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रामायणम् (वाल्मीकिरामायणम् आदिकाव्य) - प्रणेता महर्षि वाल्मीकि। यह महाकाव्य "चतुर्विंशति-साहस्री संहिता" के नाम से विख्यात है क्यों कि इसमें 24 सहस्र श्लोक हैं। (गायत्री में भी 24 अक्षर होते हैं) विद्वानों का कथन है कि "रामायण" के प्रत्येक हजार श्लोक का प्रथम अक्षर, गायत्री मंत्र के ही अक्षर से प्रारंभ होता है। भारतीय जनजीवन में यह आदिकाव्य धार्मिक ग्रंथ के रूप में मान्यताप्राप्त है। इसकी शैली प्रौढ, काव्यमयी, परिमार्जित, अलंकृत व प्रवाहपूर्ण है जिसमें अलंकत भाषा के माध्यम से मानव जीवन का अत्यंत रमणीय चित्र अंकित किया गया है। कवि की दृष्टि प्रकृति के अनेकविध मनोरम दृश्यों की ओर भी गई है। यह महाकाव्य 7 कांडों में विभक्त है- बालकाण्ड, अयोध्याकाण्ड, अरण्यकाण्ड, किष्किंधाकाण्ड, सुंदरकाण्ड, युद्धकाण्ड व उत्तरकाण्ड । इन काण्डों में क्रमशः 77, 119, 75, 67, 68, 128, और 111 सर्ग हैं। कुलसर्ग संख्या 645। ___ वाल्मीकि को इस महाकाव्य को लिखने की प्रेरणा कैसे हुई, इस सम्बन्ध में कथा बताई जाती है कि एक बार नारद मुनि के समक्ष वाल्मीकि ने यह जिज्ञासा प्रकट का कि इस भूतल पर गुणवान, पराक्रमी धर्मज्ञ, सत्यवचनी और जिसके कुपित होने पर देवताओं में भय निर्माण हो, ऐसा पुरुष कौन है। नारदमुनि ने कहा- ये सभी गुण एकत्र मिलना दुर्लभ है किन्तु इक्ष्वाकु वंश में उत्पन्न राम इस दृष्टि से आदर्श पुरुष कहे जा सकते हैं। फिर वाल्मीकि के अनुरोध पर नारदजी ने राम के समग्र चरित्र को स्पष्ट करने वाली सम्पूर्ण रामकथा भी उन्हें सुनाई।
फिर एक दिन वाल्मीकि अपने शिष्यों के साथ तमसा नदी में स्नान के लिये निकले तो मार्ग में एक वृक्ष पर प्रणय क्रीडा में मग्न क्रौंच नामक पक्षी के एक जोडे में से अकस्मात् किसी निषाद के तीर से क्रौंच पक्षी आहत होकर नीचे गिर पडा। अपने सहचर की यह दशा देखकर क्रौंची आक्रोश करने लगी। इस दृश्य को देखकर वाल्मीकि अत्यंत द्रवित . हए और निषाद के कृत्य पर उन्हें बहुत क्रोध आया। निषाद के प्रति उनके मुख से यह शापवाणी निकल पडी__"मा निषाद् प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः।
यत् क्रौंचमिथुनादेकमवधीः काममोहितम्।।" अर्थात- हे निषाद, तू भूतल पर अधिक काल जीवित नहीं रहेगा, क्योंकि तूने काममोहित क्रौंच युगल में से एक का वध किया है। __ वाल्मीकि की शोकपूर्ण भावना शापात्मक श्लोक के रूप में थी और वह सहज उत्स्फू र्त अनुष्टुप् छंद ही थी। इस बात का स्वयं वाल्मीकि को आश्चर्य हुआ। उस अनुष्टुप् छंद को सुनकर ब्रह्मदेव ने वाल्मीकि से कहा कि तुममें साक्षात् सरस्वती आविर्भूत हुई है, अब तुम अनुष्टुप् छंद में समग्र
रामचरित्र लिखो।
ब्रह्मदेव के निर्देश पर ही वाल्मीकि ने इस महाकाव्य की रचना की और कुश-लव ने इसे कंठस्थ कर लिया और वे लयबद्ध रामकथा गाकर सुनाने लगे। मुख्य रामचरित्र के
अतिरिक्त बाल व उत्तरकांड में अवांतर कथाएं एवं उपकथाएं हैं। ग्रंथ के आरंभ में अयोध्या, राजा दशरथ और उनके शासन तथा नीति का वर्णन है। राजा दशरथ पुत्रप्राप्ति के हेतु पुत्रेष्टि यज्ञ करते हैं, ऋष्यश्रृंग के नेतृत्व में यह संपन्न होता है और दशरथ को चार पत्र प्राप्त होते हैं। विश्वामित्र अपने यज्ञ की रक्षा के लिये राजा से राम-लक्ष्मण को मांग कर ले जाते हैं। वहां उन्हें बला और अतिबला नामक विद्याएं तथा अनेक अस्त्र प्राप्त होते हैं। राम, ताडका सुबाहु का वध कर विष्णु का सद्धिाश्रम देखते हैं। __ बालकाण्ड में बहुत कथाएं हैं जिन्हे विश्वामित्र ने राम को सुनाया। वंश का वर्णन व तत्संबंधी कथाएं, गंगा व पार्वती की उत्पत्ति कथा, कार्तिकेय जन्म की कथा, राजा सगर व उनके 60 सहस्र पुत्रों की कथा, भगीरथ कथा, दिति-अदिति की कथा व समुद्रमंथन का वृत्तांत, गौतम-अहिल्या की कथा, राम के चरण स्पर्श से अहिल्या की मुक्ति, वसिष्ठ व विश्वामित्र का संघर्ष, त्रिशंकु की कथा, राजा अंबरीष की कथा, विश्वामित्र की तपस्या का मेनका द्वारा भंग, विश्वामित्र द्वारा पुनः तपस्या तथा पद की प्राप्ति, सीता व उर्मिला की उत्पत्ति कथा, राम द्वारा धनुर्भंग एवं चारों भाइयों के विवाह।। अयोध्याकाण्ड - काव्य की दृष्टि से यह काण्ड अत्यंत महनीय है। इसमें अधिकांश कथाएं मानवीय हैं। राजा दशरथ द्वारा राम राज्याभिषेक की चर्चा सुनकर कैकेयी की दासी मंथरा उसे बहकाती है। कैकेयी राजा से दो वरदान मांगकर राम को 14 वर्षों का वनवास व भरत को राज-गद्दी की प्राप्ति मांगती है। इसके फलस्वरूप राम व सीता का वनगमन व दशरथ का देहांत । भरत अपने ननिहाल से अयोध्या लौटकर राम को मनाने के लिये चित्रकूट जाता है। राम लक्ष्मण का संदेह व वार्तालाप भरत व राम का मिलाप। जाबालि द्वारा राम को नास्तिक दर्शन का उपदेश तथा राम का उन पर क्रोध। पिता के वचन को सत्य करने के लिये राम का भरत को लौटकर राज्य करने का उपदेश। राम की पादुकाओं को लेकर भरत का नंदिग्राम में निवास तथा राम का दंडकारण्य में प्रवेश। अरण्यकाण्ड - दंडकारण्य में ऋषियों द्वारा राम का स्वागत । विराध का सीता को छीनना। विराध वध। पंचवटी में राम का आगमन, जटायु से भेंट, शूर्पणखा-वृत्तान्त, खर, दूषण व त्रिशिरा के साथ राम का युद्ध और तीनों की मृत्यु, मारीच के साथ रावण का आगमन। मारीच का स्वर्णमृग बनना। स्वर्णमृग का राम द्वारा वध तथा रावण द्वारा सीता का अपहरण ।
304 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड
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