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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir से बचने हेतु स्वयं विष्णु पराशर के पुत्र बन अवतार लेने का निश्चिय करते हैं। दाशराज की कन्या वासवी पर पराशर लुब्ध होते हैं और उसे वर देते हैं कि उनके पुत्र को जन्म देकर वह फिर कन्या बनकर चक्रवर्ती वर प्राप्त करेगी। वासवी पुत्र को जन्म देती है, और कुछ दिन बाद आकाशवाणी होती है कि पराशर तथा वासवी के पुत्र व्यास ने देवताओं को गौतम के शाप से मुक्त किया है। वासवीपाराशरीयप्रकरणम्- ले.- मुडम्बी वेंकटराम नरसिंहाचार्य। वासिष्ठचरितम् - ले.- अनन्ताचार्य। प्रतिवादि-भयंकर मठ के अधिपति । मंजुभाषिणी में क्रमशः प्रकाशित। वासिष्ठवैभवम् - ले.- ब्रह्मश्री कपालीशास्त्री। लेखक के विद्वान् गुरु योगी वासिष्ठ गणपतिमुनि का आधुनिक तन्त्रानुसार चरित्र। वासुदेव-उपनिषद् - एक लघु गद्य वैष्णव उपनिषद् जो सामवेद से सम्बध्द माना जाता है। वासुदेव द्वारा नारद को बताये गये इस उपनिषद् में ऊर्ध्वपुंड्र लगाने के बारे में जानकारी दी गई है। इस सम्बन्ध में एक मंत्र इस प्रकार है गोपीचंदन पापघ्न विष्णुदेहसमुद्भव। चक्रांकित नमस्तुभ्यं धारणन्मुक्तिदो भव ।। इस पीतवर्ण गोपीचन्दन के धारण करने पर मुक्ति प्राप्त होती है। गीपीचन्दन न मिलने पर तुलसी की जडों को पीस कर मिट्टी व पानी में भिगोकर ऊर्ध्व पुंड लगाने का परामर्श भी दिया गया है। वासुदेवचरितम्- ले.- वेणीदत्त । वास्तुप्रबंध- प्राप्तिस्थान- खेलाडीलाल संस्कृत बुकडेपो, कचौडी गल्ली, वाराणसी। वास्तुमाणिक्यरत्नाकर - प्राप्तिस्थान- खेलाडीलाल संस्कृत बुकडेपो, कचौडी गल्ली, वाराणसी। वास्तुमुक्तावली- हिन्दी अनुवाद सहित प्रकाशित । प्राप्तिस्थान-भार्गव पुस्तकालय, गायघाट, वाराणसी। वास्तुयागतत्त्व - ले.- रघुनन्दन । वाराणसी (सन् 1883) एवं कलकत्ता (1885) में प्रकाशित । वास्तुरत्नाकर - हिन्दी अनुवादसहित प्रकाशित। प्राप्तिस्थानचौखंबा संस्कृत सिरीज, वाराणसी। वास्तुरत्नावली- हिन्दी अनुवाद सहित प्रकाशित । प्राप्तिस्थानचौखंबा संस्कृत सिरीज, वाराणसी। वास्तुराजवल्लभ - विषय- शिल्पशास्त्र । ई. 1881 में गुजरात में प्रकाशित। हिन्दी अनुवाद सहित वाराणसी में प्रकाशित । प्राप्तिस्थान- भार्गव पुस्तकालय, गायघाट, वाराणसी। वास्तुविद्या- ले.- विश्वकर्मा। त्रिवेंद्रम संस्कृत सिरीज द्वारा सन् 1940 में प्रकाशित। वास्तुवेधटीका- ले.- श्रीकण्ठाचार्य। श्लोक-700।। वास्तुशान्ति- श्लोक- 1100। वासनाविधिपर्यंत। वास्तुशान्ति- ले.- रामकृष्ण । नारायणभट्ट के पुत्र । आश्वलायनगृह्य के अनुसार कमलाकरभट्ट के शान्तिरत्न में वर्णित । वास्तुशान्तिप्रयोग - शाकलोक्त। वास्तुशिरोमणि - ले.- शंकर। माननरेंद्र के पुत्र श्यामशाह के आदेश से लिखित। वास्तुसर्वस्वम् - मद्रास के श्री. व्ही. रामस्वामी शास्त्री एण्ड सन्स द्वारा तेलगु अनुवाद सहित इसका प्रकाशन हुआ है। वास्तुसार - ले.- सूत्रधार मंडन । प्रकाशक- मगनलाल करमचंद, अहमदाबाद। वास्तुसर्वस्वसंग्रह - बंगलोर में सन् 1884 में प्रकाशित । वास्तुसारणी - हिन्दी अनुवाद सहित प्रकाशित। प्राप्तिस्थानचौखंबा संस्कृत सीरिज, वाराणसी। वास्तुसार-प्रकरणम्- विषय-शिल्पशास्त्र । गुजरात में प्रकाशित। विचक्षणा- सन् 1905 में पेरम्बेदूर (मद्रास) से इस पत्रिका का प्रकाशन आरंभ हुआ। इसके सम्पादक थे- क, क. शुद्धसत्त्व दोड्याचार्य। इस पत्रिका के केवल दो-तीन अंक ही प्रकाशित हुए। विचारनिर्णय - ले.- गोपाल न्यायपंचानन भट्टाचार्य । विचित्रकर्णिकावदानम् - 32 कथाओं का संग्रह। अतिविचित्र विषयसूची तथा परिवर्तित स्वरूप। कुछ कथाएं अवदानशतक से तथा अन्य व्रतावदान से ली गई है, यत्र तत्र भ्रष्ट तथा शुद्ध संस्कृत गाथाएं है कहीं तो पालिभाषा का भी दर्शन वासुदेवनन्दिनीचम्पू - ले.- गोपालकृष्ण । वासुदेवविजयम् (महाकाव्य) - ले.- वासुदेव। केरलीय कवि। इस महाकाव्य में भगवान् श्रीकृष्ण (वासुदेव) का चरित्र वर्णित है। यह काव्य अधूरा प्राप्त है जिसमें केवल 3 सर्ग है। कवि ने पाणिनि-सूत्रों के दृष्टांत प्रस्तुत किये हैं। इस अपूर्ण महाकाव्य की पूर्ति नारायण नामक कवि ने “धातुकाव्य" लिखकर की है। इसके कथानक का अंत कंस-वध में होता है। वासुदेवी (या प्रयोगरत्नमाला)- मुंबई में सन् 1884 ई. में प्रकाशित । विषय- मूर्तिनिर्माणप्रकार, मण्डपप्रकार, विष्णुप्रतिष्ठा, जलाधिवास, शान्तिहोमप्रयोग, नूतनपिण्डिकास्थापन, जीर्णपिण्डिका में देवस्थापनप्रयोग इत्यादि। वास्तुचन्द्रिका - 1. ले.- करुणाशंकर। 2. ले.- कृपाराम। वास्तुतत्त्वम् - ले.- गणपतिशिष्य। सन् 1853 में लाहौर में प्रकाशित। वास्तुपूजनम् - श्लोक- 100। वास्तुपूजनपद्धति- 1. ले.- याज्ञिकदेव । 2. ले.- परमाचार्य। वास्तुप्रदीप - ले.- वासुदेव । 330/ संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड For Private and Personal Use Only
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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