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रघुवंशम् (महाकाव्य) प्रणेता महाकवि कालिदास। इस महाकाव्य के 19 सर्गो में सूर्यवंशी 21 राजाओं का चरित्र वर्णित है। इसकी सर्गानुसार कथा इस प्रकार है : प्रथम सर्ग में रघुवंशीय राजाओं की विशिष्टता का सामान्य वर्णन । प्रथमतः राजा दिलीप का चरित्र वर्णित है । पुत्रहीन होने के कारण राजा चिंतित होकर अपनी पत्नी सुदक्षिणा के साथ कुलगुरु वसिष्ठ के आश्रम में पहुंचते हैं तथा उन के आदेश से आश्रम में स्थित होमधेनु नंदिनी की सेवा में संलग्न हो जाते हैं। द्वितीय सर्ग में दिलीप द्वारा नंदिनी की सेवा एवं 21 दिनों के पश्चात् उनकी निष्ठा की परीक्षा का वर्णन है। नंदिनी एक सिंह आक्रमण में फंस जाती है और राजा उस सिंह को नंदिनी के बदले स्वयं को समर्पित कर देते हैं। इस पर नंदिनी प्रसन्न होकर उन्हें पुत्रप्राप्ति का आश्वासन देती है
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तब राजा अपनी पत्नी सहित कुलगुरु की आज्ञा से नंदिनी का दूध पीकर उत्फुल्ल चित्त राजधानी लौटते हैं। तृतीय सर्ग में रानी सुदक्षिणा का गर्भाधान, रघु का जन्म व यौवराज्य तथा दिलीप द्वारा अश्वमेघ करने का वर्णन है। सर्ग के अंत में सुदक्षिणा सहित राजा दिलीप के वन जाने का वर्णन है। चतुर्थ सर्ग में रघु की दिग्विजय यात्रा तथा पंचम में उनकी असीम दानशीलता का वर्णन है। अत्यधिक दान करने के कारण उनका कोष रिक्त हो जाता है। उसी समय कौत्सनामक एक ब्रह्मचारी आकर उनसे 14 करोड स्वर्ण मुद्रा की याचना करता है। रघु को सारा धन कुबेर द्वारा प्राप्त होता है और वे उसे कौल्स को समर्पित कर देते हैं। इससे संतुष्ट हुआ कौत्स उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान देकर चला जाता है। छठे और सातवें सर्ग में रघु के पुत्र अज का इंदुमती के स्वयंवर में जाने एवं अज- इंदुमती विवाह और अज की ईर्ष्यालु राजाओं पर विजय प्राप्ति का वर्णन है। आठवें सर्ग में अज की प्रजापालिता, रघु की मृत्यु, दशरथ का जन्म, नारद की पुष्पमाला गिरने से इंदुमती की मृत्यु, अज विलाप एवं वरिष्ठ का शांति-उपदेश तथा अज की मृत्यु का वर्णन है। नवम सर्ग में राजा दशरथ के शासन की प्रशंसा, उनका मृगयाविहार वर्णन, वसंत-वर्णन तथा भूल से मुनिपुत्र श्रवण का वध और मुनि के शाप का वर्णन है। दसवें सर्ग में राजा दशरथ का पुत्रेष्टि (यज्ञ) करना तथा रावण के भय से देवताओं का विष्णु के पास जाकर पृथ्वी का भार उतारने के लिये प्रार्थना करने का वर्णन है। 11 वें व 12 सर्गों में विश्वामित्र एवं ताडका - वध प्रसंग से लेकर शूर्पणखा प्रसंग तथा रावण वध तक की घटनाएं वर्णित हैं। 13 वें सर्ग में विजयी राम का पुष्पक विमान से अयोध्या लौटना व भरत मिलन की घटना का कथन है। चौदहवें सर्ग में राम राज्याभिषेक एवं सीतानिर्वासन तथा 15 वें में लवणासुर की कथा, शत्रुघ्न द्वारा उसका वध, लव कुश का जन्म, राम का अश्वमेध करना तथा सुवर्णसीता
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की स्थापना, वाल्मीकि द्वारा राम को सीता ग्रहण करने का आदेश, सीता का पातालप्रवेश एवं रामादि का स्वर्गारोहण वर्णित है। 16 वे सर्ग में कुश का शासन, कुशावती मे राजधानी स्थापित करना, स्वप्न में नगरदेवी के रूप में अयोध्या का दर्शन । कुश का पुनः अयोध्या आना तथा कुमुद्वती से उसके विवाह का वर्णन है। 17 वें सर्ग में कुमुद्वतीसे अतिथि नामक पुत्र का जन्म व कुश की मृत्यु वर्णित है। 18 वें सर्ग में अनेक राजाओं का संक्षिप्त वर्णन तथा 19 वें सर्ग में विलासी राजा अग्निवर्ण की राजयक्ष्मा से मृत्यु व गर्भवती रानी द्वारा राज्य संभालने का वर्णन है। इस महाकाव्य में कालिदास की प्रतिभा का प्रौढतम रूप अभिव्यक्त हुआ है। कवि ने विस्तृत आधारफलक पर जीवन का विराट चित्र अंकित कर इसे महाकाव्योचित गरिमा प्रदान की है। विद्वानों का अनुमान है कि संस्कृत साहित्यशास्त्र के आचार्यों ने "रघुवंश" के ही आधार पर महाकाव्य के लक्षण निश्चित किये हैं। इसमें एक व्यक्ति की कथा न होकर एकमात्र रघुवंश के कई व्यक्तियों की कहानी है, जिसके कारण 'रघुवंश" कई चरित्रों की चित्रशाला बना है। दिलीप से लेकर अग्निवर्ण तक कवि ने कई राजाओं का वर्णन किया है किंतु उसका मन दिलीप, रघु, अज, राम व अग्निवर्ण के चित्रण में अधिक रमा है ।। कवि का उद्देश्य मुख्यतः राजा रघु और रामचंद्र का उदात्त रूप चित्रित करना रहा है जिसके लिये दिलीप, अज आदि अंग रूप में प्रस्तुत किये गये हैं। अग्निवर्ण के विलासी जीवन का करुण अंत दिखाकर कवि यह विचार व्यक्त करता है कि चरित्र की उदात्तता एवं आदर्श के कारण रघु एवं राम ने जिस वंश को गौरवपूर्ण बनाया था, वहीं वंश विलासी व रुग्ण मनोवृत्ति वाले कामी अग्निवर्ण के कारण दुःखद अंत को प्राप्त हुआ । अग्निवर्ण की गर्भवती पत्नी के राज्याभिषेक के पश्चात् कवि प्रस्तुत महाकाव्य का अंत कर देता है।
कहा जाता है कि इस प्रकार के आदर्श चरित्रों के निर्माण में महाकवि ने तत्कालीन गुप्त सम्राटों के चरित्र एवं वैभव से भी प्रभाव ग्रहण किया है तथा अपनी नवनवोन्मेषशालिनी कल्पना का समावेश कर उसे प्राणवंत बना दिया है। पुत्रविहीन दिलीप की गोभक्ति व उनका त्यागमय जीवन बड़ा ही आकर्षक है रघु की युद्धवीरता एवं दानशीलता, अज व इंदुमती का प्रणय प्रसंग एवं चिरवियोग में हृदयद्रायवक दुःखानुभूति की व्यंजना तथा रामचन्द्र का उदात्त एवं आदर्श चरित्र सब मिलाकर कालिदास की चरित्र चित्रण संबंधी कला को सर्वोच्च सीमा पर पहुंचा देते हैं इतिवृत्तात्मक काव्य होते हुए भी "रघुवंश" में भावात्मक समृद्धि का चरम रूप दिखालाया गया है। इसमें कवि ने प्रमुख रसों के साथ घटनावली को संबद्ध कर कथानक में एकसूत्रता एवं चमत्कार लाने का सफल प्रयास किया है।
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संस्कृत वाङ्मय कोश ग्रंथ खण्ड / 289