________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
दर्बलताएं भी हैं जिससे वे अतिमानव नहीं बन पाते। पूरे मानव के रूप में ही वे उपस्थित होते हैं।) कथानक के संयोजन में कवि की उत्कृष्ट वर्णनात्मक शक्ति प्रकट होती है। भारतीय जीवन की उदात्तता, सौंदर्य, नीति-विधान, राजधर्म, सामाजिक आदर्श की सुखकर अभिव्यक्ति रामायण में है।
संस्कृत वाङ्मय के सूचीकार डॉ. ओफ्रेक्ट के अनुसार वाल्मीकि रामायण की टीकाओं की संख्या 30 है। प्रमुख टीकाओं के नाम हैं :- रामानुजीयम्, सर्वार्थसार, रामायणदीपिका, बृहविवरण, लघुविवरण, रामायण-तत्त्वदीपिका, रामायणभूषण, वाल्मीकिहृदय, अमृतकतक, रामायणतिलक, रामायण-शिरोमणि, मनोहर और धर्माकूतम्। इनमें से "रामायणतिलक' सर्वाधिक लोकप्रिय टीका है। ऑफ्रेट ने ईश्वर दीक्षित, उमा महेश्वर, नागेश, रामनन्दतीर्थ, लोकनाथ, विश्वनाथ और शिवरसंन्यासी इन टीकाकारों का नामोल्लेख किया है। रामायण के रूपांतर - 1) रामायण कथासार : ले.-। सुब्बय्या शास्त्री। पिता- पुल्यवंशीय यज्ञेशसूरि। इस के सात काण्ड भिन्न भिन्न छंदो में लिखे हैं। 2) आर्यारामायणकथा- ले.- सूर्यकवि। 3) आर्यारामायण - लेखिका- सिस्टर बालंबाल। मद्रास निवासिनी।
4) तत्त्वसंग्रह -रामायणम् - ले.- रामब्रह्मानन्द। इसमें कवि ने अनेक काल्पनिक घटनाओं का समावेश किया है। 5) वाल्मीकिभावदीपनम् - ले.- अनन्तचार्य। रामकथा का आध्यात्मक दृष्टि से प्रतिपादन। 6) वासिष्ठ-रामायणम् (नामान्तर -ज्ञानवासिष्ठम्) - ले.- वाल्मीकि 1) यह वाल्मीकि रामायण का परिशिष्ट माना जाता है। इसमे छह अध्यायों में वसिष्ठ द्वारा राम को दिये गये योग तथा अद्वैत तत्त्वज्ञान विषयक प्रतिपादन है। इस पर आनंदबोधेन्द्र सरस्वती की टीका है।
7) वसिष्ठोत्तर-रामायणम्(अपरनाम -सीताविजयम्)- यह संपूर्ण उपलब्ध नहीं। इसके 12 वें प्रकरण में सीता द्वारा सौ मुखों के रावण का वध वर्णित है।
8) अद्भुत-रामायणम् (या अद्भुतोत्तर रामायणम्) - इसमें वाल्मीकि की मूल रामकथा को अद्भुतता पुट चढाया है। राम की असमर्थता पर सीता द्वारा शतमुख रावण का वध इसमें वर्णित है।
9) अध्यात्म-रामायणम् - शिव-पार्वती संवादरूप। ब्रह्माण्ड पुराणान्तर्गत। सात काण्डों के नाम वही हैं जो वाल्मीकि रामायण में है। इसमें राम तथा सीता, विष्णु और लक्ष्मी के अवतार के रूप में वर्णित हैं। स्थान स्थान पर संवादों में अद्वैत वेदान्त का कथन इसकी विशेषता है। 10) मूलरामायणम् तथा 11) आनन्दरामायणम् - इनमें
हनुमानजी का विशेष महत्त्व वर्णन किया है। ये ग्रंथ माध्व संप्रदाय में विशेष प्रचलित है। 12) सत्योपाख्यानम्- यह संभवतः किसी पुराण का अंश है। इसमें अनेक अवांतर घटनाओं का वर्णन किया है। १३) रामचरितम् - ले.- पद्मविजयगणी। रचना ई. 1596 में। हेमचंद्राचार्य की रचना पर आधारित यह गद्यपद्यात्मक रचना है। इस में राम के निधन की असत्य वार्ता सुनते ही लक्ष्मण की मृत्यु एवं लव-कुश द्वारा जैन धर्म का स्वीकार निवेदित किया है। रामायण-कथाविमर्श - ले.- वेंकटाचार्य। विषय- रामायण की महत्त्वपूर्ण घटनाओं का कालनिर्देश। रामायणकाव्यम् - कवियित्री मधुरवाणी। तंजौर के राजा रघुनाथ के आदेशानुसार इस काव्य की रचना हुई। सर्गसंख्या 14 । रामायणचम्पू - रचयिता धारानरेश परमारवंशी राजा भोज । इस चंपू काव्य की रचना वाल्मीकि रामायण के आधार पर हुई है। इस में बालकांड से सुंदरकांड तक की रचना राजा भोज ने की है तथा अंतिम युद्धकांड लक्ष्मणसूरि द्वारा रचा गया है। यह लक्ष्मण, गंगाधर और गंगाम्बिका का पुत्र तथा उत्तर सरकार प्रान्त का निवासी था। इसमें वाल्मीकि रामायण का भावापहरण प्रचुर मात्रा में है तथा बालकांड के अतिरिक्त शेष कांडों का प्रारंभ रामायण के ही श्लोकों से किया गया है। इसमें गद्य भाग कम हैं पद्यों का बाहुल्य है। रचयिता ने स्वयं ही वाल्मीकि का आधार स्वीकार किया है। रामायणचम्पू के टीकाकार- 1) नारायण (2) रामचन्द्र (3) कामेश्वर, (4) मानवेद, (5) घनश्याम तथा एक अज्ञात लेखक। लक्ष्मण की पूर्ति में उत्तर काण्ड भी समाविष्ट है। यह पूर्तिकार्य लक्ष्मण के व्यतिरिक्त अन्य कवियों ने भी किया है : जैसे 1) यतिराज 2) शंकराचार्य 3) हरिहरानन्द 4) वेंकटाध्वरि, 5) गरलपुरी शास्त्री तथा 6) राघवाचार्य ।
2) रामायणचम्पू - लेखिका- सुंदरवल्ली। नरसिंह अय्यंगार की कन्या। 3) ले.- रामानुज कवि। रामायणतत्त्वदीपिका (तीर्थीयम्) - ले.-महेशतीर्थ । रामायणतत्त्वदर्पण- ले.- नारायण यति। 15 अध्याय। विषयरामायण के 9 सत्यों तथा महत्त्व का दिग्दर्शन । रामायणतनिश्लोकि व्याख्या - ले.- पेरियवाचाम्बुल कृत इस मूल तमिल टीका का संस्कृत अनुवाद किसी अज्ञात लेखक ने किया है। रामायणतात्पर्यनिर्णय (रामायणतात्पर्यसंग्रह) - ले.- अप्पय दीक्षित। ई. 17 वीं शती। रामायणदीपिका- ले.- विद्यानाथ दीक्षित । रामायणभूषणम् - ले.- प्रबलमुकुन्दसूरि । रामायणमहिमादर्श- ले.- हयग्रीव शास्त्री। मद्रास प्रेसिडेन्सी
संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड / 307
For Private and Personal Use Only