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द्वारा प्रवेशक तथा विष्कंभक का अभाव । प्रतीक पात्र सरोजिनी तथा पुण्डरीक (कमल) । कथासार मदन- दहन के पश्चात इस जगत् में काम के अभाव में अव्यवस्था होती है। अं में शिव-पार्वती के विवाह के अवसर पर सभी की कामनापूर्ति होती है तथा शिव वरदान देते हैं- भारतीय रसिकजन देशभिमानी, कलानिपुण तथा ईश्वरभक्त बने।
रतिसार
2) ले कौतुकदेव । विषय- कामशास्त्र ।
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रत्नकरण्ड श्रावकचार
शती । पिता शान्तिवर्मा ।
ले. राजा महादेव। विषय- कामशास्त्र ।
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रत्नकरण्ड श्रावकाचारटीका ले. - प्रभाचन्द्र, जैनाचार्य । समयदो मान्यताएं (1) ई. 8 वीं शती 2) ई. 11 वीं शती । रत्नकरण्डका ले. द्रोण । ई. 1886-92। इसमें प्रायश्चित्त, स्पृष्टास्पृष्टप्रकरण, शौचाशौच, श्राद्ध, गृहस्थाश्रमधर्म, दाय, ऋण, व्यवहार, दिव्य, कृच्छ्र आदि पर विवेचन है । रनकेतदयम् ले. बालकवि ई. 16 वीं शती उत्तर अर्काट के निवासी। कोचीन के राजा रामवर्मा की इच्छानुसार इस नाटक की रचना हुई। ऐतिहासिक महत्त्व का नाटक । नायक राजा रामवर्मा है तथा उनके राज्यभार छोडने के पूर्व का कथानक है। श्रीविद्या प्रेस कुम्भकोणम् से प्रकाशित । रत्नकोश - ले. नृसिंह पुरी । परिव्राजक । श्लोक- 3500 1 2) ले. - लल्ल | विषय - मुहूर्तशास्त्र ।
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रत्नकोषवादरहस्यम् - ले. - गदाधर भट्टाचार्य ।
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रत्नकोशविचार- ले. हरिराम तर्कवागीश । रत्नत्रयम् ले रामकण्ठ ।
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ले. - समन्तभद्र । जैनाचार्य। ई. प्रथम
रत्नत्रयव्रतकथा ले. श्रुतसागरसूरि जैनाचार्य । ई. 16 वीं शती । रत्नपंचकावतार मौलिक तन्त्र । श्लोक 12000 पटल11 विषय देवी (कुब्जिका) और भैरव संवाद में पांच रनों (कुल, अकुल, कौल, कुलाष्टक तथा कुलषट्क) का वर्णन । रत्नप्रभा ले. - गोविन्दानन्द। विषय- शंकराचार्य के सुप्रसिद्ध शारीरक भाष्य पर टीका।
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रत्नमाला
ले. श्रीपति विषय मुहूर्तशास्त्र
रत्नमाला
ले. - शतानन्द ।
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रत्नसेनकुलप्रशस्ति - ले. भावदत्त । बंगाल के सेन वंश का इतिहास इस काव्य का विषय है।
रत्नाकर ले. शिवरामचन्द्र ( नामान्तर - शिवचन्द्र सरस्वती । विषय सिद्धान्तकौमुदी की टीका
2) ले. रामकृष्ण । विषय- सिद्धान्तकौमुदी की टीका । ई.
18 वीं शती। 3) ले. गोपाल । 4) ले रामप्रसाद ।
रत्नार्णव ले. कृष्णमित्र सिद्धान्तकौमुदी की टीका । ।
रत्नावली (नाटक)
प्रणेता सम्राट् हर्ष या हर्षवर्धन । इस
नाटिका में राजा उदयन व रत्नावली की प्रेम-कथा का वर्णन है। नाटिकाकार ने प्रस्तावना के पश्चात् विष्कम्भक में नायिका की पूर्वकथा की सूचना दी है। उदयन का मंत्री यौगंधरायण ज्योतिषियों की वाणी पर विश्वास कर लेता है कि राज्य कि अभ्युन्नति के लिये सिंहलेश्वर की दुहिता रत्नावली के साथ राजा उदयन का विवाह होना आवश्यक है। ज्योतिषियों ने बतलाया कि रत्नावली जिसकी पत्नी होगी, उसका चक्रवर्तित्व निश्चित है। इस कार्य को संपन्न करने के हेतु वह सिंहलेश्वर के पास रत्नावली का विवाह उदयन के साथ करने को संदेश भेजता है । उदयन इस विवाह को वासवदत्ता के कारण स्वीकार करने में असमर्थ हैं। अतः यौगंधरायण ने यह असत्य समाचार प्रचारित करा दिया कि लावाणक में वासवदत्ता आग लगने से जल मरी। इसी बीच सिंहलेश्वर ने अपनी दुहिता रत्नावली (सागरिका) को अपने मंत्री वसुभूति व कंचुकी के साथ उदयन के पास भेजा, पर दैवात् रत्नावली को ले जाने वाले जलयान के टूट जाने से वह प्रवाहित हो गयी तथा भाग्यवश कौशांबी के व्यापारियों के हाथ लगी। व्यापारियों ने उसे लाकर यौगंधरायण को सौंप दिया । यौगंधरायण ने उसका नाम सागरिका रख कर, उसे वासवदत्ता के निकट इस उद्देश्य से रखा कि उदयन उसकी और आकृष्ट हो सके। यहीं से मूल कथा का प्रारंभ होता है।
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संक्षिप्त कथा इस नाटक के प्रथम अंक में वासवदत्ता कामदेव की पूजा करती है। वासवदत्ता के अन्तःपुर में सागरिका (दासी के रूप में रहती हुई रत्नावली) वहां राजा को देख कर उस पर आसक्त हो जाती है। द्वितीय अंक में कदली गृह में सागरिका और राजा की भेंट होती है किन्तु वासवदत्ता के आगमन से सागरिका चली जाती है। तृतीय अंक में राजा और सागरिका के प्रेम को देखकर वासवदत्ता क्रुद्ध होकर सागरिका को बन्दीगृह में डाल देती है। चतुर्थ अंक में ऐन्द्रजालिक की माया से बन्दीगृह में अग्निदाह उत्पन्न होने से सागरिका को वासवदत्ता मुक्त कर देती है। उस समय सिंहलेश्वर का अमात्य वसुभूति और कंचुकी बाभ्रव्य राजभवन में आते हैं और सागरिका को पहचान लेते हैं। तब वासवदत्ता अपनी मामा की पुत्री रत्नावली (सागरिका) का राजा के साथ विवाह संपन्न करती है। इस नाटिका में कुल आठ अर्थोपक्षेपक हैं। इनमें 1 विष्यम्भक 3 प्रवेशक और 4 चूलिकाएं हैं।
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"रत्नावली” संस्कृत साहित्य की प्रसिद्ध नाटिकाओं में है, जिसे नाट्यशास्त्रीयों ने अत्यधिक महत्त्व देते हुए अपने ग्रंथों में उद्धृत किया है। इसमें नाट्य शास्त्र के नियमों का पूर्ण रूप से विनियोग किया गया है। "दशरूपक", "साहित्य-दर्पण आदि शास्त्रीय ग्रंथों में इसे आधार बनाकर नाटिका के स्वरूप की चर्चा की गई है तथा इसे ही उदाहरण के रूप में रखा है । (साहित्य दर्पण -3/72) नाटिका के शास्त्रीय स्वरूप की
संस्कृत वाङ्मय कोश ग्रंथ खण्ड / 291
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