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उदाहरणों में गुणवर्णन। अलंकारमकरन्द - ले. राजशेखर । अलंकारमणिदर्पण - ले. प्रधान वेंकप्प । श्रीरामपुर के निवासी। अलंकारमणिहार - ले. श्रीकृष्ण ब्रह्मतंत्र परकालस्वामी। मैसूर में परकाल मठ के अधिपति। ई. 18-19 वीं शताब्दी। काव्यविषय- वेङ्कटेश्वर स्तुति द्वारा अलंकारों का निदर्शन। इस कवि की 67 ग्रंथ रचनाएं मानी जाती हैं।। अलंकारमाला - ले. मुड्बी नरसिंहाचार्य। अलंकारमीमांसा - ले. शातलूरी कृष्णसूरि । अलंकारमुक्तावली - (1) ले.- विश्वेश्वर पाण्डेय। पाटिया (अलमोडा जिला) ग्राम के निवासी। ई. 18 वीं शती (पूर्वार्ध), (2) नृसिंहपुत्र राम। अलंकाररत्नाकर - ले. यज्ञनारायण दीक्षित । ई. 17 वीं शती। अलंकारशेखर - ले.- केशव मिश्र। ई. 16 वीं शती । अलंकारसंग्रह - (1) ले.- रंगनाथाचार्य । पिता- कृष्णम्माचार्य । (2) ले.- अमृतानंद योगी। अलंकारसर्वस्वम् - ले. राजानक रुय्यक। इस ग्रंथ में 6 शब्दालंकार (पुनरुक्तवदाभास, छेकानुप्रास वृत्त्यनुप्रास, यमक, लाटानुप्रास एवं चित्र) तथा 75 अर्थालंकारों एवं मिश्रालंकारों का वर्णन है। इसमें 4 नवीन अलंकार हैं। उल्लेख, परिणाम, विकल्प एवं विचित्र। इस ग्रंथ के 3 विभाग है- सूत्र, वृत्ति व उदाहरण। सूत्र एवं वृत्ति की रचना रुय्यक ने की है और उदाहरण विभिन्न ग्रंथों से लिये हैं।
इस ग्रंथ में सर्वप्रथम अलंकारों के मुख्य 5 भेद किये गए हैं और इनके भी कई अवांतर भेद कर, सभी अर्थालंकारों
को पांच मुख्य वर्गों में रखा गया है। 5 मुख्य वर्ग हैंसादृश्यवर्ग, विरोधवर्ग, शृंखलावर्ग, न्यायमूलवर्ग (तर्कन्यायमूल) वाक्यन्यायमूल एवं (लोकन्यायमूल) तथा गूढार्थप्रतीतिवर्ग।
इस ग्रंथ पर अनेक टीकाएं हुई हैं जिनमें सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण टीका जयरथकृत विमर्शिनी है। टीकाओं का विवरण इस प्रकार है।
(1) राजानक अलक - इनकी टीका सर्वाधिक प्राचीन है। इसका उल्लेख कई स्थानों पर प्राप्त होता है, पर यह टीका मिलती नहीं। (2) जयरथ - इनकी टीका "विमर्शिनी" काव्यमाला में मूल ग्रंथ के साथ प्रकाशित है। इनका समय 13 वीं शताब्दी का प्रारंभ है। इनकी टीका आलोचनात्मक व्याख्या है, जिसमें अनेक स्थानों पर रुय्यक के मत का खंडन एवं मंडन है। (3) समुद्रबंध - ये केरल नरेश रविवर्मा के समय में (ई. 13 श.) थे। इन्होंने अपनी टीका में रुय्यक के भावों की सरल व्याख्या की है जो अनंतशयन ग्रंथ माला (संख्या 40) से प्रकाशित हो चुकी है। (4) विद्याधर चक्रवर्ती - 14 वीं शताब्दी का अंतिम चरण (इनकी टीका
का नाम “संजीवनी" है। इन्होंने “अलंकारसर्वस्व" की श्लोकबद्ध "निकृष्टार्थकारिका' नामक अन्य टीका भी लिखी है। दोनों टीकाओं का संपादन डॉ. रामचंद्र द्विवेदी ने किया है। (प्रकाशक मोतीलाल बनारसीदास)। “अलंकारसर्वस्व" का हिन्दी अनुवाद डॉ. रामचंद्र द्विवेदी ने किया है जो संजीवन-टीका के साथ प्रकाशित हो चुका है, और दूसरा हिन्दी अनुवाद डॉ रेवाप्रसाद द्विवेदी द्वारा चौखंबा विद्याभवन से प्रकाशित है। अलंकारसार - ले.- सुधीन्द्र योगी। अलंकार-सुधानिधि - ले. सायणाचार्य। 13 वीं शती। विषयसाहित्यशास्त्र के विविध अलंकारों का सोदाहरण स्पष्टीकरण । दक्षिण भारत में यह ग्रंथ विशेष प्रचलित है। अलंकारसूत्रम् - ले.- चंद्रकान्त तर्कालंकार (ई. 20 वीं शती)। अलकामिलनम् - ले.-प्रा. द्विजेन्द्रलाल पुरकायस्थ। जयपुर निवासी। मेघदूत का पूरक खण्डकाव्य। वृत्त पृथ्वी। प्रथम सर्ग में यक्षपत्नी की विरहावस्था का 41 श्लोकों में वर्णन है और द्वितीय सर्ग में यक्ष दम्पति का विलास, 72 श्लोकों में वर्णित हैं। इस काव्य में छन्दोदोष यत्र तत्र मिलते हैं। अलब्धकर्मीयम् (प्रहसन) - ले.-के.आर. नैयर अलवाये, (केरल)। श्रीचित्रा, त्रिवेन्द्रम से 1942 में प्रकाशित । सागर वि.वि. में प्राप्य। नायक- यशोद्युम्न नामक बेकार युवक। नायिका- (पत्नी) भावना। अन्य पात्र- गैर्वाणी तथा काव्यकुमार । सुबोध शैली में एकोक्तियों तथा गीतों का समावेश है। अलिविलाससंलाप (काव्य) - रचयिता-गंगाधर शास्त्री। वाराणसी-निवासी। ई. 19 वीं शती।
अवचूरी व्याख्या - हैम धातुपाठ पर जयवीरगणी द्वारा लिखित व्याख्या । यह व्याख्या भुवनगिरि पर ई. 1580 में लिखी गई। अवच्छेदकत्वनिरुक्ति - ले. रघुनाथ शिरोमणि। विषयन्यायशाचा अवन्तिसुन्दरी - ले. डॉ. वेंकटराम राघवन् (श. 20)। महाकवि राजशेखर की पत्नी अवन्तिसुन्दरी द्वारा लिखित कतिपय श्लोकों पर आधारित प्रेक्षणक। पति-पत्नी में काव्य की उपजीव्यता पर हुई चर्चा इस नाटिका का विषय है। अवतारभेद-प्रकाशिका - ले.- काशीनाथ । विषय- वैष्णव
और शैवों के भेद तथा उनके लक्षण, महाविद्या आदि देवी-देवताओं की उत्पत्ति, विष्णु के अवतार और उनकी पूजा आदि (श्लोक 300)। अवदानकल्पलता - ले.- क्षेमेन्द्र। रचनाकाल 1052 ई.। अवदानमाला में यह प्रायः अन्तिम रचना है। भगवान बुद्ध के पूर्वजन्मों का छन्दोबद्ध आख्यान तथा महायान पंथ की षट्पारमिताओं का निरूपण इसका विषय है। इसमें 108 पल्लव (परिच्छेद) हैं। 107 पल्लवों की रचना के अनंतर, क्षेमेन्द्र की मृत्यु के उपरान्त सोमेन्द्र (पुत्र) ने अन्तिम पल्लव
18 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड
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