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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रघुवंश प्राचीन काल से ही अत्यंत लोकप्रिय काव्य है। संस्कृत में इसकी 40 टीकाएं रची गई हैं। इनमें मल्लिनाथ की टीका विशेष लोकप्रिय है। अन्य टीकाकार :- (1) कल्लिनाथ, (2) नारायण, (3) सुमतिविजय (4) उदयाकर (5) हेमाद्रि (मक्कीभट्ट नाम से ज्ञात), ईश्वरसूरि का पुत्र महाराष्ट्र निवासी, देवगिरि के राजाओं का मंत्री, 12-13 वीं शती)। (6) वल्लभ (12 वीं शती का पूर्वार्ध) (7) हरिदास, (8) चरित्रवर्धन, (9) दिनकर, (10) गुणविजयगणी, (11) धर्ममेरु, (12) भरतसार (13) बृहस्पति मिश्र, (14) कृष्णपति शर्मा, (15) गुणविजयगणी, (16) गोपीनाथ कविराज, (17) जनार्दन, (18) महेश्वर, (19) नग्नधर, (20) भगीरथ, (21) भावदेव मिश्र, (22) रामभद्र, (23) कृष्णभट्ट, (24) दिवाकर, (25) लोष्टक, (26) श्रीनाथ, (27) अरुणगिरिनाथ, (28) रत्नचन्द्र, (29) भाग्यहंस, (30) ज्ञानेन्द्र, (31) भोज, (32) भरतमल्लिक, (33) जीवानन्दविद्यासागर, (34) समुद्रसूरि (विजयानन्दशिष्य), (35) दक्षिणावर्तनाथ, (36) समयसुन्दर, (37) कनकलाल ठाकुर, (38) रघुवंश विमर्श-ले.आर. कृष्णम्माचार्य विषय अन्तरंग सौन्दर्य का दर्शन, (38) रघुसंक्षेप ले. अज्ञात, रघुवंश की संक्षिप्त कथा, (40) अन्य कुछ टीकाओं के लेखकों के नाम अज्ञात हैं। रघुवंशम् (दृश्यकाव्य) - ले.- जीव न्यायतीर्थ (जन्म 1894) प्रणवपारिजात में प्रकाशित। उज्जयिनी के कालिदास समारोह में अभिनीत। कालिदास के रघुवंश काव्य का शत-प्रतिशत दृश्य रूप। अंकसंख्या- छः । रघुवंशचरितम् - ले.- प्रा. व्ही. अनन्ताचार्य कोडंबकम्। रघुवीरचरितम् - ले.- सुकुमार। रघुवीरवर्यचरितम् - ले.- तिरुमल कोणाचार्य । रघुवीरविजयम् (समवकार) - ले.- कस्तूरि रंगनाथ। ई. 19 वीं शती। प्रथम अभिनय शेषाद्रीश महोत्सव में। समवकार में विष्कम्भक तथा प्रवेशक का समावेश अशास्त्रीय है। परंतु यहां द्वितीय अंक के पूर्व विष्कम्भक तथा तृतीय अंक के पूर्व प्रवेशक का प्रयोग है। पद्यों की प्रचुरता। गद्योचित स्थल भी पद्यों में वर्णित । कथावस्तु सीतास्वयंवर पर आधारित, परंतु मूल कथा में परिवर्तन है। स्वयंवर के अवसर पर ही सीता का रावण द्वारा अपहरण, तत्पश्चात् अग्निपरीक्षा और उसके बाद राम-सीता का विवाह वर्णन किया है। छायातत्त्व का बाहुल्य। विद्युज्जिह्व और शूर्पणखा क्रमशः राम और सीता के रूप में प्रदर्शित हैं। रघुवीरविजयम् - ले.- वरदादेशिक पिता- श्रीनिवास । रघुवीरविलास् (काव्य) - ले.- लक्ष्मण। पिता- दामोदर। रघुवीरस्तव - ले.- नीलकण्ठ दीक्षित। ई. 17 वीं शती। रजतदानप्रयोग - ले.- कमलाकर । रजस्वलास्तोत्रम् - ले.-रुद्रयामल के अन्तर्गत। उमा-महेश्वर संवादरूप। रणवीर-रत्नाकर - ले.-शिवशंकर पण्डित। काश्मीर-निवासी। विषय- धर्मशास्त्र। रतिकल्लोलिनी - ले.- सामराज दीक्षित। मथुरा-निवासी। ई. 17 वीं शती। विषय- कामशास्त्र । रतिकुतूहलम् - ले.- गंगाधरशास्त्री मंगरुलकर । नागपुर-निवासी। रतिचन्द्रिका - ले.- कौतुकदेव। विषय- कामशास्त्र । रतिनीतिमुकुलम् - ले.- क्षेमकर शास्त्री। रतिमंजरी - ले.- जयदेव। रतिमन्मथम् (नाटक)- ले.- जगन्नाथ। ई. 18 वीं शती। लोकमाता आनन्दवल्ली के वसन्तोत्सव के अवसर पर तंजौर में अभिनीत । अंकसंख्या- पांच । प्रधान रस- शृंगार । कथासाररति के माता पिता को बृहस्पति परामर्श देते हैं कि उसे मन्मथ से ब्याह दें। शुक्राचार्य के शिष्य बाष्कल कहते है कि उसे शम्बरासुर को दें। रति के पिता रति की इच्छा को ही प्रधानता देते हैं। वह शम्बर को नहीं चाहती, अत एव शम्बर से उनका वैरभाव होता है। इस बीच मदन-दहन का प्रसङ्ग है। सर्वार्थसाधिका मन्मथ को बचा लेती है और शिव द्वारा भेजी अग्नि को शिव के तृतीय नेत्र में पुनः स्थापित करती है। इसी समय शम्बरासुर रति को अपहृत करता है। मन्मथ, शम्बर से युद्ध कर उसे मारता है। परन्तु शम्बर द्वारा अपहत कन्या वास्तविक रति नहीं, सर्वार्थसाधिका द्वारा उत्पन्न की हुई रति की प्रतिकृति मायावती है। उसी को रति समझ मन्मथ उसे छुडाता है। वह भी मन्मथ पर आसक्त है। अन्त में सर्वार्थसाधिका मायावती की उत्पत्ति की कहानी बताती है और मन्मथ का विवाह दोनों कन्याओं से एक ही मण्डप में होता है। रतिमुकुलम् - ले. अच्युत। रतिरत्नप्रदीपिका - ले.- इम्मादि प्रौढ देवराय। सात अध्याय। विषयसुख का (बाह्य तथा आभ्यन्तर) प्रदीर्घ और रोचक विवेचन। टीकाकार- रेवणाराध्य । रतिरहस्यम् - ले.-कक्कोक। 10 अध्याय। किसी वैन्यदत्त को प्रसन्न करने हेतु लेखक ने यह रचना की। कामसूत्र का ओघवती भाषा में सुन्दर संक्षेप इसमें है। टीकाकारः 1) कांचीनाथ 2) अवंच रामचंद्र 3) कविप्रभु। रतिरहस्यम् - (या शृंगारभेदप्रदीपिका या शृंगारदीपिका) ले.हरिहर । सहजासारस्वतचंद्र की उपाधि । अन्य कामशास्त्रीय विषयों के साथ चौथे अध्याय में मन्त्र, तथा औषधि प्रयोग का भी वर्णन है। (रतिदर्पण नामक रचना चन्द्रपुत्र हरिहर की है।) रतिविजयम् - ले.-रामस्वामी शास्त्री। रचना 1928 में। प्रथम अभिनय भारत धर्म महामण्डल के महाअधिवेशन में । अंकसंख्यापांच। किरतनिया ढंग। गीतों का बाहुल्य। एकोक्तियां भी गीतों म अंक के प्रचुरता। थावस्तु सी " में परिव 290/ संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड For Private and Personal Use Only
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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