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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra कॉलेज के प्रथम संस्कृत पण्डित । ई. 19 वीं शती उत्तरार्ध । विषय- अनेक विवाद्य घटनाओं का 5 प्रकरणों में विवेचन । रामायणविषमपदार्थ व्याख्यान- ले. भट्ट देवराम । वाल्मीकि रामायण के कठिन भागों का विवेचन इस की विशेषता है। रामायणसंग्रह- ले. महामहोपाध्याय लक्ष्मणरि ई. 19-20 वीं शती । 2) ले. वरदादेशिक पिता श्रीनिवास । रामायणसार- ले. अग्निवेश। विषय रामायण की घटनाओं का सुसंगत कालनिर्देश शार्दूलविक्रीडित छन्द में रचना । रामायणसारचन्द्रिका ले. श्रीनिवास राघवाचार्य श्रीरंगम् के निवास । रामायणसारसंग्रह ले. ईश्वर दीक्षित। 2) ले. वेंकटाचार्य । विषय- रामायणीय घटनाओं का काल तथा तिथिनिश्चय । (3) नीलकण्ठ दीक्षित । ई. 17 वीं शती। यह एक भक्तिपर काव्य है। (4) ले वरदराज (5) ले. अप्पय्य दीक्षित । रामायणसारसंग्रह ले तंजौर नरेश रघुनाथ नायक ई. 17 वीं शती । रामायणसारस्तव - कवि अप्पय दीक्षित। 17 वीं शती । विषयरामचरित । रामायणान्तरार्थ ले. - बेल्लमकोण्ड रामराय । आंध्रनिवासी । ले. - रंगाचार्य । वादिहंस कुल के गोपाल रामायणाव के शिष्य । - - रामायणार्थ- प्रकाशिका - ले. लक्ष्मणसुत वेंकट । कुछ रामायणी घटनाओं का समालोचन । - रामार्चनचन्द्रिका ले आनन्दवन । गुरु-मुकुन्दवन । सांगोपांग रामपूजा का प्रतिपादक तंत्र। 5 पटलों में पूर्ण विषयपूजासंबंधी विविध विषय तथा राम मंत्रोद्धार, आचमन आदि साधारण कर्त्तव्य । विविध न्यासों का प्रतिपादन । 3 ) ध्यान, होम, पात्रासादन, अन्तयोग पीठपूजा स्तोत्र आदि आठ प्रकार के मंत्र इत्यादि । - www.kobatirth.org - रामार्चनचन्द्रिका - 2 भविष्योत्तरपुराणान्तर्गत । श्लोक- लगभग2050। 3) ले.- कुलमणि शुक्ल । 4) ले. अच्युताश्रम । रामार्चनपद्धति ले. - रामानन्द । 2) ले.- गोविन्द दशपुत्र । प्रकाशानन्दनाथ के शिष्य । श्लोक- 1100 निर्माणकालशकाब्द 1664 1 रामार्चनरत्नाकर ले. केशवदास । रामार्चनसोपान ले. शिवलाल शर्मा श्लोक 6001 । 600। रामार्चनसोपान- श्लोक लगभग 550 1 रामाचपद्धति श्लोक लगभग 380 रामावतारम् ले. प्रा. सुब्रह्मण्यसूरि । - रामेश्वरविजय ले. श्रीकृष्ण ब्रह्मतंत्र, परकालस्वामी । ई. 19 वीं शती । 308 / संस्कृत वाङ्मय कोश ग्रंथ खण्ड - - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रामेश्वरविजयचम्पू - ले. श्रीकृष्ण । रामोत्तरतापनीय उपनिषद् अर्थववेद का एक उपनिषद् । इसमें राम की सगुण व निर्गुण भक्ति का विवेचन है। रामाय नमः रामचंद्राय नमः व रामभद्राय नमः इन तीन तारक मंत्रों का क्रमशः ओंकार स्वरूप, तत्स्वरूप व ब्रह्मस्वरूप बताया गया है। राम और ओम् में कोई भेद नहीं- दोनों समान तारक ब्रह्म हैं। इसी प्रकार राम, लक्ष्मण, भरत व शत्रुघ्न को चतुष्पाद ब्रह्म के वासुदेव, संकर्षण, अनिरुद्ध व प्रयुन रूपों से जोडकर रामोपासना और कृष्णोपासना में अभेदता प्रस्थापित की गई है। इस उपनिषद् में लक्ष्मण को रामब्रह्म का प्रथम पाद माना गया है। ओंकार के "अ" से लक्ष्मण की उत्पत्ति होकर वह जाग्रत अवस्था का स्वरूप है। शत्रुघ्न रामब्रह्म का द्वितीय पाद है जिसकी उत्पत्ति ओंकार के 'उ' से हुई तथा वह तेज सुस्वभाव का है। भरत की उत्पत्ति ओंकार के 'म' अक्षर से हुई तथा वह प्रज्ञास्वरूप है । रामब्रह्म का वह तृतीय पाद है । राम की उत्पत्ति ओंकार की अर्धमात्रा से होकर वह ब्रह्मानंद स्वरूप है। रामोदयम् (नाटक) - ले. श्रीवत्सलांछन भट्टाचार्य ई. 16 वीं शती । रायमल्लाभ्युदय ले- पद्मसुन्दर । रावणचेटकम् - आगमोक्त श्लोक- लगभग 81 । यह शाबर मंत्र की तरह रावण मंत्र है। "ओम् नमो भगवते दशकण्ठाय दशशीर्षाय दशानन विंशतिनेत्रधराय" इत्यादि । इस में इसी तरीके से निम्न निर्दिष्ट चेटक भी है- रावणचेटक के अतिरिक्त रंजकचेटक भूजिचेटक विश्वावसुचेटक, चोलाचेटक, कुम्भकर्णचेटक, वाचाटचेटक, विश्वचेटक, रक्तकम्बल - चेटक, क्षोमचेटक, सागरचेटक, निशाचारचेटक, चुंचुकचेटक, सुपथचेटक, प्रेमचेटक, भवचेटक तथा अर्जुन चेटक । अर्जुनचेटक, कुम्भकर्णचेटक आदि रावण- चेटकवत् हैं। रावणपुरवधम् - ले. शिवराम ई. 19-20 वीं शती । रावणवधम् (भट्टिकाव्यम्) ले. महाकवि भट्टि । इन्होंने संस्कृत साहित्य में शास्त्रकाव्य लिखने की परंपरा का प्रवर्तन किया है। इस काव्य का मुख्य उद्देश्य है व्याकरण शास्त्र के शुद्ध प्रयोगों का संकेत करना। इस में भट्टि पूर्णतः सफल हुए हैं। इस महाकाव्य में 22 सर्ग और 3,624 श्लोक हैं। इसमें श्रीराम के जीवन की घटनाओं का वर्णन किया गया है। इसका प्रकाशन "जयमंगला" टीका के साथ निर्णयसागर प्रेस मुंबई से 1887 ई में हुआ था। मल्लिनाथ की टीका के साथ संपूर्ण महाकाव्य का हिन्दी अनुवाद चौखंबा संस्कृत सीरीज से प्रकाशित हुआ है। इस महाकाव्य को 4 कांडों में विभाजित किया गया है। प्रथम 5 सर्ग प्रकीर्णकांड के नाम से अभिहित हैं। इनमें रामजन्म से लेकर रामवनगमन तक की कथा वर्णित है। इनमें For Private and Personal Use Only
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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