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होता है। अवदान कृतियां कुछ तो मूल रूप में प्रकाशित है। अन्य अनेक चीनी तथा तिब्बती अनुवादों से ज्ञात होती है। इनमें सुमागधावदान ऐसी ही आदर्श रचना है जिसमें अनाथपिंडद की कन्या सुमागधा की कथा वर्णित है। विजयविक्रम (व्यायोग)- ले.- कविराज सूर्य। ई. 19 वीं . शती। जयद्रथ-वध का कथानक इसमें अंकित है। विजयदेवमाहात्म्यम्- ले.- श्रीवल्लभ पाठक। ई. 17 वीं शती। प्रस्तुत 21 सर्गो के महाकाव्य में कवि ने जैनमुनि विजयदेव सूरि का चरित्र वर्णन किया है। विजयनगर-संस्कृत-ग्रंथमाला - यह पत्रिका रामनगर (वाराणसी) से प्रकाशित हो रही है। विजयपारिजातम् (नाटक) - ले.- हरिजीवन मिश्र । ई. 17 वीं शती। विजयपुरकथा - ले.- पांडुरंग। 19 वीं शती। विषय- बिजापुर के यवन बादशाहों का चरित्र । विजय-प्रकाशम् (काव्य) - ले.- म. म. प्रमथनाथ तर्कभूषण (जन्म 1866)। विजयबलिकल्प - श्लोक- 1075| विषय- भगवान् शिव के लिए बलि देने की विधि। विजयविजयचम्पू -ले.- व्रजकान्त लक्ष्मीनारायण । विजयविलास - ले.- रामकृष्ण। विषय- शौच, स्नान, संध्या, ब्रह्मयज्ञ, तिथिनिर्णय, आदि। कर्क, हरिहर एवं गदाधर के भाष्यों पर आधारित। विजया -ले.- श्रीमानशर्मा (सन् 1557-1607) सीरदेव कृत परिभाषावृत्ति पर टीका। (2) ले.- अनन्तनारायण मिश्र । ई. 13 वीं शती। विजयाकल्प - विषय- विद्याधिष्ठात्री सरस्वती देवी, (जो दुर्गाजी की पुत्री कही गई है) की पूजा-अर्चा के सांगोपांग मंत्र, जप, ध्यान आदि। विजयायन्त्रकल्प - आदिपुराण से गृहीत । श्लोक - 360। विजयांका (प्रेक्षणक) - ले.- डॉ. वेंकटराम राघवन् । क्वीन्स मेरी कॉलेज, मद्रास तथा संस्कृत एकेडेमी मद्रास में अभिनीत
ओपेरा। ऑल इण्डिया रेडियो, मद्रास द्वारा प्रसारित। विषयकर्णाटक के शासक महाराज चन्द्रादित्य की पत्नी विजयांका (सातवीं शती, उत्तरार्ध) का चरित्रचित्रण। विजयिनी-काव्य- ले.- श्रीश्वर विद्यालंकार । कलकत्ता निवासी। सर्गसंख्या-बारह। सन् 1902 में प्रकाशित। विषय- इंग्लैण्ड की महारानी विक्टोरिया का चरित्र । विज्ञप्ति - ले. गोसाई विठ्ठलनाथ। आध्यात्मिक काव्य की दृष्टि से यह एक नितांत सुंदर स्तोत्र है। अपने ज्येष्ठ बंधु के गो-लोक-वास के पश्चात् गद्दी के उत्तराधिकारी संबंधी मतभेद
के कारण, श्रीनाथजी का ड्योढी-दर्शन, आपके लिये बंद हो गया। तब दुखी होकर आप पारसोली चले गए और वहीं से नाथद्वारा के मंदिर में झरोखे की ओर देखा करते थे। इसी वियोग-काल में आपने प्रस्तुत "विज्ञप्ति" की रचना की थी। विज्ञप्तिमात्रतासिद्धि - ले.-वसुबन्धु । विषय- बौद्धों के विज्ञानवाद की दार्शनिक समीक्षा। सम्प्रति इस के दो पाठ उपलब्ध हैं(1) विंशिका (20 कारिकाएं) जिन पर वसुबन्धु ने भाष्य लिखा है, (2) त्रिशिका (30 कारिकाएं) जिन पर स्थिरमति ने भाष्य लिखा था। व्हेन सांग कृत इसका चीनी अनुवाद उपलब्ध है। इस पर से राहुल सांकृत्यायन ने अंशानुवाद किया हैं। प्रा.एस. मुखर्जी का आंग्लानुवाद तथा डॉ. महेश तिवारी का स्थिरमतिभाष्यसहित हिन्दी अनुवाद प्रकाशित हैं। विज्ञप्तिमात्रतासिद्धि-व्याख्या- ले.- धर्मपाल। आर्यदेव की रचना पर भाष्य । सन् 652 में व्हेनसांग ने चीनी अनुवाद किया। यह शून्यवाद से संबंधित महत्त्वपूर्ण रचना है। विज्ञप्तिशतकम् - ले.- श्रीनिवास शास्त्री । ई. 19 वीं शती। विज्ञप्रिया - ले.- महेश्वर न्यायालंकार। (ई. 17 वीं शती)। साहित्यदर्पण पर टीका। विज्ञानचिन्तामणि - 1888 में पट्टाम्बी (मलाबार) से इस पत्रिका का प्रकाशन आरंभ हुआ। संपादक थे पुनशेरि नीलकण्ठ शर्मा। इसका प्रकाशन मास में तीन बार हुआ करता था। बाद में इसका साप्ताहिक प्रकाशन होने लगा। संस्कृत-चन्द्रिका के कई अंकों में विज्ञान-चिन्तामणि के सम्बन्ध में सूचनाएं उपलब्ध होती हैं। प्रारंभ में इसका प्रकाशन ग्रंथ लिपि में होता था। बाद में देवनागरी लिपि में होने लगा। इसमें प्रायः सभी प्रकार के समाचारों के अलावा उच्च कोटि का साहित्य प्रकाशित हुआ करता था। केरल महाराजा से आर्थिक सहायता मिलने के कारण इसके सामने धनाभाव का संकट कभी उपस्थित नहीं हुआ। विज्ञानदीपिका - ले.- पद्मपादाचार्य। ई. 8 वीं शती। विज्ञानभैरव (या विज्ञानभट्टारक)- रुद्रयामल के अन्तर्गत । टीकाकार- शिवोपाध्याय। टीका का नाम- उद्योतसंग्रह । श्लोक14401 विज्ञानललितम् - ले.- हेमाद्रि। विटराजविजयम् (भाण)- ले.- कोच्चुण्णि भूपालक (जन्म, 1858)। त्रिचूर के मंगलोदयम् से प्रकाशित। विषय- बूढी वेश्या से युवा रसिया का हास्यपूर्ण समागम । विटवृत्तम् -ले.- सौमदत्ति। विषय- वेश्या और विट का वैषयिक संबंध। विठ्ठलीयम् - ले.- पुण्डरीक विठ्ठल । विषय- (औदीच्य) (हिंदुस्थानी) संगीत का व्यवस्थापन । विकटनितम्बा - ले.- डॉ. वेंकटराम राघवन् । यह प्रेक्षणक
संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड / 331
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