर्व वरुणपूजा की विधि । वेणीसंहार एक प्रसिद्ध नाटक । ले भट्टनारायण। इनका दूसरा नाम निशानारायण और उपाधि "मृगराजलक्ष्म" थी । "वेणीसंहार" में महाभारत में युद्ध को वर्ण्य विषय बनाकर उसे नाटक का रूप दिया गया है। इसमें कवि ने मुख्यतः द्रौपदी की प्रतिज्ञा को महत्त्व दिया है। जिसके अनुसार उसने - दुर्योधन के रुधिर से अपनी वेणी के केश बांधने का निश्चय किया था। अंत में गदायुद्ध में भीमसेन दुर्योधन को मार कर उसके रक्त से रंजित अपने हाथों से द्रौपदी की वेणी का संहार ( गूंथना) करता है। इसी कथानक की प्रधानता के कारण इस नाटक का नाम "वेणीसंहार" है 1 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 1 कथासार - इस नाटक के प्रथम अंक में भीम - युधिष्ठिर द्वारा दुर्योधन को संधि प्रस्ताव भेजे जाने से बहुत नाराज होते है भानुमतीकृत द्रौपदी के अपमान से उनका क्रोध उद्दीप्त होता है, किन्तु युधिष्ठिर द्वारा युद्ध की घोषणा कर देने पर भीम प्रसन्न होकर युद्ध करने जाते है। द्वितीय अंक में दुर्योधन और भानुमती का प्रणयालाप है। अर्जुन की जयद्रथवध संबंधी प्रतिज्ञा सुन दुर्योधन जयद्रथ की माता और पत्नी दुःशला को आश्वस्त करता है. तृतीय अंक में द्रोणवध होने से अश्वत्थामा विलाप करने लगता है। सेनापति पद के लिए अश्वत्थामा और कर्ण का विवाद होता है, जिसके कारण अश्वत्थामा शस्त्रत्याग करता है। चतुर्थ अंक में सुन्दरक द्वारा दुर्योधन के सामने कर्ण के पुत्र की वीरता और कर्ण के अंतिम संदेश का वर्णन है। पंचम अंक में धृतराष्ट्र और गांधारी पुत्रशोक से व्याकुल होकर दुर्योधन को युद्ध समाप्त करने को कहते है, पर दुर्योधन अपने निश्चय पर दृढ रहता है। षष्ठ अंक में भीम और दुर्योधन के गदायुद्ध का वर्णन है। कृष्ण की आज्ञा से युधिष्ठिर के राज्याभिषेक की तैयारियाँ की जाती है। किन्तु चार्वाक के द्वारा भीम के - - For Private and Personal Use Only - मारे जाने की मिथ्या सूचना पाकर युधिष्ठिर और द्रौपदी अग्निप्रवेश के लिए उद्यत होते है। तभी भीम दुर्योधन को मार कर उसके रक्त से लथपथ होकर द्रौपदी के केश बांधने के लिए आते है, किन्तु युधिष्ठिर उसे दुर्योधन मानते है । तब भीम उन्हें वस्तुस्थिति का ज्ञान करा कर द्रौपदी की वेणी बांधते है । वेणीसंहार में कुल 19 अर्थोपक्षेपक है। जिनमें विष्कम्भक, 1 प्रवेशक 17 चूलिकाएं और 1 अंकास्य है। पात्र व चरित्रचित्रण :- कवि ने पात्रों के शील निरूपण में अपूर्व सफलता प्राप्त की है। यद्यपि महाभारत से कथावस्तु लेने के कारण कवि पात्रों के चरित्र चित्रण में पूर्णतः स्वतंत्र नहीं थे, फिर भी उन्होंने यथासंभव उन्हें प्राणवंत व वैविध्यपूर्ण चित्रित किया है। प्रस्तुत नाटक के प्रमुख पात्र है- भीम, दुर्योधन, युधिष्ठिर, कृष्ण, अश्वत्थामा, कर्ण व धृतराष्ट्र । नारी पात्रों में द्रौपदी, भानुमती एवं गांधारी प्रमुख है प्रस्तुत नाटक में वीर रस प्रधान है। इसके प्रथम अंक में ही वीर रस की जो अजस्र धारा प्रवाहित होती है, वह अप्रतिहत गति से अंत तक चलती है। बीच बीच में श्रृंगार, करुण, रौद्र, बीभत्स आदि रसों का भी समावेश किया गया है । कतिपय विद्वान् इस नाटक को दुःखांत मानते हुए, इसमें करुण रस का ही प्राधान्य मानते है । किन्तु संपूर्ण नाटक में संस्कृत वाङ्मय कोश ग्रंथ खण्ड / 349
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy