________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(अष्टादशाक्षर गोपाल-मंत्र) की विस्तृत व्याख्या है। इस ग्रंथ के उद्धार। मंत्र तथा विविध चक्रों का निरूपण। मंत्रों के पर सुंदर भट्टाचार्य ने मंत्रार्थ-रहस्य-व्याख्या लिखी है। दोष की निवृत्ति के उपाय। काली, तारा, भैरवी, भुवनेश्वरी, मंत्रवल्लरी - ले.- भगवद्भक्त-किंकर गंगाधर । यह मंत्रमहोदधि । मातंगी, विपुला, इन्द्राणी, मंगला, चण्डी आदि के मंत्र । की टीका है। पितामह- महायुकरोपनामक वीरेश्वरभट्ट अग्निहोत्री। देव-प्रतिष्ठा, मंत्रसंस्कार आदि। पिता- सदाशिवभट्ट। श्लोक- 4347। तरंग- 22 ।
मंत्रार्थ-निर्णय - ले.- श्रीविश्वनाथसिंह। इसमें रामतंत्र तथा मंत्रवारिधि - ले.- टीकाराम। पिता- भास्कर ।
रामपूजा की सर्वोत्कृष्टता प्रमाणों द्वारा सिद्ध की गई है। मन्त्रविभाग - ले.- भास्कर।
मंत्राभिधानम् - ले.- यदुनन्दन भट्टाचार्य। विषय- यकारादि मंत्रव्याख्या-प्रकाशिका - ले.- नीलकण्ठ। पिता- रंगभट्ट। मातृकावर्गों के देवता और अर्थ का प्रतिपादन । 2) ले- नंद कात्यायनीतंत्र की टीका। श्लोक- लगभग- 7101
(नन्दन) भट्टाचार्य भैरवी-भैरव संवादरूप। विषय- मंत्रों के मंत्रशास्त्रम् - ले.- कमलाकर। इस मंत्रशास्त्र में उर्ध्वाम्नाय
भेद तथा मंत्रों में व्यवहृत मातृका वर्णों के नाम दिये गये हैं। के मंत्र हैं। श्लोक- 22001
मंत्राराधनदीपिका - ले.- यशोधर। पिता- कंसारि मिश्र । मंत्रशास्त्रकारसंग्रह - ले.- तंजौर के नरेश तुलाजीराज। रचना
रचनाकाल- शकाब्द- 14801 प्रकाश- 101 श्लोक- 394 । काल- संवत् 1765-88 के मध्य। श्लोक- लगभग 2544 |
विषय- तांत्रिक विधियां, दीक्षा, वास्तुयाग तथा विविध देवियों विषय- अध्याय 1) उपोद्घात, 2) शिवविषयक प्रतिपादन,
की पूजा। 3) वैष्णव-प्रकरण, 4) देवी-विषयक, 5) मोक्ष-विषयक। मंत्रोद्धार - वैष्णवतन्त्रसार से गृहीत। श्लोक- 300। पटल मंत्रशुद्धिप्रकरणम् - कौन मन्त्र किस व्यक्ति के लिए अनुकूल
61 विषय- तंत्रोक्त मंत्रों के रहस्य, अक्षर, पदों तथा देवियों या प्रतिकूल है, इस विषय का इस ग्रंथ में प्रतिपादन है।
की पूजा। अपने नक्षत्र, तारा, राशि और कोष्ठ के अनुकूल मंत्रों का मंत्रोद्धार-कोश (या उद्धारकोश) - ले.-दक्षिणामूर्ति। 7 जप करना चाहिये, यह इसका प्रतिपाद्य विषय है।
कल्पों में पूर्ण। (2) ले- श्रीहर्ष । मंत्रशोधनम् - ले.- कान्ताकर । श्लोक- 40। विषय- मंत्र-शोधन
मंत्रोद्धारप्रकरणम् - ले.- अखण्डानन्द । के नौ प्रकार।
मांत्रिकोपनिषद् - भृगूत्तम भार्गव द्वारा रचा गया एक यजुर्वेदीय मंत्र-संग्रह - श्लोक- 3800। प्रकाश-5। विषय- मारण आदि उपनिषद् है। इसमें केवल 19 श्लोक हैं। तांत्रिक क्रियाओं के मंत्रों का हिन्दी में प्रतिपादन। लोगों को मयवास्तु - ले.- मय। मद्रास के श्री. व्ही. रामस्वामी शास्त्री वश में लाने के लिए शाबर मंत्र तथा औषधियां इसमें वर्णित हैं। एण्ड सन्स द्वारा तेलगु अनुवाद सहित इसका प्रकाशन हुआ है। मंत्रसाधना - ले.-नागार्जुन। श्लोक- 1101
मयशास्त्रम् - ले.- मय। विषय- शिल्पशास्त्र । मंत्रसार - ले.- 1) सिद्धनाथ (नित्यनाथ सिद्ध) लिपिकाल
मयशिल्पम् - ले.- मय । त्रिवेंद्रम संस्कृत सिरीज से प्रकाशित । शकाब्द 16001 (2) दामोदर । (3) उत्पलदेव । श्लोक-7301 मयशिल्पतिका - ले.- मय। मंत्रसारसंग्रह - ले.- शिवराम ।
मयशिल्पशास्त्रम् - ई. 1876 में जे. ई. कान्स नामक मंत्रसारसमुच्चय - ले.- पूर्णानंद। श्लोक- 7000।
तंजावर के मिशनरी ने तेलगु लिपि में मुद्रण करवाया। इंडियन मंत्रसिद्धान्तमंजरी - ले.- भडोपनामक काशीनाथ भट्ट। यह
अण्टिक्वेरी में अंग्रेजी अनुवाद प्रकाशित । ग्रंथ तीन भागों में विभक्त है।
मयसंग्रह - ले.- मय। विषय- शिल्पशास्त्र। मंत्राक्षरीभवानीसहस्रनामस्तोत्रम् - श्लोक- 5401
[मयकृत शिल्प-विषयकग्रंथ :- मयदीपिका, मयमत, प्रतिष्ठातंत्र, मंत्रार्थदीपिका - ले.- पयोधर। प्रकाशसंख्या- 5।
शिल्पशास्त्रविधान, मयशिल्प, मयसंग्रह, प्रतिष्ठातत्त्व। मयसंस्कृति मंत्रार्थदीपिका (या सारसंग्रह) - ले.- श्रीहर्ष कवि। श्लोक- का प्रचार दक्षिण अमरिका तक हआ था ऐसा विद्वानों का 7301 विषय- हरचक्र, अकथहचक्र, ऋणी और धनीचक्र,
मत है। श्री.सी. चमनलाल ने अपने "हिंदु अमेरिका" नामक नक्षत्रगण-मैत्री, राशिचक्र, भौतिकचक्र, अकडमचक्र, कूर्मचक्र,
अंग्रेजी ग्रंथ में यह मत सप्रमाण स्थापित किया है।] दीक्षाफल, गुरुलक्षण तथा शिष्यलक्षण, दीक्षा में मास, तिथि, मयूख - ले.- शंकर मिश्र। ई. 15 वीं शती। नक्षत्र, लग्न, तीर्थस्थान आदि का निर्णय इ.
मयूरचित्रकम् - ले.- भट्टगुरु। सात खण्डों में पूर्ण । मंत्रार्थदीपिका - ले- गोविन्द न्यायवागीश भट्टाचार्य। श्लोक- मयूरसंदेशम् - ले.- उदयकवि। ई. 15 वीं शती। प्रस्तुत 7378। इसमें कतिपय मंत्रों की व्याख्या की गई है। विषय- संदेशकाव्य "मेघदूत" के समान पूर्व उत्तर भागों में विभाजित शाक्त, शैव, आदि पांच देवोपासकों के हितार्थ विविध मंत्रों है। दोनों भागों में क्रमशः 107 व 92 श्लोक हैं। इसका
संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड/255
For Private and Personal Use Only