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भी सर्वेश्वर, कौन है यह भी पूछा है। इस प्रश्न के उत्तर में महाशंभु कहते हैं कि राम ही सगुण-निर्गुण ब्रह्म से परे हैं, जो अयोध्या में रासलीला करते हैं। उनके अनेक मंत्र हैं जिनमें “रां रामाय नमः", "श्रीमद्रामचन्द्र-चरणौ शरणं प्रपद्ये", "श्रीमते रामचन्द्राय नमः" तथा "ओम् नमः सीतारामाभ्याम्" ये मंत्र श्रेष्ठ हैं। राम ही जगत् की उत्पत्ति के कारण हैं। सभी अवतार रामचंद्र के चरणों से उत्पन्न होते हैं। यह उपनिषद् अयोध्या में प्रकाशित किया गया तथा इस पर "रामतत्त्व प्रकाशिका" नामक टीका भी लिखी गई है। विश्वसंस्कृतम् • होशियारपुर से विश्वबन्धु के सम्पादकत्व में यह शोध-प्रधान त्रैमासिकी पत्रिका प्रकाशित हो रही है। विश्वसारतन्त्रम् - ले.- महाकाल। सब तन्त्रों का सारभूत महातन्त्र । श्लोक- 51081 8 पटलों में पूर्ण। विषय- आगम नामनिरुक्ति, माया (मूल प्रकृति) का माहात्म्य, सृष्टि, महामाया की प्रसन्नता से हरि, हर आदि सब की प्रसन्नता, बिन्दु और नाद का स्वरूप, पीठपूजा का प्रकार, योगलक्षण, गुरुशिष्य-लक्षण, षोडश मातृकाएं, विविध चक्रों का वर्णन, दीक्षा-भेद वर्णन पूर्वक दीक्षाविधि, गुरु और शिष्य के कर्तव्य, पुरश्चरण, छिन्नमस्तामन्त्र, प्रचण्डचण्डिकास्तोत्र, मद्य, मांस आदि का बलिदान पूर्वक रजस्वला की नानाविध साधनाओं का विधान, कालिकार्चनविधि, दुर्गामन्त्र, गुह्यकालिका के बीजमन्त्र, महिषमर्दिनी, त्रिपुरसुन्दरी के बीजमंत्र तथा पूजोपयोगी द्रव्यों का निरूपण इ.। विश्वश्रितम् - सन 1906 में मद्रास से ही एम.वीर भद्राचार्य के सम्पादकत्व में यह धार्मिक पत्रिका प्रकाशित होने लगी। विश्वादर्श- ले.- कविकान्त सरस्वती। पिता - आदित्याचार्य । काशीनिवासी। विषय- आचार, व्यवहार, प्रायश्चित्त एवं ज्ञान नामक चार काण्डों में विभाजित । प्रथम काण्ड में 42 स्रग्धरा श्लोकों एवं एक अनुष्टुप् छन्द में शौच, दन्तधावन, कुशविधि, स्नान, संध्या, होम, देवतार्चन, दान के आह्निक कृत्यों पर, विवेचन दूसरे काण्ड (व्यवहार) में 44 श्लोक विभिन्न छन्दों (मालिनी, अनुष्टप् मन्दाक्रान्ता आदि); में तीसरे काण्ड (प्रायश्चित्त) में 53 श्लोकों (सभी स्रग्धरा, केवल अन्तिम मालिनी) में एवं चौथे काण्ड (ज्ञानकाण्ड) 53 श्लोकों (शार्दूलविक्रीडित, शिखरिणी, अनुष्टुप् आदि छन्दों) में वानप्रस्थ, संन्यास, त्वंपदार्थ, काशीमाहात्म्य पर विवेचन है। लेखक के आश्रयदाता काशीस्थ नागार्जुन के पुत्र धन्य या धन्यराज थे। विश्वामित्रकल्प - श्लोक- 1600। विषय- द्विजों के दैनिक कृत्यों का वर्णन- प्रातःकाल उठकर आत्मचिन्तन का प्रकार, देवताध्यान की रीति, दन्तधावनादि प्रातःकृत्य, स्नानविधि, रुद्राक्षधारण, भूतशुद्धि आदि का प्रकार, त्रिकाल सन्ध्याविधि, वेदादि मन्त्रपाठरूप ब्रह्मयज्ञविधि, अन्नशुद्धि आदि के प्रकार, प्रस्तुतात्र होम प्रकार रूप वैश्वदेव विधि, गोग्रास आदि भोजनविधि,
भक्ष्य पदार्थों की विधि, अभक्ष्य पदार्थों का निषेध, दीक्षा के लिए वेदी का निर्माण, दीक्षा-प्रकार, गायत्री के पुरश्चरण की विधि, नित्य कर्त्तव्य कर्मों की विधियां, गायत्री मन्त्र से होमविधि का कथन इ.। विश्वामित्रयागम् - ले.- प्रा. सुब्रह्मण्य सूरि । विश्वामित्रसंहिता - ले.- श्रीधर। श्लोक- 2800। यह गायत्री-मन्त्र-प्रयोग और माहात्म्य का प्रतिपादक ग्रन्थ है। विश्वावसुगन्धर्वराजतन्त्रम्- रुद्रयामलान्तर्गत । श्लोक - 4251 विश्वेश्वरपद्धति- ले.- विश्वेश्वर। विषय - संन्यासधर्म । संस्कारमयूख में वर्णित । विश्वेश्वरीपद्धति- (या यतिधर्मसंग्रह) - ले.- अच्युताश्रम । चिदानन्दाश्रम के शिष्य। विश्वेश्वरीस्मृति- ले.- अच्युताश्रम । विषघटिकाजननशान्ति - (या विषनाडीजननशान्ति) वृद्धगार्यसंहिता से संगृहीत । विषय- "विषघटिका' नामक चार अशुभ कालों में जन्म होने से उत्पन्न दुष्ट प्रतिफलों के निवारणार्थ धार्मिक कृत्य। विषमबाणलीला - ले.- आनंदवर्धन। ई. 9 वीं शती उत्तरार्ध । पिता- नोण। विषयतावाद - ले.- गदाधर भट्टाचार्य । विषहरमन्त्रम् - ले.- गणेश पण्डित। जम्मू निवासी। विषय
आयुर्वेद । विषापहारपूजा - ले.- देवेन्द्रकीर्ति । कारंजा के बलात्कार गण के जैन आचार्य। विषापहारस्तोत्रम्- ले.- धनंजय। ई. 7-8 वीं शती। विष्णुगीता - वैष्णवसम्प्रदाय का मान्यताप्राप्त ग्रंथ। परंपरा के अनुसार यह गीता देवलोक में विष्णु ने देवताओं को सुनाई और बाद में व्यास ने उसे सतों को सुनाई। इसके कुल 7 अध्याय हैं, तथा इस पर भगवद्गीता का काफी प्रभाव है। भगवद्गीता के अनेक श्लोक ज्यो के त्यों इसमें उद्धृत हैं। इसमें देवासुरों का युद्ध, भोगवृद्धि के कारण देवों का तपःक्षय, विष्णु द्वारा देवताओं को सदाचार का परामर्श, महाविष्णु का सगुण स्वरूप, शक्ति व मूल प्रकृति का तादात्म्य सृष्टि, स्थिति, लय आदि प्रकृति के कार्य, सृष्टि के आधारभूत धर्म-तत्त्व, त्रिगुणों का स्वरूप, चातुवर्ण्य की सृष्टि, कर्मयोग, ज्ञान-योग, लोकसंग्रह के लिये कर्मयोग की आवश्यकता, योग-भ्रष्ट की गति, भक्तियोग, सगुणोपासना, अवतारों का प्रयोजन, त्रिविध ज्ञान, विश्वरूप दर्शन विभूतियोग आदि विषयों का विवेचन है। विष्णुतत्त्व-निर्णय- ले.- मध्वाचार्य। ई. 12-13 वीं शती।
इसमें 3 परिच्छेद हैं। श्रुति की अद्वैतपरक व्याख्या का इसमें विस्तृत एवं निर्मम खंडन किया गया है। मध्वाचार्य की
342 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड
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