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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रथम श्लोक मालिनी छंद में है जिसमें गणेशजी की वंदना की गई है। शेष सभी श्लोक, मंदाक्रांता वृत्त में हैं। इसमें विद्याधरों द्वारा हरे गए किसी राजा ने अपनी प्रेयसी के पास मयूर से संदेश भिजवाया है। एक बार मलबार नरेश के परिवार का कोई व्यक्ति, अपनी रानी भारचेमंतिका के साथ विहार कर रहा था। विद्याधरों ने उसे शिव समझ लिया। इस पर राजा उनके भ्रम पर हंस पडा। यह देख विद्याधरों ने उसे एक मास तक अपनी पत्नी से दूर रहने का शाप दे दिया। राजा की प्रार्थना पर उसे स्थानदूर (त्रिवेंद्रम) में रहने की अनुमति प्राप्त हुई। वर्षा ऋतु के आने पर राजा ने एक मोर को देखा और उसके द्वारा अपनी पत्नी के पास संदेश भेजा। कवि ने केरल की राजनीतिक व भौगोलिक स्थिति पर पूर्ण प्रकाश डाला है। मरणकर्मपद्धति - यजुर्वेदीय गृह्यसूत्र से संबंधित । मराठी-संस्कृत शब्दकोश - संपादक श्री. जोशी, परांजपे, गाडगील । मराठी में प्रचलित शब्दों के संस्कृत पर्याय इसमें दिए हैं। शारदा-प्रकाशन, पुणे-301 मरीचिका - ले.- भट्ट व्रजनाथ। पुष्टिमार्गीय सिद्धांतानुसार ब्रह्म-सूत्र पर लिखी गई एक महत्त्वपूर्ण वृत्ति। यह वृत्ति, मूल अर्थ के समझने की दृष्टि से बड़ी ही उपयोगी है और अणु-भाष्य पर अवलंबित है। मर्कटमार्दलिकम् (भाण) - ले.- महालिंगशास्त्री। रचना1937 में। "मंजूषा' पत्रिका में, सन 1951 में कलकत्ता से प्रकाशित । कथासार- एक मर्कट की पूंछ में काटा चुभता है। एक नाई कांटा निकालता है परंतु पूंछ कट जाती है। वह नाई का छुरा लेकर कूदता है। किसी बुढिया से छुरे के विनिमय में टोकरी, फिर टोकरी के बदले किसी गाडीवान से बैल, फिर किसी तेली से बैल के बदले घडा भर तेल लेता है। एक बुढिया को तेल देकर पूए बनवाकर खा जाता है। कुछ पूए गायक को देकर उनसे मर्दल लेकर बजाता है, और घोषित करता है कि मै अब नेता हूं, पूंछ कटने से मैं मनुष्य बन गया हूं। सभी उसका लोहा मानते हैं। मर्मप्रदीपवृत्ति - ले.- दिङ्नाग। अभिधर्मकोश पर टीका। यह ग्रंथ केवल तिब्बती अनुवाद से ज्ञात है। मलमासतत्त्वम् (नामान्तर मलीम्लुचतत्त्वम्) - ले.- रघुनन्दन । इस ग्रंथ पर 1) जीवानंद 2) काशीराम वाचस्पति (पिताराधावल्लभ), 3) मथुरानाथ, 4) राधामोहन, 5) वृन्दावन । एवं 6) हरिराम द्वारा लिखित टीकाएं उपलब्ध हैं। मलमासनिर्णयतंत्रसार - ले.- वासुदेव । मलमासनिर्णय - ले.- 1) बृहस्पति भवदेव के पुत्र । 2) ले- वंचेश्वर नरसिंह के पुत्र । मलमासरहस्यम् - ले.- बृहस्पति । भवदेव के पुत्र। रचना 1681-2 ई. में। मलमासार्थसंग्रह - ले.- गुरुप्रसाद शर्मा। मलयजाकल्याणम् (नाटिका)- ले.- वीरराघव। ई. 18 वीं शती। उत्तरार्ध। जबलपुर से डॉ. बाबूलाल शुक्ल द्वारा प्रकाशित। तेलंगना के सत्यव्रत क्षेत्र के भगवान् देवराज के फाल्गुन उत्त्सव पर अभिनीत। अंकसंख्या- चार। कथावस्तु उत्पाद्य । कथासार - नायक देवराज मगया हेतु मलयपर्वत पर आता है और वीणागान करती हुई मलयजा (मलयराज की कन्या) पर मोहित होता है। महादेवी यह जान मलयजा के वेश में जाकर नायक का प्रणयालाप सुन कुपित होती है। राजा को मगयासक्त देख यवन आक्रमण करते हैं। अन्त में जामदग्न्य मुनि की मध्यस्थता से नायक का विवाह मलयजा के साथ होता है, और यवन भी परास्त होते हैं। मल्लादर्श - ले.- प्रेमनिधि पन्त । मल्लारिकल्प - मार्तण्ड भैरव तंत्र से गृहीत । श्लोक-3600। मल्लिकामारुतम् (प्रकरण) - ले.- उदंड कवि। कालीकत के राजकवि। ई. 16-17 वीं शती। यह प्रकरण 10 अंकों में है। इसका कथानक "मालती-माधव" से मिलता-जुलता है। प्रकाशक- जीवानंद विद्यासागर । मल्लिनाथचरितम् - ले.- सकलकीर्ति। जैनाचार्य। ई. 14 वीं शती । पिता- कर्णसिंह । माता- शोभा । सर्ग-7। श्लोक-874 । मल्लिनाथ-मनीषा - उस्मानिया विश्वविद्यालय (हैदराबाद) द्वारा सन 1979 सितंबर मास में विश्वविद्यालय के हीरक महोत्सव के उपलक्ष्य में, संस्कृत साहित्य के सुप्रसिद्ध टीकाकार की साहित्यसंपदा पर एक परिसंवाद आयोजित किया था। मल्लिनाथ आंध्र प्रदेश में कोलाचलम् (जि- मेदक) के निवासी होने के कारण यह आयोजन किया गया था। इस समारोह में 22 विद्वानों ने मल्लिनाथ विषयक जो शोध निबंध पढे, उनका संग्रह उस्मानिया विश्वविद्यालय के संस्कृत विभागाध्यक्ष डा. प्र.ग. लाले ने प्रस्तुत ग्रंथ (पृष्ठ संख्या- 160) के रूप में प्रकाशित किया। इस संग्रह में 9 निबंध संस्कृत भाषा में हैं। शेष अंग्रेजी और तेलगु भाषा में है। अर्वाचीन पद्धति से संस्कृत में लिखे हुए शोध निबंधों का यह एक उत्कृष्ट नमूना है। महर्षि-चरितामृतम् - ले.- सत्यव्रत। सन 1965 में मुम्बई से प्रकाशित । गंगानाथ झा रिसर्च इन्स्टिट्यूट, प्रयाग में प्राप्य । अंकसंख्या- पांच। प्रत्येक अंक में महर्षि दयानंद सरस्वती के जीवन के क्रमशः शिवरात्रि उत्सव, महाभिनिष्क्रम, गुरुदक्षिणा, पाखण्ड-खण्डन तथा मृत्युंजय नामक प्रकरण हैं। महा-आर्यसिद्धांत - ले.-आर्यभट्ट (द्वितीय)। ज्योतिष शास्त्र संबंधी एक अत्यंत प्रौढ ग्रंथ। 18 अध्यायों में विभक्त। 625 आर्या छंद हैं। भास्कराचार्य के "सिद्धांत-शिरोमणि' में इस ग्रंथ में अंकित मत का उल्लेख प्राप्त होता है। "महा-आर्य 256 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड For Private and Personal Use Only
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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