________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
रामचरितम् (द्विसन्धानकाव्य) - ले.-सन्ध्याकर नदी। ई. 12 वीं शती। श्लोकसंख्या 2201 बंगाल नरेश रामपाल तथा * प्रभु रामचंद्र, दोनों पक्षों में व्यर्थी शब्दरचना । लौकिक कथानक मदनपाल (सन 1140-1155) के शासनकाल तक है। ऐतिहासिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण किन्तु द्विसन्धानकाव्य की दृष्टि से नीरस । द्वितीय खण्ड के मध्य भाग तक की टीका उपलब्ध है। यह काव्य वारेन्द्र रीसर्च सोसायटी, कलकत्ता, द्वारा सन 1939 में प्रकाशित हो चुका है। संपादक हैं डॉ. रमेशचन्द्र मजुमदार।
1) ले.- काशीनाथ। 2) ले.-मोहनस्वामी। 3) ले.-विश्वक्सेन। 4) ले.- रामवर्मा, क्रांगनोर (केरल राज्य) के नरेश।
5) ले.-अभिनन्द। ई. 9 वीं शती। सर्गसंख्या- 401 अंतिम चार सर्ग "भीम कवि द्वारा लिखित। गायकवाड ओरिएन्टल सीरीज" बडौदा द्वारा प्रकाशित । 6) ले.- ब्रह्मजिनदास । जैनाचार्य। ई. 15-16 वीं शती। सर्गसंख्या- 831 7) ले.. देवविजयगणी। ई. 16 वीं शती। रामचरितमानसम् - मूल संत तुलसीदास का हिन्दी काव्य । अनुवादकर्ता तिरुवेङकटाचार्य। मैसूर निवासी। रामचरितमानसम् (रूपक)- ले.- डॉ. रमा चौधुरी। जिसका मानस रामचरित मय हो चुका ऐसे संत तुलसीदास का 12 दृश्यों में रूपकायित चरित्र। तुलसीरचित हिंदी भजनों का संस्कृत रूपान्तर समाविष्ट । रामचरित्रम् - ले.-रामानन्द। ई. 17 वीं शती।
2) ले.- रघुनाथ। रामचर्यामृतचम्पू - ले.- कृष्णय्यगार्य। रामजन्म (भाण) - ले.- ताराचरण शर्मा । रचनाकाल- 1875 ई.। प्रभु नारायणसिंह के पुत्र का जन्मोत्सव वर्णित । गीतों का समावेश। रामजोशीकृत लावण्या - ले.- राम जोशी। मराठी भाषा के "लावणी" नामक ग्रामगेय काव्यों के समान कवि ने संस्कृत, मराठी-संस्कृत और मराठी-हिन्दी-कन्नड-संस्कृत (चार भाषीय) लावणी काव्य भी रचे हैं। रामतत्त्वप्रकाश - ले.- मधुराचार्य। राम की माधुर्य उपासना पर एक प्रमाणभूत ग्रंथ। इस ग्रंथ के 13 उल्लास हैं। जिनमें राम व सीता के सर्वागसुंदर रूपों का प्रमुखता से वर्णन है। रामसाहित्य के विविध वचनों के आधार पर राम को रसिक शिरोमणि सिद्ध किया गया है। श्रीकृष्ण की भांति राम की भी अपनी नायिकाओं के साथ रासक्रीडा का वर्णन है। रामतापनीय- उपनिषद् - अथर्ववेद से सम्बन्धित एक नव्य उपनिषद्। इसमें 75 मंत्र हैं। बृहस्पति (प्रश्नकर्ता) और याज्ञवल्क्य (उत्तरदाता) के बीच संवाद की इस ग्रंथ का
स्वरूप है। श्रीराम सत्यरूप परब्रह्म व रामरूप होने के कारण जगत् भी सत्य है। जीवात्मा और रामरूप परमात्मा के बीच सेव्य-सेवक, आधारआधेय नियम्यनियामक जैसा सम्बन्ध है, यही इस उपनिषद का सार है। रामदासचरितम् - लेखिका- क्षमादेवी राव। समर्थ रामदास स्वामी का चरित्र। स्वयं लेखिका कृत अंग्रेजी अनुवादसहित प्रकाशित। रामदासस्वामिचरितम् - ले.- श्रीपादशास्त्री हसूरकर । भारतरत्नमाला का पुष्प। यह चरित्र गद्यात्मक है। रामदेवप्रसाद (या गोत्रप्रवरनिर्णय)- ले.- विश्वनाथ (या विश्वेश्वर) शम्भुदेव के पुत्र। (1584 ई) में प्रणीत। रामनवमीनिर्णय - ले.- विट्ठल दीक्षित।
2) ले.- गोपालदेशिक। रामनाथपद्धति - ले.- रामनाथ । रामनामदातव्य- चकित्सालय (रूपक)- ले.- जीव न्यायतीर्थ । जन्म 1894। भट्टपल्ली के संस्कृत महाविद्यालय के वार्षिक सारस्वतोत्सव पर अभिनीत । सीतारामदास ओंकारनाथ के बंगाली संलापकोटिक निबंध पर आधारित प्रहसन सदृश रचना। कथावस्तु - कोई क्षीब रामनाम-दातव्य चिकित्सालय खोलकर, राजयक्ष्मा, शय्यामूत्र, गुह्यरोग, शर्करा-रोग, आदि सभी रोगों की एक ही दवा (तुलसी के पौधों के घेरे के बीच बैठ कर रामनाम रटना) देता है। रामनामलेखन-विधि - रुद्रयामल के अन्तर्गत । विषय- रामनाम लिखने की विधि तथा उसका फल । रामनित्यार्चनपद्धति - ले.- चतुर्भुज । रामनिबन्ध - ले.-क्षेमराय। पिता- भवानन्द । ई. 1720 में प्रणीत । रामपंचागम् - श्लोक- 608 । रामपद्धति - ले.- लक्ष्मीनिवास। गुरु-नृसिंहाश्रम। श्लोक - लगभग- 420। रामपरत्वम् - ले.- विश्वनाथ सिंह। आपका राज्यारम्भ 1834 में हुआ और मृत्यु 1854 में। जीवन के अंत के लगभग 35 वर्ष तक संस्कृत और हिन्दी में निरंतर सर्जना करते रहे। रामपरत्वम् ग्रंथ में 16 श्लोक हैं। इनमें 8 आचार्यजी अनंताचार्य की प्रशस्तिपरक हैं। अंतिम श्लोक आचार्यजी से पत्र व्यवहार की एवं वार्ता की चर्चा करते हैं। इन श्लोकों के बाद राम के सर्वश्रेष्ठत्व का प्रतिपादन किया गया है। यह सारा प्रतिपादन गद्य में है किन्तु प्रमाण और उद्धरण गद्य एवं पद्य दोनों में हैं। सारा विवेचन भाष्य शैली में है। रामपूजापद्धति - ले.- रामोपाध्याय। रामपूजाप्रकार - श्लोक- लगभग 165 । ई. 17 वीं शती। रामपूजाविधि - ले. क्षेमराज। श्लोक 340 ।
302 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड
For Private and Personal Use Only