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है कि अनेक तंत्रों का अवलोकन कर मैं (महीधर) मंत्र महोदधि का प्रतिपादन करता हूं। विषय- उपासक के प्रातःकालीन कृत्य, भूतशद्धि, गणेशमंत्र, काली, सुमुखी तथा तारा के मंत्र, तारामंत्र-भेद, छिन्नमस्ता, यक्षिणी, बाला, लघुयामा, अन्नपूर्णा, बगला आदि के मंत्र। श्रीविद्या के मंत्र । सुन्दरी की पूजाविधि, हनुमानजी के मंत्र, विष्णु, शिव, सूर्य आदि के मंत्र, पवित्रारोपण, मंत्रशोधन, षट्कर्म आदि का निरूपण इत्यादि। मंत्रमहोदधि की टीकाएं- 1) नौका टीका ग्रंथकार कृत, 2) पदार्थादर्श-काशीनाथ कृत, 3) मंत्रवल्ली गंगाधरकृत। मंत्रमंजूषा - ले.- त्रिविक्रम भट्टारक । गुरु- रामभारती। श्लोक15001 मंत्रमाला - इसमें देवियों के मंत्रों का संग्रह तथा तंत्रानुसारी क्रियाएं, ऋषि, न्यास, ध्यान आदि वर्णित हैं। ये सब मंत्र
आदि भुवनेश्वरी, अन्नपूर्णा, पद्मावती, जयदुर्गा और लक्ष्मी के हैं। मंत्रमुक्तावली - 1) ले- पूर्णप्रकाश । गुरु-परमहस परिव्राजकाचार्य अनन्तप्रकाश। पटल- 25, विषय- बहुत सी तांत्रिक विधियां, दीक्षा, विभिन्न देवियों के पुरश्चरण, पूजा, मंत्र इ.। श्लोक5000। 2) पार्वती- महेश्वर संवादरूप ।श्लोक- 100। इसमें 16 पटलों में विविध मंत्र, ध्यान, न्यास, कवच, सहस्रनामस्तोत्र वर्णित हैं तथा 17 वें पटल में छिन्नमस्ता के सहस्रनाम दिये गये है। मंत्रमुक्तावली विधि- तंत्रसारोक्त । विषय- भुवनेश्वरी, अन्नपूर्णा, त्रिपुरा, महिषमर्दिनी, जयदुर्गा, श्री, हरिद्रागणेश, सूर्य, अग्नि, विष्णु, रामचंद्र, वासुदेव, नृसिंह, वराह, कृष्ण, शिव, क्षेत्रपाल,भैरव, भद्रकाली आदि के विविध मंत्र। वीरसाधना आदि के मंत्र। मारण, मोहन आदि के मंत्र एवं अदर्शन-मंत्र। मंत्ररत्नम् - ले.-अनन्त पण्डित । मंत्ररत्नमंजूषा - ले.- त्रिविक्रम भट्ट । श्लोक-8101 पटल-8। मंत्ररत्नाकर - ले.- 1) ले- विजयराम आचार्य। गुरुचतुर्भुजाचार्य। तरंग- 14 (या 16)। विषय- केवल श्रीराधा के मंत्र और स्तोत्र इस ग्रंथ पर एक टीका उपलब्ध है जो ग्रंथकार कृत ही है। 2) ले- कृष्णभट्ट। श्लोक- 3501 3) मंत्ररत्नाकरमहापोत - ले- विजयरामाचार्य। गुरु-चतुर्भुज श्लोक1024। 4) ले.- श्रीयदुनाथ चक्रवर्ती। पिता- गौडदेशीय महापहोपाध्याय विद्याभूषण भट्टाचार्य। तरंग- 101 प्रत्येक तरंग में कई पटल हैं। कुछ पटलों की संख्या 49 तक है। विषयदीक्षा, चक्रविवेचन, माला-ग्रथन प्रकरण, आसनविधि, मंत्रशुद्धि-प्रकरण, प्रमाण-विवेचन, वास्तुभाग-प्रकरण, मण्डपनिर्माण, सर्वतोभद्रमण्डलविधि, मंत्रदोषकथन, वर्णमयी दीक्षा की विधि, कलावती दीक्षा, मुद्राप्रकरण, दशविद्या, मातृका प्रपंच, भुवनेश्वरीपूजा-प्रकरण, हरिद्रागणपति-मंत्र, चंद्रमन्त्र, धूमावती-मंत्र, कौलेश-भैरवी, चैतन्य-भैरवी, कामेश्वरी भैरवी, षट्कूटा भैरवी, नित्या भैरवी, रुद्र-भैरवी, भुवनेश्वरी भैरवी,
अन्नपूर्णेश्वरी भैरवी आदि बहुत से विषय प्रतिपादित। श्लोक94881 मंत्ररत्नावली - ले.-भास्कर मिश्र। इनके आश्रयदाता थे कीर्तिसिंह जिनकी प्रेरणा से ग्रंथ निर्माण हुआ। उल्लास- 26 | विषय - मंत्रों के बालादि भेद, नक्षत्र प्रकार और ऋणशोधन, दीक्षाप्रकार, कुण्ड-निर्माण, भूमि पर पांच रंगों से श्रीचक्र का पूजन तथा समयाचार, होमविधि, मंत्रों के दस संस्कार, नित्य सृष्टि, स्थिति, लय, अपिधान और अनुग्रह रूप पंचकृत्यकारी शिव की स्तुति, विविध मुद्राएं, कूर्मचक्र, विद्यापूजन, रत्नपूजाविधान, काम्यकर्म, न्यासविधि, दक्षिणापुण्य, वारादिभेद, प्राणाग्निहोत्रविधि, शिरोमंत्र, भुवनेश्वरी-मंत्र, त्वरितामंत्र, दुर्गामंत्र, गणपति-मंत्र तथा वर-मंत्र। मंत्ररत्नावली (नामान्तर- सुरत्नावली, मनुरत्नमाला या मंत्ररत्नमाला)। ले.-विद्याधरशर्मा । गुरु-जगद्वल्लभ भट्टाचार्य । पिता- जगद्धर। यह शारदातिलक से संगृहीत ग्रंथ 10 पटलों में पूर्ण है। विषय- योनिमुद्रा, राशिविवाह, दीक्षा, होम, विष्णु-पूजा-विधि, वराहमंत्र, गोपाल मंत्र विधि, न्यासादिविधि, उमा-महेश्वरादि के पूजन की विधि, मृत्युंजयविधि आदि । मंत्रराज - ले.- चन्द्रचूड। श्लोक- 135। मंत्रराजपद्धति - श्लोक- 3261 मंत्रराजरहस्यदीपिका - ले.- श्लोक- 2000। मंत्रराजविद्योपासनाक्रम - श्लोक- 242 । मंत्रराजसमुच्चय - ले.- काशीनाथ। 1) पूर्वार्ध श्लोक- 9944 उत्तरार्ध श्लोक- 5851 मंत्रराजार्थ-दीपिका - तान्त्रिक मंत्रों का संग्रहात्मक ग्रंथ । संग्रहकर्ता- नीलकण्ठ चतुर्धर। मंत्ररामायण - ले.- नीलकंठ चतुर्धर । पिता- गोविंद। माताफुल्लांबिका। ई. 17 वीं शती। रामकथा वेदमूलक है यह बतलाना इस रामायण का उद्देश्य है। इसके प्रारंभ में रामरक्षास्तोत्र है। कुछ वैदिक मंत्रों में रामकथा के बीज पाये जाते हैं ऐसा नीलकंठ ने प्रतिपादित किया है। इन मंत्रों को मंत्ररामायण में उद्धृत किया गया है। ऋग्वेद का वभ्रदृष्ट (10.99) सूक्त इंद्र की स्तुतिपरक है। नीलकंठ के अनुसार वभ्र याने वाल्मीकि, इंद्र याने राम, तथा रुद्रगण याने हनुमान् तथा उनके सहायक वानर हैं। मंत्रयन्त्रचिन्तामणि - श्लोक- 6401 मंत्रयन्त्रविधि - श्लोक- 384 । मंत्ररहस्यम् - ले.- सोम्योपयन्तृ। श्लोक- 1638 । मंत्ररहस्यप्रकाश - ले- नीलकण्ठ चतुर्धर। यह स्वकृत मंत्ररामायण की व्याख्या है। श्लोक- 2366। मंत्र-रहस्य-षोडशी - ले.- निंबार्काचार्य। 18 श्लोकों के इस ग्रंथ में प्रारंभिक 16 श्लोकों में निंबार्क-मत के पूज्य मंत्र
254/ संस्कृत वाङ्मय कोश - प्रेथ खण्ड
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