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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रूपक अलंकारों का प्रचुर प्रयोग। कई स्थानों पर संस्कृत-प्राकृत मिश्रित संवादयुक्त श्लोक है। कथावस्तु - पाटलपुर का राजा चन्द्रवर्मा चन्चाल के राजा पराक्रमभास्कर को बन्दी बनाकर उसके राज्यपर अधिकार कर लेता है। प्रज्ञावती नामक तपस्विनी परिव्राजिका को भी वह दासी बनाता है। पुष्करपुर के राजा धर्मध्वज की पुत्री हेमवती को वह पत्नीरूप में पाना चाहता है। उसे बचाने स्वयं शिव, कुबेर तथा महाकाल पुष्करपुर निकल पड़ते हैं। चन्द्रवर्मा के आतङ्क से अभिभूत धर्मध्वज उसे अपनी कन्या देना मान लेता है, तो दासी बनी प्रज्ञावती उसे नायक से मिलाने की ठान लेती है। वह कपट नाटक का अवलम्ब कर उसे मिलने का मार्ग प्रशस्त कराती है। अन्त में नायिका का विवाह राजा शिखामणि के रूप में भगवान् शिव के साथ होता है। मदनमहार्णव - ले. मांधाता। मदनपाल का द्वितीय पुत्र । श्रुति-स्मृति-पुराणों का समालोचन कर ई. 15 वीं सदी में यह ग्रंथ, पेदिभट्ट के पुत्र विश्वेश्वरभट्ट की सहायता से निर्माण किया। प्राक्तनकर्म और अदृष्ट के कारण किन रोगों की उत्पत्ति शरीर में होती है और धर्मशास्त्रोक्त होमहव-जप आदि दैवी उपचारों से उनका निवारण कैसे हो सकता है, यह इस ग्रन्थ का प्रतिपाद्य विषय है। आयुर्वेद में “दृष्टापचारजः कश्चित्, कश्चित् पूर्वापराधः । तत्संस्काराद् भवेदन्यः" इस वचन में रोगों के जो तीन कारण माने जाते है, उसमें से “पूर्वापराधज" रोगों का निवेदन मदनमहार्णव में है। ग्रंथोक्त अध्यायों को “तरंग" कहा है। संपूर्ण तरंग संख्या-40। तरंगों के विषय-प्रायश्चित्त, परिभाषा, व्याधिप्रतिमा, प्राचार्यवरण, शांतिपाठ, होम, कर्मज और उभयज रोग, रूद्रसूक्त, पुरुषसूक्त विनायकशांति, ग्रहशांति, कृच्छदि व्रत इत्यादि । तरंग 8 से 38 तक में क्षय, ज्वर श्वास इत्यादि अनेकविध रोगों का वर्णन और उनके निवारणार्थ वैदिक होमहवनादि उपचार निवेदित है। अन्न की चोरी से पेट का दर्द; गोहत्या से मस्तक, कान आदि रोग, मंगलकार्य में क्रुद्ध होने से ज्वर; कृतघ्नता से कफ दमा; जलाशय में मलमूत्र विसर्जन करने से शोथ सूझन इस प्रकार के रोग होते हैं। उनका निवारण रुद्राभिषेक, चांद्रायणव्रत कृच्छ्रवत, मृत्युंजय-जप इत्यादि आधिदैविक उपचारों से होता है। तरंग 39 में अप्रतिष्ठा, दारिद्र निकृष्ठता, नित्य दुःख इत्यादि विषयों का परामर्श है। अंतिम तरंग में ग्रहपीडा और उसके निवारण के वैदिक उपचार बताएं हैं। मदनसंजीवनम् (भाण) - ले.-घनश्याम। (1700-1750 ई.) प्रथम अभिनय पुण्डरीकपुर (चिदम्बर) में, कनक सभापति के आर्द्रादर्शन के महोत्त्सव में। वेश्यागामियों का अनेकमुखी पतन दिखाकर, समाज को वेश्यागमन से परावृत्त करने हेतु लिखित रूपक। विविध संप्रदायों में प्रचलित लम्पटता एवं भ्रष्टाचार का भंडाफोड करनेवाली यह कृति महत्त्वपूर्ण है। मदनाभ्युदय (भाण) - ले.-कृष्णमूर्ति । ई. 17 वीं शती (उत्तरार्ध)। पिता-सर्वशास्त्री। मदालसाचम्पू - ले.-त्रिविक्रमभट्ट। ई. 10 वीं शती। पिता-नेमादित्य। मदिरोत्सव - ले.-ओमरखय्याम की रूबाइयों का संस्कृत अनुवाद। अनुवादक-प्रा. व्ही. पी. कृष्ण नायर । एर्नाकुलम (केरल) के निवासी। मद्रकन्या-परिणयचंपू - ले.-गंगाधर कवि। ई. 17 वीं शती का अंतिम चरण। यह चंपू-काव्य 4 उल्लासों में विभक्त है। इसमें "श्रीमद्भागवत" के आधार पर लक्ष्मणा व श्रीकृष्ण के परिणय का वर्णन किया है। मधुकेलिवल्ली - ले.-गोवर्धन। कृष्णलीला विषयक काव्य । मधुमती - ले.-नरसिंह कविराज । विषय-वैद्यकशास्त्र । मधुरवाणी - सन 1935 में बेलगांव (कर्नाटक) से गलगली पंढरीनाथाचार्य के सम्पादकत्व में इसका प्रकाशन प्रारंभ हुआ। तेरह वर्ष तक बेलगांव से प्रकाशित होने के बाद, यह बागलकोट से और 1955 से गदग (धारवाड) से प्रकाशित हुई। इसका वार्षिक मूल्य पांच रूपये था। इसमें सरल निबन्ध और कविताओं का प्रकाशन होता था। गदग से इसके संपादन का दायित्त्व गलगली रामाचार्य और पंढरीनाथाचार्य ने संभाला। मधुरानिरुद्धम् (नाटक) - ले.-चयनी चन्द्रशेखर । सन 1736 ई. में उत्कल नरेश गणपति वीरकेसरी देव के राज्याभिषेक के अवसर पर रचित । शिवयात्रा में उपस्थित महानुभावों के प्रीत्यर्थ अभिनीत। अंकसंख्या-आठ। उषा-अनिरूद्ध के परिणय की कथा, किन्तु कल्पित कथांश कतिपय स्थानों पर जोडे हुए हैं। प्रधान रस- श्रृंगार। अंगरस- वीर। आख्यायनात्मक शैली, अतएव कलात्मक नाट्यमयता की कमी है। इसमें लम्बे वर्णन है। परंतु प्रवेशक तथा विष्कम्भक का अभाव है। मथुराविजयम् (या वीरकंपराय-चरितम्) - कवियित्री गंगादेवी। विजयनगर के राजा कंपण की महिषी व महाराज बुक्क की पुत्रवधू। गंगादेवी ने प्रस्तुत ऐतिहासिक महाकाव्य में अपने पराक्रमी पति की विजय-यात्रा का वर्णन किया है। यह काव्य अधूरा है, और 8 सर्गों तक ही प्राप्त होता है। मधुवर्षणम् - ले.-दुर्गादत्त शास्त्री। निवास- कांगडा जिला (हिमाचल प्रदेश) में नलेटी नामक गांव। इस काव्य में सात सर्ग हैं। मधुवाहिनी - ले.-कल्लट । विषय- शैवागम। मध्यग्रहसिद्धि - ले.- नृसिंह। ई. 16 वीं शती। मध्यमव्यायोग - ले.- महाकवि भास। व्यायोग एक अंक का रूपक होता है। इसमें द्वितीय पांडव भीम और हिडिंबा की प्रणयकथा व उनके पुत्र घटोत्कच द्वारा सताये गये एक ब्राह्मण की भीम द्वारा मुक्ति का वर्णन है। घटोत्कच अपनी संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड /249 For Private and Personal Use Only
SR No.020650
Book TitleSanskrit Vangamay Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreedhar Bhaskar Varneakr
PublisherBharatiya Bhasha Parishad
Publication Year1988
Total Pages638
LanguageSanskrit
ClassificationDictionary
File Size30 MB
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