________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
ब्रह्माण्डकल्प इसमें रासायनिक विधि से चांदी बनाना, पारे की विविध औषधियां बनाना एवं अन्यान्य ऐन्द्रजालिक कारनामे प्रतिपादित हैं। शनि या भौम वार को नरमुण्ड (मनुष्य की खोपडी) लावे। उसका चूर्ण बनाकर महीन कपडे से छान कर मिट्टी के चिकने बर्तन में रखे इत्यादि बहुत-सी विचित्र विधियां वर्णित है।
www.kobatirth.org
ब्रह्माण्डज्ञानतन्त्रम् - पार्वती ईश्वर-संवाद रूप। श्लोक- 240। पांच पटलों में पूर्ण विषय ब्रह्मतत्त्व का निरूपण । ब्रह्माण्डनिर्णय: ब्रह्मायामल में उक्त ईश्वर पार्वती संवादरूप । इस में संक्षेपतः सृष्टि की उत्पति का विवरण किया है । ब्रह्माण्डपुराणम् विष्णुपुराण की सूची के अनुसार इस महापुराण का क्रमांक 18 वां (अंतिम) है। देवीभागवत ने इसे 6 वां पुराण माना है। इसकी श्लोकसंख्या- 12 हजार और अध्यावसंख्या 109 है नारदपुराण की विषय-सूची में वायु ने व्यास को इस पुराण का कथन किया, इसलिये "वायवीय" ब्रह्मांड पुराण नाम कहा गया है। कुछ विद्वान् वायुपुराण और ब्रह्मांड पुराण को एक ही मानते हैं। उनके मतानुसार वायुपुराण की संस्कारित आवृत्ति ही ब्रह्मांडपुराण है। डॉ. हाजरा का मत है कि दोनों पुराणों में बिंब - प्रतिबिंब भाव है। दोनों पुराणों में बहुत से श्लोक समान हैं। पार्टिजर व विंटरनित्स ने "ब्रह्माण्ड पुराण" को "वायुपुराण" का प्राचीनतर रूप माना है किंतु वास्तविकता यह नहीं है । "नारदपुराण" के अनुसार वायु ने व्यासजी को इस पुराण का उपदेश दिया था । "ब्रह्मपुराण" के 33 वें से 58 वें अध्यायों तक ब्रह्मांड का विस्तारपूर्वक भौगोलिक वर्णन प्रस्तुत किया गया है। प्रथम खंड में विश्व का विस्तृत रोचक व सांगोपांग भूगोल दिया गया है । तत्पश्चात् जंबुद्वीप व उसके पर्वतों व नदियों का विवरण, 66 वें से 72 वें अध्यायों तक है। इसके अतिरिक्त भद्राश्च केतुमाल, चंद्रद्वीप, किंपुरुषवर्ष, कैलास, शाल्मलीद्वीप, कुशद्वीप, क्रौंचद्वीप, शाकद्वीप व पुष्करद्वीप आदि का विस्तृत विवरण है। इसमें हों, नक्षत्र-मंडलों तथा युगों का भी रोचक वर्णन है। इसके तृतीय पाद में विश्व प्रसिद्ध क्षत्रिय वंशों का जो विवरण प्रस्तुत किया गया है, उसका ऐतिहासिक दृष्टि से महत्त्व माना जाता है। "नारद-पुराण" की विषयसूची से ज्ञात होता है कि "अध्यात्मरामायण", "ब्रह्मांडपुराण" का ही अंश है। किंतु उपलब्ध पुराण में यह नहीं मिलता। "अध्यात्म-रामायण" में वेदान्तदृष्टि से रामचरित्र का वर्णन है। इसके 20 वें अध्याय में कृष्ण के आविर्भाव व उनकी ललित लीला का गान किया गया है। इसमें रामायण की कथा (अध्यात्म रामायण के अंतर्गत) बडे विस्तार के साथ 7 खंडों में वर्णित है। इसमें 21 वें से 27 वें अध्याय तक के 1550 श्लोकों में परशुराम की कथा दी गई है । तदनंतर सगर व भगीरथ द्वारा गंगावतरण की कथा 48 वें से 57 वें अध्याय तक वर्णित है तथा 59
1226 / संस्कृत वाङ्मय कोश ग्रंथ खण्ड
-
वें अध्याय में सूर्य व चंद्रवंशीय राजाओं का वर्णन है। विद्वानों का कहना है कि चार सौ ईस्वी के लगभग "ब्रह्मांडपुराण" का वर्तमान रूप निश्चित हो गया होगा। इसमें "राजाधिराज" नामक राजनीतिक शब्द का प्रयोग देख कर विद्वानों ने इसका काल, गुप्त काल का उत्तरवर्ती या मौखरी राजाओं का समय माना है। महाराष्ट्र क्षेत्र का वर्णन इसमें आत्मीयता से वर्णन हुआ है, इसलिये कुछ विद्वानों का मत है कि यह पुराण नासिक-त्र्यंबक के समीप रचा गया है। इस पुराण में समाविष्ट परंतु स्वतंत्र रूप से प्रचलित हुये निम्नलिखित ग्रंथ हैं : अध्यात्मरामायण, गणेशकवच, तुलसीकवच, हनुमत्कवच, सिद्धलक्ष्मीस्तोत्र, सीतास्तोत्र, ललितासहस्रनाम, सरस्वतीस्तोत्रम् । अनुमान है कि यह पुराण सन् 325 के आसपास रचा गया है। 5 वीं शताब्दी के प्रारंभ में भारतीय ब्राह्मणों ने जावा सुमात्रा ( यवद्वीप) में इस पुराण का प्रचार किया। वहां की स्थानीय कवि भाषा में इसका अनुवाद हुआ है तथा वह आज भी प्रचार में है। मूल पुराण और इस अनुवादित पुराण की तुलना करने से पता चलता है कि दोनों के विषय समान हैं परंतु अनुवाद में भविष्यकालीन राजवंशों के वर्णन जोड़े गये है। ब्रह्मादर्श - ले.- विश्वास भिक्षु । काशी निवासी। ई. 14 वीं शती । ब्रह्मास्त्रपद्धति ले. कृष्णचन्द्र ।
1
ब्रह्मास्त्रपूजनम् - ले. मयूर पण्डित। श्लोक 489 I ब्रह्मास्त्रविद्या दक्षिणामूर्तिसंहिता के अन्तर्गत श्लोक 140 ब्रह्मास्त्रविद्यानित्यपूजा ले- शिवानन्द यति के शिष्य । विषय- बगलामुखी देवी के उपासकों द्वारा पालनीय प्रातः कृत्यों का प्रतिपादन तथा बगलामुखी की पूजा-प्रक्रिया । ब्रह्मास्त्रसहस्त्रनाम श्लोक 181 I
-
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
-
For Private and Personal Use Only
-
ब्रह्मास्त्रसूत्रम् (दीपिका) - ले. शांखायन । सूत्रसंख्या - 145। ब्रह्मोपनिषद् यह यजुर्वेदांतर्गत एक नव्य उपनिषद् है । पिप्पलाद अंगिरस ने शौनक को कथन किया । "प्राणो ह्येष आत्मा" शरीरस्थ प्राण ही सर्वव्यापी आत्मा तत्त्व है, ऐसा इसका प्रतिपाद्य है।
ब्राह्मणम् - यह वैदिक वाङ्मय का एक भाग है। "ब्राह्मण" शब्द का प्रयोग ग्रंथ के अर्थ में होता है तब यह नपुंसकलिंगी होता है। ग्रंथ के अर्थ में "ब्राह्मण" शब्द का प्रयोग प्रथमतः तैत्तिरीय संहिता में (3.7.1.1.) हुआ है। ब्रह्म शब्द वेद अथवा मन्त्र के सामान्य अर्थ में भी वैदिक वाङ्मय में आया है । इसलिये ब्रह्म अर्थात् वेद का ज्ञान जिनसे होता है वे ब्राह्मण ग्रंथ हैं। ब्रह्म शब्द का यज्ञ भी अर्थ है। विविध प्रकार के यज्ञों के कर्मकांड ब्राह्मण ग्रंथों के प्रतिपाद्य हैं। यज्ञों के साथ अनेकविध शास्त्रों की चर्चा इन ग्रंथों में हुई है। वैज्ञानिक, आधिभौतिक तथा आध्यात्मिक विचारों पर प्रकाश डालनेवाले, एक महान् विश्वकोष के रूप में ब्राह्मण ग्रंथों का