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रामकुतूहलम् - ले.-रामेश्वर कवि। पिता- गोविन्द। ई. 17 वीं शती। रामकृष्णकथामृतम् - अनुवादक- जगन्नाथ स्वामी। मूल-महेन्द्रनाथकृत बंगाली ग्रंथ। 5 खण्डों में से 4 खंडों का 7 भागों में अनुवाद प्रकाशित। विषय- श्रीरामकृष्ण परमहंस की चरित्रगाथा। रामकृष्ण परमहंस-चरितम् - ले.-पी, पंचपागेश शास्त्री। ई. 1937 में प्रकाशित। रामकृष्ण परमहंसीयम् (युगदेवता-शतकम्)- कवि- डॉ. श्रीधर भास्कर वर्णेकर, नागपुर निवासी । इस मन्दाक्रान्ता छन्दोबद्ध शतश्लोकी खण्डकाव्य में श्रीरामकृष्ण परमहंस के संपूर्ण विभूतिमत्व का भावपूर्ण वर्णन किया है। हिन्दी तथा अंग्रेजी भाषा में इसके अनुवाद हुए हैं। शारदा प्रकाशन पुणे-30 और भारतीय विद्याभवन मुंबई द्वारा प्रकाशित । रामकौतुकम् - ले. कमलाकर। पिता- रामकृष्ण। रामखेटकाव्यम् - ले.- पद्मनाभ ।
रामगीता - अद्वैत वेदान्त के अनुभवाद्वैत नामक पंथ के तत्त्वज्ञान का विवेचन करने वाला ग्रंथ । वसिष्ठकृत "तत्त्वसारायण ग्रंथ के उपासना-कांड के द्वितीय अध्याय में इसका समावेश हुआ है। रामगीता के कुल 18 अध्याय व एक हजार श्लोक हैं। सांसारिक दुःखों से मुक्त होने के लिए हनुमान्जी प्रभु रामचन्द्र से ब्रह्म के निर्गुण स्वरूप की जानकारी पूछते हैं। प्रभु रामचन्द्र द्वारा प्रदत्त जानकारी ही इसका प्रतिपाद्य विषय है। इस ग्रंथ में अनुभवाद्वैत पंथ के तत्त्वज्ञान के अनुसार श्रौत, सांख्य और योग का पुरस्कार किया गया है तथा कर्म, भक्ति, ज्ञान व योग ये चार मार्ग बताये हैं। रामगीता के मतानुसार ज्ञानपूर्वक सप्तांगिक उपास्ति- (उपासना) योग ही मोक्ष का अंतिम साधन है। उपास्य वस्तु के साथ तादात्म्य प्रस्थापित होने पर जीवन्मुक्तावस्था प्राप्त होती है। इसी प्रकार जिसे देहविषयक पूर्ण विस्मृति हो जाती है, वह विदेहमुक्त अवस्था प्राप्त करता है। रामगीता में सदाचार पर विशेष बल दिया गया है। प्रभु रामचंद्र कहते हैं कि ज्ञानी मनुष्य यदि सद्गुणी सदाचारी नहीं हुआ ते उसका जीवन व्यर्थ है। कहते हैं, जब हनुमानजी की प्रार्थना पर 12 वें अध्याय में रामचंद्रजी ने अपने विश्वरूप का वर्णन करना प्रारंभ किया, तो उस वर्णन की कल्पना से हनमानजी मर्छित हो गये! अंत में रामचंद्रजी ने हनुमान् को गीतामृत प्राशन करने पर चिरंजीवी होने का वरदान दिया।
2) अध्यात्म-रामायण के अंतर्गत भी एक "रामगीता" है जिसमें कुल 62 श्लोक हैं। इस रामगीता में "ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या जीवो ब्रह्मैव नापरः" अर्थात् ब्रह्म की एकमात्र सत्य है और बाकी जगत् के रूप में दिखाई देने वाला पदार्थ
मिथ्या है- इस तत्त्व का विवेचन किया गया है। इसमें रामचन्द्रजी लक्ष्मण को मोक्षज्ञान का उपदेश देते हैं। रामगीता - ले.- वेंकटरमण । रामगुणाकर- ले.- रामदेव। रामचन्द्रकथामृतम् - ले.- मुडुम्बी वेंकटराम नरसिंहाचार्य । रामचन्द्रकाव्यम् - ले.-शम्भु कालिदास । रामचन्द्रचम्पू - ले.-रीवा-नरेश विश्वनाथसिंह जिनका शासनकाल 1721 से 1740 ई. तक रहा। इस चम्पू में 8 परिच्छेदों में रामायण की कथा का वर्णन है। चंपू का प्रारंभ सीता की वंदना से हुआ है।
2) रामचन्द्रकवि। (रत्नखेट कवि का पोता)। रामचन्द्रजन्म-भाण - ले.-ताराचन्द्र ई. 17-18 वीं शती । रामचन्द्रपूजापद्धति - श्लोक लगभग 135/ रामचन्द्रमहोदयम् (काव्य) - ले.-सच्चिदानन्द । रामचन्द्रयशःप्रबन्ध (या रामचन्द्रेशप्रबन्ध) - कवि- गोविन्द भट्ट। “अकबरी कालिदास" उपाधि से विभूषित। यह उपाधि कवि को मुगल बादशाह अबकर का (1556-1605) समकालीन सिद्ध करती है। ___ यह ग्रंथ बीकानेर के महाराजा रामचंद्र की प्रशस्ति है। गोविंदभट्ट अनेक राजसभाओं में पहुंचे थे। उन्होंने अनेक देवी-देवताओं की स्तुति लिखी है। इस प्रबन्ध में छन्द योजना विचित्र है। 10 स्रग्धरा छन्दों के अतिरिक्त बीच-बीच में 8 प्रबन्ध हैं। डॉ. चौधुरी के अनुसार यह न तो गद्य है न पद्य
और न ही इसे चम्पू कह सकते हैं। इसका सम्पूर्ण गद्य भी पद्य है, फिर भी यति और विराम की कठिनाइयां आती हैं। यह विधिवत् पद्य नहीं रह जाता फिर भी इसे पद्यबन्ध कहा जायेगा। संस्कृत साहित्य में यह दीर्घ समास युक्त, लयबद्ध गेय शैली, मुस्लिम शासन के समय विकसित हुई।। रामचन्द्रयशोभूषणम् - ले.-कच्छपेश्वर दीक्षित । रामचन्द्रविक्रमम् (या रामचन्द्राह्निकम्)- ले.- विश्वनाथ सिंह। बघेलखण्ड के निवासी। श्रीरामचंद्रजी का सामाजिक जीवन चित्रित किया है। दिनचर्या आठ यामों में विभाजित कर उनके आह्निक का सविस्तर वर्णन किया गया है। कथा की आत्मा गीतगोविन्द से भिन्न है। रामचन्द्रोदयम्- ले.-व्यं.वा. सोवनी। सर्ग- 4।
2) ले. वेंकटकृष्ण। चिदम्बर निवासी। ई. 19 वीं शती। विषय- रामचरित्र। - 3) ले. पुरुषोत्तम मिश्र। 4) ले.- रामदास कवि। 5). ले.- कविवल्लभ । 6) ले.- वेंकटेश। पिता- श्रीनिवास । सर्ग30। आरसालै ग्राम (तमिलनाडू) के निवासी। रामचंपू ले. बन्दालामुडी रामस्वामी।
संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड / 301
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