________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
समाप्ति- काल 500 ई. पू. तथा उसमें किये गये प्रक्षेपों का समय 200 ई. पू. स्वीकार किया है। रामायण के सामाजिक चित्रण के आधार पर भारतीय विद्वान् इसका समय 500 ई.पू. मानते हैं। ए. श्लेगल के अनुसार इसकी रचना 1100 ई. पू. हुई। जी. गोरेसियों के अनुसार 1200 ई.पू. तथा वेबर के अनुसार इस पर बौद्ध मत का प्रभाव होने के कारण इसकी रचना और भी पिछे बाद में हुई है। याकोबी इसकी रचना 500 ई.पू. से 800 ई.पू. के बीच मानते हैं। पर भारतीय परंपरा के अनुसार रामायण की रचना त्रेतायुग के प्रारंभ में हुई थी किंतु इस बारे में अभी पूर्ण अनुसंधान की आवश्यकता है कि त्रेतायुग की काल-सीमा क्या हो। "महाभारत' में रामायण से संबंधित उपमा दृष्टांत मिलते हैं तथा "रामायण" । की कथा की चर्चा है। अतः इसकी रचना महाभारत के पूर्व हुई थी। इसमें बौद्ध धर्म या बुद्ध का उल्लेख नही है। अतः इसका वर्तमान रूप, बौद्ध धर्म के जन्म के पूर्व प्रचलित हो
चुका था। ___ वर्तमान समय में रामायण के 3 संस्करण प्राप्त होते हैं। इन तीनों मे पाठभेद दिखाई देता है। उत्तरी भारत, बंगाल व काश्मीर से उपलब्ध इन 3 संस्करणों में केवल श्लोकों का ही अंतर नहीं है अपितु कहीं कहीं तो इनके सर्ग तक भिन्न हैं।
वैदिक साहित्य में रामकथा के पात्रों के नाम यत्र तत्र मिलते हैं किन्तु उनके बारे में विस्तृत जानकारी नहीं मिलती। रामकथा के मूल स्रोत की खोज मे अपने अध्ययन के बाद डॉ. बेवर ने यह अनुमान लगाया है कि बौद्ध जातक में वर्णित दशरथजातक और होमर का इलियड- ये दो महाकाव्य रामकथा के मूल स्रोत हैं; किन्तु कामिल बुल्के के मतानुसार दशरथजातक वाल्मीकीय रामकथा का विस्तृत रूप ही है। होमर के "इलियड" में भी एक या दो प्रसंगों की रामकथा से समानता मात्र है।
रामकथा ऐतिहासिक है या काल्पनिक इस सम्बन्ध में विद्वानों द्वारा अनेक तर्क लगाये जा रहे हैं। डॉ. याकोबी के अनुसार रामायण के अयोध्या काण्ड की घटनाएं मात्र ऐतिहासिक हैं, शेष काल्पनिक हैं किन्तु अनेक विद्वान् सम्पूर्ण रामकथा को ऐतिहासिक मानते हैं। वाल्मीकि रामायण का समग्र अध्ययन करने पर उसकी ऐतिहासिकता पर किसी को सन्देह नहीं रहता। डॉ. बेवर की मान्यता है कि रामकथा इतिहास नहीं अपि तु रूपक मात्र है जिसके माध्यम से आर्य संस्कृति व कृषिविद्या का प्रचार किया गया।
बौद्ध त्रिपिटिकों में रामकथाओं का उल्लेख है। हरिवंश में एक श्लोक है
"गाथा अप्यत्र गायन्ति ये पुराणविदो जनाः । रामे निबद्धतत्त्वार्थमाहात्म्यं तस्य धीमतः ।। अर्थात्- पुराणवेत्ता जन राम विषयक तत्त्वार्थ जिनमें निबद्ध
है, तथा उस धीमान पुरुष की महत्ता जिसमें है, ऐसी गाथाओं को इस स्थान पर गाते हैं। ये सारी गाथाएं वाल्मीकि के पूर्वकालीन हैं।
कामिल बुल्के के अनुसार रामविषयक मूल आख्यान ई.पूर्व 81 वें शतक में निर्माण हुए। इन्ही आख्यानों को संकलित कर वाल्मीकि ने रामायण नामक महाकाव्य में सूत्रबद्ध प्रस्तुत किया है।
इसी प्रकार रामायण पहले या महाभारत पहले इस संबंध में भी विद्वानों में मतभेद पाये जाते हैं। किन्तु दोनों संहिताओं पर रामायण के अनेक पात्रों का उपमाओं के रूप में उपयोग किया गया है। यह बात यही सिद्ध करती है कि रामायण की रचना पहले हुई है।
उत्तर काल में हिंदु समाज के धार्मिक साहित्य में, संस्कृत साहित्य की प्रत्येक शाखा में रामकथा को महत्त्वपूर्ण स्थान मिला है। हरिवंश में तथा प्राचीनतम पुराणों में राम को विष्णु का अवतार माना गया है। स्कंद, पद्य व भागवत पुराण में रामकथाओं का समावेश है।
रामभक्ति के प्रसार के साथ अनेक संहिताओं और ग्रंथों का निर्माण होता गया। इनमें अध्यात्म, अद्भुत, आनंद व तत्त्वसंग्रह नामक रामायण विशेष उल्लेखनीय हैं।
संस्कृत ललित साहित्य में रघुवंश , भट्टिकाव्य, प्रतिमा, अभिषेक, महावीरचरित, उत्तररामचरित, जानकीहरण, कुंदमाला, अनर्घराघव, बालरामायण, महानाटक इत्यादि अनेकानेक काव्य-नाटकों मे वाल्मीकि की रामकथा ही आधारभूत विषय है। - आधुनिक भारतीय भाषाओं में भी रामकथा को आदिस्थान प्राप्त है। हर भारतीयभाषा में रामायण की रचना हुई है और न केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी रामकथा का व्यापक प्रसार हुआ है।
रामायण को भारतीय संस्कृति की आधारशिला माना गया है। इसी प्रकार रामराज्य की शासन-प्रणाली आदर्श मानी जाती है। सत्य, सदाचार और कर्तव्यपालन का अनुकरणीय आदर्श वाल्मीकि ने रामायण के माध्यम से भारतीयों के समक्ष प्रस्तुत किया।
वाल्मीकि रामायण ऐसा महाकाव्य है जिसमें दो भिन्न संस्कृतियों की सभ्यताओं के संघर्ष की कहानी है। आदिकवि की सौंदर्यचेतना कवित्वमयी है। संस्कृत काव्यों के इतिहास में आदिकवि वाल्मीकि "स्वाभाविक शैली' के प्रवर्तक माने जाते हैं जिसका अनुगमन अश्वघोष, कालिदास प्रभृति श्रेष्ठ कवियों ने पूरी सफलता व पूरे मनोयोग के साथ किया है। मानवी प्रकृति के चित्रण मे भी वाल्मीकि ने सूक्ष्म पर्यवेक्षण शक्ति का परिचय दिया है। राम, सीता, भरत, हनुमान, बिभीषण, रावण आदि के चरित्रांकन में चरित्रचित्रण का वैविध्य दिखाई देता है। (इनके राम में मानवसुलभ गुणों के अतिरिक्त मानवीय
306/ संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड
For Private and Personal Use Only