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माता हिडिंबा के आदेश से एक ब्राह्मण को सताता है। भीम ब्राह्मण को देख उसके पास जाते हैं, और हिडिंबा अपने पति (भीम) से मिलकर अत्यंत प्रसन्न होती है और अपना रहस्योद्घाटन करती हुई कहती है कि उसने भीम से मिलने के लिये ही वैसा षडयंत्र किया था। घटोत्कच भी अपने पिता से मिलकर अत्यंत प्रसन्न होता है। इस नाटक में मध्यम शब्द, मध्यम (द्वितीय) पांडव भीम का द्योतक है।.
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भास ने इस व्यायोग के कथानक को "महाभारत" से काफी परिवर्तित कर दिया है। इसमें भीम का व्यक्तित्व सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है, पर रूपक का संपूर्ण घटनाचक्र घटोत्कच पर केंद्रत है। व्यायोग का कथानक प्रसिद्ध व नायक धीरोद्धत्त होता है। इसमें वीर व रौद्र रस प्रधान होते हैं तथा गर्भ व विमर्श संधियां नहीं होती। मध्यमहृदय-रिका ले. - भावविवेक । बौद्धमत के शून्यवाद पर स्वतंत्र रचना । तिब्बती तथा अन्य अनुवादों से यह ग्रंथ ज्ञात है। मध्यमार्थसंग्रह - ले. भावविवेक प्रतिपाद्य विषय- शून्यवाद । तिब्बती अनुवाद से ज्ञात । मध्यान्तविभंग (मध्यांतविभाग) से. मैत्रेयनाथ कुछ संस्कृत मूल अंश उपलब्ध हैं। विधुशेखर भट्टाचार्य तथा डा. तशी ने इस ग्रंथ के प्रथम परिच्छेद का तिब्बती भाषा से संस्कृत में पुनरनुवाद कर मुद्रण किया। संपूर्ण ग्रंथ का आंग्लानुवाद डा. चेरवास्की ने किया है। ग्रंथरचना कारिकाबद्ध है। आचार्य वसुबन्धु ने इस पर भाष्य लिखा तथा उनके शिष्य आचार्य स्थिरमति ने टीका लिखी है। योगाचार मत के जटिल सिद्धान्तों का प्रतिपादन मूल ग्रंथ में और उसका उत्तम स्पष्टीकरण भाष्य तथा टीका में है।
मध्वसिद्धांतसार ले. पद्मनाभाचार्य ई. 16 वीं शती मनुस्मृति मनुद्वारा रचित वैदिक धर्मशास्त्र का एक प्रमुख ग्रंथ । संपूर्ण स्मृतियों में मनुस्मृति को विशेष प्रामाण्य है यह बात निम्नलिखित वचनों से स्पष्ट होती है
"यद्वै किंचन मनुरवदत् तद् भेषजम्”
जो कुछ मनु ने कहा है वह औषधि के समान है। ( तैत्तिरीय संहिता 2.10.2 )
वेदार्थोपनिबद्धत्वात् प्राधान्यं हि मनोः स्मृतेः मन्वर्थविपरीता तु या स्मृतिः सा न शस्यते । ।
वेदों के अर्थों का उपनिबंधन करने के कारण मनु की स्मृति को प्राधान्य प्राप्त हुआ है। मनु के अर्थ से विपरीत जो स्मृति होगी वह अप्रशस्त है (स्मृतिकार बृहस्पति ) । यह माना गया है कि मूल मनुस्मृति में देश, काल तथा परिस्थिति के अनुसार संशोधन तथा परिवर्तन हुआ है। आज जो मनुस्मृति उपलब्ध है, उसमें 12 अध्याय हैं तथा 2684 श्लोक हैं। वेदों के बाद भारतीय हिंदुओं का यह प्रमाणभूत ग्रंथ है।
250 / संस्कृत वाङ्मय कोश ग्रंथ खण्ड
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वह हिंदुओं की संस्कृति तथा आचार-विचार का आधारस्तंभ है शताब्दियों से हिंदुओं के वैयक्तिक, पारिवारिक एवं सामाजिक जीवन का नियमन इसके द्वारा हुआ है। आज भी करोडों हिंदुओं का आचार-विचार तत्त्वतः मनुस्मृति पर ही आधारित है।
रचनाकाल - मूल मनुस्मृति का रचनाकाल निश्चित करना बडा कठिन है। श्री मंडलिक मनुस्मृति को महाभारत के बाद की रचना, तो हापकिन्स तथा बुल्हर महाभारत के पहले की रचना मानते हैं। महाभारत के अधिकांश पर्वों में "मनुरब्रवीत्", "मनोः राजधर्मो" मनोः शास्त्रम्" आदि शब्दप्रयोग है तथा मनुस्मृति के उद्धरण भी है। धर्मशास्त्र इतिहास के लेखक भारतरत्न म.म. काणे ने इस संबंध में अपना मत इस प्रकार व्यक्त किया है- ई. पूर्व चौथी शताब्दी के बहुत पूर्व स्वयंभुव मनुकृत एक धर्मशास्त्र ग्रंथ था, जो संभवतः श्लोकबद्ध था । उसी प्रकार संभवतः प्राचेतस मनु का राजधर्म नामक ग्रंथ का भी उसी समय अस्तित्व था। यह भी संभव है कि उपर्युक्त ग्रंथ पृथक्-पृथक् न होकर, धर्म तथा राजनीति, दो विषयों का एक ही बृहद् ग्रंथ है। महाभारत के अनुशासन पर्व में, “प्राचेतसस्य वचनं कीर्तयन्ति पुराविदः " वचन है ( पुरातत्त्ववेत्ता प्राचेतस के वचन प्रशंसा से गाते हैं) यास्क, गौतम, बोधायन तथा कौटिल्य ने "मनु का मत" या "मानव के मत" जो शब्दप्रयोग किये हैं वे संभवतः प्रस्तुत प्राचीन ग्रंथ के संबंध में हों तथा यही प्राचीन ग्रंथ वर्तमान मनुस्मृति का मूल हो । प्रचलित मनुस्मृति में पूववर्ती ग्रंथ के कुछ भाग का संक्षेप तथा कुछ भाग का विस्तार किया गया है। इसीलिये प्राचीन मनु की रचना के अनेक श्लोक आज की मनुस्मृति में हैं तथा अनेक श्लोक नहीं हैं। इससे अनुमान निकलता है कि आज का महाभारत आज की मनुस्मृति के बाद रचा गया। नारद कहते हैं कि सुमतिभार्गव ने मनु का बृहद् ग्रंथ 4 हजार श्लोकों में संक्षिप्त किया। यह मत बहुधा सत्य पर आधारित है, क्योंकि साम्प्रत की मनुस्मृति में 2684 श्लोक हैं। नारद ने 4 हजार संख्या इसलिये दी कि उन्होंने वृद्धमनु और बृहन्मनु के श्लोकों का समावेश भी उसमें कर लिया हो । विश्वरूप, मिताक्षरा, स्मृतिचंद्रिका तथा पराशरमाधवीय ग्रंथों में वृद्ध मनु तथा बृहन्मनु के श्लोक दिये गये है। दोनों मनु के स्वतंत्र ग्रंथ आज तक उपलब्ध नहीं हुये हैं। यदि वे उपलब्ध हुए तो ज्ञात होगा कि वे मनु के बाद के हैं। विद्वानों का मत है कि साम्प्रत की मनुस्मृति भृगुप्रोक्त है तथा ई. पूर्व 2 री शताब्दी से ई. दूसरी शताब्दी तक की कालावधि में किसी समय निर्माण हुई हो ।
अध्यायानुसार विषयवस्तु 1) सृष्टि की उत्पत्ति 2) धर्म का सामान्य लक्षण, 3) गृहस्थाश्रम, 4) जीवनोपाय, 5) भक्ष्याभक्ष्य, 6) वानप्रस्थ, 7) राजधर्म, 8) व्यवहार, 9) स्त्रीरक्षा, 10 ) वर्णसंकर, 11) स्नातक के प्रकार, 12) शुभाशुभ
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