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ब्रह्मवैवर्तपुराण विष्णुपुराण के अनुसार यह 10 वां महापुराण है। तो भागवत तथा कूर्मपुराण के अनुसार इसका स्थान 9 वां है। इस पुराण का नाम ब्रह्मवैवर्त क्यों रखा, इसका स्पष्टीकरण यों दिया गया है :
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इस पुराण में कृष्णद्वारा ब्रह्म का संपूर्ण विवरण किया गया है। इसलिये इसे पुराण को तत्त्ववेत्ता ब्रह्मवैवर्त कहते हैं। स्कंदपुराण के मत से यह "सौर पुराण" है परंतु प्रचलित ग्रंथ में सूर्यमाहात्म्य का वर्णन नहीं है। देवी - यामल ग्रंथ में इसे "शाक्त पुराण" कहा गया है परंतु संपूर्ण पुराण का अनुशीलन करने पर स्पष्ट होता है कि यह "वैष्णव पुराण" है। वैष्णव इसे सात्त्विक पुराण मानते हैं। गौडीय, वल्लभ तथा राधावल्लभ वैष्णव संप्रदायों में जो साधनविषयक रहस्यों का प्रचार है, उनका मूल इस पुराण में है । नारायण ऋषि ने नारद को, नारद ने व्यास को, व्यास ने सौति को, सौति ने शौनक को, इस पुराण का कथन किया। यह पुराण सर्व पुराणों का सारभूत है- "सारभूतं पुराणेषु" ऐसा सौति कहते
। मत्स्यपुराण के अनुसार इसकी श्लोक संख्या 18 हजार है प्रस्तुत पुराण के 4 खंड है- 1) बाखंड, 2) प्रकृतिखंड 3) गणपतिखंड, 4) श्रीकृष्णखंड । कुल अध्याय - 276 तथा श्लोक संख्या - 10 सहस्र है। आद्य शंकराचार्य द्वारा विष्णुसहस्रनाम के भाष्य में प्रस्तुत पुराण के उद्धरण दिये गये हैं। इससे इसका रचनाकाल ई. 8 वीं शती से पूर्व सिद्ध होता है।
ब्रह्मसन्धानम् शिव-स्कन्द संवादरूप। 28 पटलों में पूर्ण । विषय- उत्क्रान्ति निर्णय, त्रिस्थानों में स्थित ब्रह्म का निर्णय, प्राणनिर्णय, दो अपनों का निर्णय, ग्रहणनिर्णय, भूतों की उत्पत्ति पर विचार इ. ।
ब्रह्मसंहिता विषय- शारीरिक व्रतकल्पना, नव-व्यूहावतार, पुण्यविधिनिर्णय, चातुर्मास्य व्रतविधान, पवित्रारोहण, जयन्त्यष्टमीव्रत, युगावतारव्रत, मासोपवास, कल्पव्रत, यमपुरीमार्ग, यमदूत, नरकयातना आदि ।
2) यह कृष्णपूजा विषयक ग्रंथ है। इसके 150 अध्यायों में बहुत से उपनिषदों के उद्धरण उद्धृत हैं। इस पर रूपगोस्वामी की दिग्ददर्शिनी टीका है। कुछ विद्वान् जीव गोस्वामी (ई. 16 वीं शती) को ब्रह्मसंहिता के रचयिता मानते हैं। ब्रह्मसंस्कारमंजरी
ले. नारायण ठक्कुर ।
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ब्रह्मसिद्धान्त ( या ब्रह्मसिद्धान्तपद्धति) श्लोक- 5001 विषय- अव्यक्त तत्त्व का निरूपण, उसके गुण, ब्रह्माण्डपिण्ड और उसके गुण, ब्रह्माण्डपिण्ड से शिव की उत्पत्ति । शिव से भैरव, भैरव से श्रीकण्ठ आदि की उत्पत्ति। उनसे पंच तत्त्वरूप प्रकृतिपिण्ड की उत्पत्ति । क्षुधा, तृषा आदि का कथन, अन्तःकरण और उसके गुणों का कथन । सत्त्व, रज, तम, और उनके गुणों का कीर्तन, जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति आदि
अवस्थाओं का निरूपण, इच्छा, क्रिया आदि पांच गुणों का निरूपण, कर्म, काम, चन्द्र, सूर्य, अग्नि- इन पांचों गुणों और कलाओं का कथन ।
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2) ले भुला पंडित ।
ब्रह्मसिद्धिले मंडई. 7 वीं शती (उत्तरार्ध) 2) ले. चित्सुखाचार्य । ई. 13 वीं शती ब्रह्मसूत्रम् - ले. बादरायण व्यास । इसमें लगभग 550 सूत्र है इसे शारीरस्सूत्र या वेदान्तसूत्र भी कहते हैं। भिक्षु या संन्यासी के लिये ये सूत्र बहुत उपयोगी है, इसलिये इन्हें "भिक्षुसूत्र " भी कहते हैं। इसे वेदान्त के सिद्धान्तों का आकरग्रंथ मानते हैं। इसमें 4 अध्याय हैं तथा प्रत्येक अध्याय के 4 पाद हैं। समन्वय नामक प्रथम अध्याय में अनेक प्रकार की श्रुतियों का साक्षात् या परंपरा से अद्वितीय ब्रह्म से तात्पर्य बताया गया है। अविरोध नामक द्वितीय अध्याय में स्मृति - तर्कादि के विरोध का परिहार कर ब्रह्म से अविरोध बताया है। साधन नामक तृतीय अध्याय में जीव तथा ब्रह्म के लक्षणों तथा मुक्ति के अंतर्बाह्य साधनों का निरूपण है। फल नामक चतुर्थ अध्याय में सगुण-निर्गुण विद्याओं के फलों का सांगोपांग विवेचन है। ब्रह्मसूत्र इतने स्वल्पाक्षर हैं कि किसी न किसी भाष्य की सहायता लिये बिना उनका अर्थ स्पष्ट नहीं होता है डा. घाटे ने ब्रह्मसूत्रों के विभिन्न भाष्यों का तौलनिक अध्ययन कर मूल सूत्रों के संभाव्य सिद्धान्तों को स्पष्ट करने का प्रयास किया है। ब्रह्मसूत्रों पर शंकराचार्य, भास्कराचार्य, वल्लभाचार्य, रामानुज, मध्य, निम्बार्क, श्रीकण्ठ आदि आचायों ने भाष्य लिखे हैं । प्रत्येक भाष्यकार के सिद्धान्तों में ही नहीं अपि तु सूत्रों तथा अधिकरणों की संख्या में भी अंतर है। श्री चिंतामण विनायक वैद्य ने ब्रह्मसूत्रों का रचनाकाल ईसा पूर्व सौ डेड सौ वर्ष पूर्व सिद्ध किया है।
भिक्षु ।
ब्रह्मसूत्र भाष्य द्वैत मत के प्रवर्तक मध्वाचार्य ने बासूत्र विषय पर 4 ग्रंथ लिखे। उनमें से प्रथम है ब्रह्मसूत्रभाष्य । इसमें लघ्वक्षर वृत्ति में द्वैत-मत का प्रतिपादन किया गया है। ब्रह्मसूत्रभाष्यविज्ञानामृतम् ले. - विश्वास काशी - निवासी। ई. 14 वीं शती । ब्रह्मसूत्रव्याख्या ले. अनंभट्ट । ब्रह्मसूत्रवैदिकभाष्यम् ले. - स्वामी भगवदाचार्य । भारतपारिजातम् नामक गांधी चरित्र के लेखक । अहमदाबादनिवासी ।
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ब्रह्मस्फुटसिद्धान्त ले. ब्रह्मगुप्त । ई. 6 शती । विषयज्योतिष शास्त्र । व्याख्याकार (1) पृथूदक, (2) अमरराज, और (3) बलभद्र । इस ग्रंथ में पृथ्वी का व्यास 1581 योजन ( 7905 - मील) बताया है। ब्रह्मगुप्त वेधयंत्रों से ग्रहों का निरीक्षण करते थे ।
संस्कृत वाङ्मय कोश ग्रंथ खण्ड / 225