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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यानि नामानि गौणानि विख्यातानि महात्मनः । ऋषिभिः परिगीतानि तानि वक्ष्यामि भूतये।। अर्थात- महापुरुष विष्णु के जिन गुण-श्रेष्ठ नामों की ऋषियों ने सर्वत्र महिमा गायी, अपने ऐश्वर्य-प्राप्ति के लिये मैं उन नामों को यहां प्रस्तुत कर रहा हूं। ___ श्री वासुदेवशरण अग्रवाल के मतानुसार इसकी रचना ई.स. की प्रथम शताब्दी में हुई होगी। किन्तु बौधायन गृह्यसूत्र में इस स्तोत्र का उल्लेख आया है। इस गृह्यसूत्र का काल ई.पू. 500 से 200 माना जाता है। अतः विष्णुसहस्रनाम इसके पूर्व ही रचा गया होगा। धर्म, अर्थ, काम- इन तीन पुरुषार्थो की प्राप्ति के लिये इसके नित्य पाठ की आवश्यकता महाभारत में बताई गई है। आद्यशंकराचार्य, रामानुजाचार्य व कूरेशपुत्र पराशर ने इस पर भाष्य लिखे हैं। पं. सातवलेकर का भाष्य हिंदी में है। विष्णुस्तव-षोडशी - ले.- लक्ष्मण शास्त्री, नागौर (राजस्थान) निवासी। विष्णुवर्धापनम् - ले.- श्री. भि. वेलणकर। मुंबई-निवासी। विषय- लेखक के गुरु की स्तुति। विस्तारिका - ले.- परमानन्द चक्रवर्ती । मम्मट कृत काव्यप्रकाश पर टीका। इ. 15 वीं शती। वीतवृतम् - ले.- भर्तृहरि। यह एक लघुकाव्य है। इसका उल्लेख माधवकृत जडवृत्त में है। इसमें मूर्ख प्रेमियों की उच्छृखलता का वर्णन है। वीरकाम्यार्चनविधि - श्लोक- 75। वीरचम्पू - कवि- पद्मानन्द। वीरचूडामणि - श्लोक- 800। पटल- 11 । वीरतन्त्रम् - 15 पटलों में पूर्ण। ब्रह्मा-विष्णु संवादरूप । विषय- गुरूरहस्य, ताराप्रकरण, मन्त्रोद्धार, पूजा-क्रम, पुरश्चरणविधि, काम्यकर्म का निर्णय, दक्षिणकालिका प्रकरण, गुप्तविद्यारहस्य । व्यस्तसमस्तादि कथन, निग्रहकथन, महावीरक्रम, महाविद्यानुष्ठान, उग्रचण्डा प्रकरण, मन्त्रकोषादि कथन तथा रोग आदि का प्रतिकार। वीरतन्त्र (2) - हर-गौरी संवादरूप। श्लोक- 420| विषयवशीकरण, उच्चाटन, मोहन, स्तंभन, शान्तिक, पौष्टिकादि विविध उपाय। (3) - ब्रह्म-विष्णु संवादरूप। विषय- छिन्नमस्ता देवी की भोगमोक्षप्रद पूजाविधि, छिन्नमस्तामंत्र, मन्त्रोद्धार, ध्यान, आवाहन तथा कवच आदि। वीरधर्म-दर्पणम् (नाटक) - ले.- परशुराम नारायण पाटणकर । रचना सन 1905 में। 1907 में काशी से प्रकाशित। शृंगार का सर्वथा अभाव । प्रधान रस-वीर । पात्र प्रायःपुरुष । अंकसंख्यासात। भीष्म की शरशय्या से जयद्रथ-वध तक की कथावस्तु निबद्ध है। वीरनारायणचरितम् - ले.- वामन (अभिनवबाण भट्ट)। ई. 15 वीं शती। वीरपंचाशत्का - ले.- विमलकुमार जैन । कलकत्ता निवासी। वीरपृथ्वीराजम् (नाटक) - ले.- मथुराप्रसाद दीक्षित । रचना सन् 1940 में। प्रथम अभिनय सोलन के दुर्गा भगवती महोत्सव पर। देशोत्थान तथा लोकप्रबोधन हेतु लिखित। मंच पर धनुर्विद्या की अत्युच्च उपलब्धियां दर्शित। अंकसंख्या- छः। जयचन्द्र राठोड की देशद्रोहिता तथा पृथ्वीराज चौहान की उदात्तता दर्शित। अन्त में महंमद घोरी का पृथ्वीराज द्वारा वध और आत्मघात। वीरप्रतापम् (नाटक) - ले.-मथुराप्रसाद दीक्षित । रचना सन 1935 में। प्रकाशित अंकसंख्या- सात। भारतीय स्वतंत्रता संग्रम में युवकों को प्रोत्साहित करने हेतु लिखित। राणा प्रताप की जीवनगाथा वर्णित । कथाबन्ध शिथिल है। एकोक्तियों की प्रयोग इस की विशेषता है। वीरभद्रतन्त्रम् - (नामान्तर- उड्डीशकोषशास्त्र तथा उड्डीशमन्त्रसार) शिव-पार्वती संवादरूप। वीरभद्रमहातन्त्रम् - श्लोक- 336। वीरभद्र-विजयम् - ले.- कविराज अरुणागिरिनाथ (द्वितीय) ई. 16 वीं शती। पारेन्द्र अग्रहार के निवासी। डिम कोटि का रूपक जिसमें चार अंक हैं। वीरभद्र द्वारा दक्ष के यज्ञ का विनाश इसकी कथावस्तु है। प्रथम अभिनय भूपतिरायपुरम् में राजनाथ के महोत्सव में हुआ। वीरभद्रविजयचम्पू - ले.- एकामरनाथ (2) ले.- मल्लिकार्जुन । वीरभद्रसेनचंपू - ले.- पद्मनाथ मिश्र। रचना- 1577 ई. में। यह चम्पू-काव्य 7 उच्छवासों में विभक्त है, जिसे कवि ने महाराज रीवा-नरेश रामचंद्र के पुत्र वीरभद्रदेव के आग्रह पर रचा था। इसमें वीरभद्रदेव का चरित्र वर्णित है और कथा के क्रम में मंदोदरी व बिभीषण का भी प्रसंग उपनिबद्ध किया गया है। इसमें वीर भद्रदेव की समृद्धि का अतिसुंदर वर्णन है। इसका प्रकाशन, प्राच्यवाणी-मंदिर, 3 फेडरेशन स्ट्रीट, कलकत्ता-9 से हो चुका है। वीरभा . लेखिका- लीला राव दयाल। एकांकिका। विषययुवावस्था में सर्वस्व त्याग कर देशहितार्थ जीवन अर्पित करने वाली वीरभा नामक सत्याग्रह आन्दोलन की अग्रणी नायिका का चरित्र। वीरभानूदयकाव्यम् - ले.- माधव। पिता- अभयचंद्र ऊरव्य । माता- दुर्गा। बघेलखण्ड के नरेश वीरभानु के चरित्रवर्णन के रूप में काव्य लिखा गया है। काव्य में गहोरा राजधानी एवं निकटवरर्ती क्षेत्रों का सजीव वर्णन किया गया है। इसका काल 16वीं सदी के बीच माना जाता है। 346/ संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड For Private and Personal Use Only
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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