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अर्चनातिलक - पंचरात्र आगम के आधार पर नृसिंह वाजपेयी द्वारा विरचित। श्लोक 570। इसमें 13 अध्यायों में विष्णु की षट्काल पूजा वर्णित है। यह वैखानस आगमसम्बन्धी ग्रंथ है। अर्जिता - ले. परितोष मिश्र। ई. 13 वीं शती। अर्जुनचरितम् - ले. आनंदवर्धन (ध्वन्यालोककार)। ई. १ वीं शती (उत्तरार्ध)। पिता- नोण। अर्जुनभारतम् - इस नाम की कई रचनाएं हैं। ले.- अर्जुन यह नागार्जुन है। ग्रंथ अंशमात्र उपलब्ध है। विषय-संगीत। अर्जुनराज - ले. हस्तिमल्ल। पिता- गोविंदभट्ट। जैनाचार्य । अर्जुनादिमतसारम् - ले. मदभूषी वेंकटाचार्य । पिता-अनन्ताचार्य । नैध्रुव काश्यप गोत्री। ई. 19 वीं शती। अर्जुना पारिजात - (नामान्तर- अर्जुनार्चनकल्पलता) श्लोक300, ले.- रामचंद्र कवि। इसमें कार्तवीर्यार्जुन की पूजा प्रतिपादित है। इस पर पद्माकर ने 2000 श्लोकों की व्याख्या लिखी है। अर्थरत्नावली - पटल-5। यह चतुःशती नामक शाक्ततन्त्र पर विद्यानन्दनाथ विरचित टिप्पणी है। अर्थकाण्डम् - ले. हेमाद्रि । ई. 13 वीं शती । पिता- कामदेव। अर्थचित्रमणिमाला - ई. 20 वीं शती (पूर्वार्ध)। कविम.म.टी. ' गणपतिशास्त्री, (भासनाटकों के प्रकाशक) विषय-त्रावणकोर-नरेश विशाखराम वर्मा का स्तवन, विविध अलंकारों के प्रयोग से। अर्थरत्नावली - श्लोक- 6501 ले. विमलस्वात्मशम्भु। विषयवामकेश्वर तंत्र की व्याख्या। अर्थशतकम् - रचयिता पं.जयराम पाण्डे, मुम्बई के प्रसिद्ध व्यापारी। विषय- आधुनिक अर्थव्यवस्था। धनवितरण का औचित्य श्लोक 21 से 40, वस्तुमूल्य विचार 41 से 50, धनवृद्धि विचार 52 से 69, जनता का दुख दूर करने का उपाय 70 से 81, पूंजीवाद की निंदा, साम्यवाद का औचित्य 82 से 961 अधर्मखरार्भकम् - कवि- वा.आ. लाटकर, काव्यतीर्थ। अरघट्टघटम् - ले. स्कंद शंकर खोत । (नागपूर निवासी)। ई. 20 वीं शती। एक अल्पसा प्रहसन । अरविन्दचरितम् - योगी अरविन्दजी का पं. यज्ञेश्वरशास्त्री कृत। चरित्र । शारदा प्रकाशन, पुणे-301 अरुणाचलपंचरत्नदर्पण - ले. कपाली शास्त्री। वासिष्ठ गणपतिमुनि के ग्रंथ का भाष्य। कपाली शास्त्री गणपतिमुनि के शिष्य थे। अरुणामोदिनी - आनन्दलहरी (सौन्दर्यलहरी का प्रथमांश) पर कामेश्वरकृत टीका। पिता- गंगाधर, माता-नागमाम्बा और पितामह-मल्लेश्वर । प्रकाशन गणेश एण्ड को. मद्रास । सन 1957 ।
अलंकारकलानिधि - ले. भट्टट श्रीमथुरानाथ शास्त्री । जयपुरनिवासी। ई. 20 वीं शती। अलंकारकुलप्रदीप - ले.- विश्वेश्वर पाण्डे । अलंकारकौस्तुभ - ले. विश्वेश्वर पाण्डे। पाटिया (अलमोडा ज़िला) के निवासी। ई. 18 वीं शती (पूर्वार्ध)। प्रस्तुत ग्रंथ में नव्यन्याय की शैली का अनुसरण करते हुए 61 अलंकारों का तर्कपूर्ण व प्रामाणिक विवेचन किया गया है। इसमें विभिन्न आचार्यों द्वारा बताये गए अलंकारों की परीक्षा कर, उन्हें मम्मट द्वारा वर्णित 61 अलंकारों में ही गर्तार्थ कर दिया गया है और रुय्यक, शोभाकार मित्र, विश्वनाथ, अप्पय दीक्षित एवं पंडितराज जगन्नाथ के मतों का युक्तिपूर्वक खंडन किया गया है। ग्रंथ के उपसंहार में विश्वेश्वर ने ग्रंथ-प्रणयन के उद्देश्य पर प्रकाश डाला है। अपने प्रस्तुत ग्रंथ पर विश्वेश्वर ने स्वयं ही टीका लिखी है, जो रूपकालंकार तक ही प्राप्त है। एक अच्छे कवि होने के कारण इन्होंने प्रस्तुत ग्रंथ में अनेक स्वरचित सरस उदाहरण दिये हैं।
अलंकारकौस्तुभ - ले. कर्णपूर। कांचनपाडा (बंगाल के निवासी) ई. 16 वीं शती। मम्मट प्रणीत काव्य प्रकाश की परम्परा का ग्रंथ। इस पर निम्न लिखित टीकाएं उपलब्ध हैं: (1) विश्वनाथ चक्रवर्ती कृत सारबोधिनी, (2) लोकनाथ चक्रवर्ती कृत टीका (3) वृन्दावन-चंद्र तर्कालंकार कृत अलंकार-कौस्तुभेदीधिति प्रकाशिका, (4) सार्वभौमकृत टिप्पणी इत्यादि। अलंकारचन्द्रोदय - ले. वेणीदत्त तर्कवागीश । ई. 18 वीं शती। अलंकारचिंतामणि - ले. अजितसेनाचार्य । अलंकारदर्पण - ले. म.म. शितिकण्ठ वाचस्पति। ई. 20 वीं शती। अलंकारदीपिका - 17 वीं शती के अंतिम चरण में आशाधर भट्ट (द्वितीय), द्वारा प्रणीत अलंकारशास्त्र विषयक ३ ग्रंथों में से एक । प्रस्तुत ग्रंथ अप्पय दीक्षित द्वारा रचित "कुवलयानंद" के आधार पर निर्मित है। इसमें 3 प्रकरण हैं। प्रथम प्रकरण में "कुवलयानंद" की कारिकाओं की सरल व्याख्या प्रस्तुत
की गई है। द्वितीय प्रकरण में "कुवलयानंद" के अंत में वर्णित रसवत् आदि अलंकारों की तदनुरूप कारिकाएं निर्मित
की गई हैं। तृतीय प्रकरण में संसृष्टि एवं संकर अलंकार के पांचों भेद वर्णित हैं और ग्रंथकार ने इन पर अपनी कारिकाएं प्रस्तुत की हैं। अलंकार-परिष्कार - ले. विश्वनाथ सिद्धान्तपंचानन । ई. 17 वीं शती। अलंकार मंजूषा - ले. देवशंकर पुरोहित राठोड। गुजरात निवासी। ई. 18 वीं शती। विषय- बड़े माधवराव और रघुनाथराव (राघोबा) इन दो पेशवाओं का अलंकारों के
संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड/17
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