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का चरित्र तथा देवों, दैत्यों, वीरों व मनुष्यों की उत्पत्ति के साथ ही-साथ अनेक काल्पनिक कथाओं का वर्णन है।
द्वितीय अंश में भोगोलिक विवरण है, जिसके अंतर्गत 7 द्वीपों, 7 समुद्रों एवं सुमेरु पर्वत का विवरण है। पृथ्वी-वर्णन के पश्चात् पाताल लोक का भी विवरण है, तथा उसके नीचे स्थित नरकों का उल्लेख किया गया है। तत्पश्चात् धुलोक का वर्णन है जिसमें सूर्य, उसका रथ, रथ के घोडे, उनकी गति एवं ग्रहों के साथ चंद्रमा व चंद-मंडल का वर्णन है। इसमें "भारतवर्ष' नामक प्रसंग में राजा भरत की कथा कही गई है।
तृतीय अंश में आश्रम विषयक कर्तव्यों का निर्देश एवं 3 अध्यायों में वैदिक शाखाओं का विस्तृत विवरण है। इसी अंश में व्यास व उनके शिष्यों द्वारा किये वैदिक विभागों का तथा कई वैदिक संप्रदायों की उत्पत्ति का भी वर्णन किया गया है। तत्पश्चात् 18 पुराणों की गणना व समस्त शास्त्रों एवं कलाओं की सूची प्रस्तुत की गई है।
चतुर्थ अंश में ऐतिहासिक सामग्री का संकलन है जिसके अंतर्गत सूर्यवंशी व चंद्रवंशी राजाओं की वंशावलियां हैं। इसमें पुरुरवा-उर्वशी, राजा ययाति, पांडवों व कृष्ण की उत्पत्ति, महाभारत की कथा तथा राम-कथा का संक्षेप में वर्णन किया गया है। इसी अंश में भविष्य में होने वाले राजाओं - मगध, शैशुनाग, नंद, मौर्य, शुंग, काण्वायन तथा आंध्रभृत्य के संबंध में भविष्यवाणियां की गई हैं। ___ पंचम अंश में "श्रीमद्भागवत" की भांति भगवान् श्रीकृष्ण के अलौकिक चरित्र का वर्णन किया गया है। षष्ठ अंश अधिक छोटा है। इसमें केवल 8 अध्याय हैं। इस खंड में कृतयुग, त्रेतायुग, द्वापर व कलियुग का वर्णन है, और कलि के दोषों को भविष्यवाणी के रूप में दर्शाया गया है।
प्रस्तुत पुराण की 3 टीकाएं प्राप्त होती हैं- श्रीधरस्वामी कृत टीका, विष्णुचित्त कृत "विष्णुचित्तीय" टीका तथा रत्नगर्भ भट्टाचार्य कृत "वैष्णवाकूत-चंद्रिका"। इसके वक्ता एवं श्रोता, पराशर और मैत्रेय हैं।
इसकी रचना का काल ईसवी सन के पूर्व दूसरी से पांचवी शती माना गया है। यह पुराण, हिन्दी अनुवाद सहित, गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित हुआ है। इसका अंग्रेजी अनुवाद एच.एच. विल्सन ने किया है। विष्णु पुराण में भारत की अद्भुत महिमा इस प्रकार गायी गई है -
अत्रापि भारत श्रेष्ठे जम्बुद्वीपे महामुने । यतो हि कर्मभूरेषा ह्यतोऽन्या भोगभूमयः।। अत्र जन्मसहस्रणां सहस्रैरपि सत्तम । कदाचिल्लभते जन्तुर्मानुष्यं पुण्यसंचयात्।। गायन्ति देवाः किल गीतकानि । धन्यास्तु ते भारतभूमिभागे।।
स्वर्गापवर्गास्पदमार्गभूते। भवन्ति भूयः पुरुषाः सुरत्वात् ।। कर्माण्यसंकल्पिततत्फलानि । संन्यस्य विष्णौ परमात्मभूते ।। अवाप्यतां कर्ममहीमनन्ते। तस्मिल्लयं ये त्वमलाः प्रयान्ति ।। इसका भावार्थ इस प्रकार है- हे मैत्रेय महामने जम्बद्वीप में भारत सर्वश्रेष्ठ है क्योंकि यह मानव की कर्मभूमि है, अन्य केवल भोग-भूमियां हैं। जन्म-मरण के हजारों फेरों के बाद यदि पुण्य संचित किया हो तो जीव को इस देश में मनुष्य-जन्म प्राप्त होता है। यह देश स्वर्ग और मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग है। यहां जन्मे जो व्यक्ति फलासक्ति त्याग कर कर्म करते हैं तथा कर्मफल भगवान् के चरणों में अर्पित करते हैं और इस प्रकार मलरहित होकर ईश्वर में लीन हो जाते हैं, वे पुरुष हमसे (स्वर्ग की देवताओं से) भी अधिक भाग्यवान् हैं। विष्णुपूजाक्रमदीपिका - ले.- शिवशंकर । टीकाकार सदानन्द । विष्णुपूजा-पद्धति - ले.- चैतन्यगिरि । विष्णुपूजाविधि - ले.- शुकदेव । रचना सन 1635-6 ई. में। विष्णुप्रतिष्ठाविधिदर्पण - ले.- नरसिंह सोमयाजी। माधवाचार्य के पुत्र । विष्णुभक्तिचंद्रोदय - ले.- नृसिंहारण्य या नृसिंहाचार्य। 19 कलाओं में विभाजित। द्रव्यशुद्धिदीपिका में पुरुषोत्तम द्वारा वर्णित । विषय- मुख्य वैष्णव व्रतों, उत्सवों, कृत्यों को प्रतिपादन । विष्णुमूर्तिप्रतिष्ठाविधि - ले.- कृष्णदेव। रामाचार्य के पुत्र । वैष्णवधर्मानुष्ठानपद्धति या नृसिंह परिचर्यापद्धति नामक बृहद् ग्रंथ का यह एक अंश है। विष्णुयागपद्धति - ले.- अनन्तदेव। पिता- आपदेव। विषय पुत्रकामना की पूर्ति के लिए धार्मिक कृत्य।। विष्णुरहस्यम् - सूत-शौनक संवादरूप। श्लोक- 3828 | अध्याय- 601 विष्णुविलसितम् - ले.- कुंजुनी नाम्बियार रामपाणिवाद। ई. 18 वीं शती। आठ सर्गो में विष्णु के दस अवतारों का चरित्र कथन। विष्णुश्राद्धपद्धति - ले.-नारायणभट्ट। ई. 16 वीं शती। पितारामेश्वरभट्ट। विष्णुसहस्रनाम - कुलानन्द-संहिता में भैरव-भैरवी संवाद रूप। यह प्रसिद्ध विष्णुसहस्रनाम, (जो महाभारतान्तर्गत है) से भिन्न है। विष्णुसहस्रनामस्तोत्रम् - वैष्णव सम्प्रदाय के आधारभूत ग्रंथ पंचरत्नों में से एक। कुल 107 श्लोकों वाला यह स्तोत्र महाभारत के अनुशासन पर्व में समाविष्ट है, जिसमें विष्णु के एक सहस्र नाम दिये गये हैं। इसका प्रास्ताविक श्लोक इस
संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड/345
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