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रामपूर्वतापनीय- उपनिषद् - अथर्ववेद का एक उपनिषद्। इसमें "राम" शब्द की अनेक व्युत्पत्तियां व अर्थ बताये गये हैं। "राति राजते वा महीं स्थितः सन् रामः" अर्थात् जो दान देता है अथवा पृथ्वी पर प्रकाश मान है, वह राम है। यह व्युत्पत्ति अधिक ग्राह्य मानी गई है।
इसमें राम का पूजामंत्र और रामोपासना का मालामन्च भी दिया गया है। पूजामंत्र में राम की शक्तियों के रूप में हनुमान्, सुग्रीव, भरत, बिभीषण, लक्ष्मण, अंगद, जाम्बवान् और शत्रुघ्न का समावेश किया गया है। इस उपनिषद् का रामोपासना का मालामन्त्र इस प्रकार है
"ओम् नमो भगवते रघुनन्दनाय रक्षोघ्नविशदाय मधुर प्रसन्नवदना यामिततेजसे बलाय रामाय विष्णवे नमः ओम्।" रामप्रकाश - 1) कालतत्त्वार्णव पर एक टीका। 2) कृपाराम के नाम पर संगृहीत धार्मिक व्रतों पर एक निबन्ध। कृपाराम यादवराज के पुत्र, माणिक्यचन्द्र के राजकुल के वंशज एवं गौडक्षत्रकुलोद्भव कहे गये हैं। वे जहांगीर एवं शाहजहां के सामन्त थे। रामप्रमोद - ले.- गंगाधर शास्त्री मंगरुलकर, नागपुर निवासी। राममंत्रपद्धति - श्लोक- 121 । राममन्त्रविधि - रुद्रयामलोक्त, श्लोक- 56 । राममन्त्राराधनविधि - श्लोक लगभग- 195 । रामयमकार्णव - ले.- वेकटेश। कांचीवरम् के पास ग्राम आरसालई के निवासी। पिता- श्रीनिवास । कवि ने सन 1656 में इस यमकमय काव्य की रचना की। रामरक्षाबीजमन्त्र प्रयोग - श्लोक -लगभग 72। रामरक्षास्तोत्रम् - बुधकौशिक ऋषि द्वारा रचित इस प्रख्यात स्तोत्र में प्रभु रामचन्द्र की स्तुति की गई है। स्तोत्र का प्रमुख छंद अनुष्टप, सीता शक्ति, हनुमान् कीलक और ,राम की प्रसन्नता के लिये स्तोत्र का जप करना, यह विनियोग बताया गया है। कुल 40 श्लोक हैं।
रचना के संदर्भ में यह आख्यायिका बताई जाती है कि भगवान् शंकर ने बुधकौशिक ऋषि के स्वप्न में आकर यह रामरक्षा सुनाई जिसे प्रातःकाल उठते ही बुधकौशिक ने लिखी। इसके छह श्लोकों का 'कवच' इस अर्थ में निरूपण किया गया है और उनमें राम से संकट के समय अपने शरीर के सर्व अवयवों की रक्षा हेतु सदिच्छा व्यक्त की गई है। रामायण के महत्त्वपूर्ण प्रसंगों का क्रमानुसार उल्लेख और रामनाम की महत्ता का प्रतिपादन भी इसमें है। बालकों पर नित्य के संस्कारों में रामरक्षा पाठ का समावेश किया जाता है। रामरत्नाकर - ले.- मधुव्रत कवि । रामरसामृतम्- ले.- श्रीधर कवि । रामलीलोद्योत - ले.रमानाथ। पिता- बाणेश्वर ।
रामवर्मयशोभूषणम् - कवि सदाशिव मखी। ई. 18 वीं . शती। पिता- कोकनाथ। त्रिवांकुर (त्रावणकोर) नरेश रामवर्मा .. का चरित्र तथा अलंकारनिदर्शन इस का विषय है। रामवर्मविलासम् (नाटक)- ले. बालकवि। 16 वीं शती। कोचीन के राजा रामवर्मा को नायक मानकर यह नाटक लिखा गया राजा रामवर्मा के प्रणय और विजय की कथा पांच अंकों में निबद्ध होने से ऐतिहासिक महत्त्व का नाटक है। कथानक कोचीन के राज्य का भार अपने भाई गोदवर्मा (1537-1561) पर डालकर राजा रामवर्मा तलकावेरी में निवास करने लगते हैं। वहां नायिका मन्दारमाला से विवाह 'कर कुछ दिन बिताते हैं। इस बीच में गोदवर्मा से सूचना पाकर कि कोचीन पर शत्रुओं ने आक्रमण किया है, पुनः कोचीन आकर शत्रुओं को परास्त करते हैं। रामविलासम्-ले.- रामचरण तर्कवागीश । ई. 17 वीं शती।
2) ले.- हरिनाथ। 3) रामचंद्र। रामसहस्रनाम - रुद्रयामलान्तर्गत, हरगौरी-संवादरूप। श्लोक277। इसका प्रकाशन कवचमाला में हो चुका है। विषयराम के सहस्रनाम अकारादि क्रम से वर्णित। श्रीरामचन्द्रजी के गुण, माहात्म्य इ. का वर्णन करते हुए उनके सहस्र नाम तथा उनके पाठ का फल वर्णित । रामसिंहप्रकाश- ले.- गदाधर । रामस्तुतिरत्नम् - ले.- रामस्वामी शास्त्री। विषय- विविध वृत्तों में प्रभु रामचंद्र की स्तुति। यह छन्दःशास्त्रीय ग्रंथ है। रामानन्दम् - ले.- बी. श्रीनिवास भट्ट। अंकसंख्या- पांच । उत्तररामचरित का कथानक। सन 1955 में प्रकाशित ।
2) ले.- श्रीनिवास भट्ट। विषय- माध्वसिद्धान्त । रामानुजचम्पू - ले. रामानुजदास । विषय- रामानुजाचार्य का चरित्र ।
रामानुजचरितकुलकम् - ले.- रामानुजदास । प्रसिद्ध श्रीभाष्यकार रामानुजाचार्य का चरित्र वर्णन इस काव्य का विषय है। रामानुजविजयम् कवि- अन्नैयाचार्य। विषय- रामानुजाचार्य का चरित्र। रामाभिरामीयम् - ले.- नागेशभट्ट। यह वाल्मीकीय रामायण की टीका है। इसमें महासुंदरी तंत्र का कथन हुआ है। रामाभिषेकम् - ले.- केशव । रामाभिषेकचम्पू - ले.- देवराजदेशिक। पिता- पद्मनाभ । रामाभ्युदयम् - ले.- वेंकटेश।
2) ले.. अन्नदाचरण ठाकुर। तर्कचूडामणि। जन्म- ई. 1862। वाराणसी निवासी। रामाभ्युदय-चम्पू - ले.- राम । रामामृतम् - ले.- वेकटरंगा।
संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड/303
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