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धमकता है। इससे प्रियदर्शिका बेचैन हो उठती है। उसी प्रीतिपथे - कवि- श्रीराम भिकाजी वेलणकर। 25 गीतों का समय विदूषक के साथ भ्रमण करता हुआ राजा उदयन वहां प्रेमविषयक काव्य । देववाणी मंदिर मुंबई 4 द्वारा सन 1985 आ पहुंचता है और लता-कुंज में मंडराने वाले भ्रमरों को में प्रकाशित। दूर भगा देता है। यहीं से उदयन व प्रियदर्शिका में प्रथम प्रीतिविष्णुप्रियम् (रूपक) - ले. यतीन्द्रविमल चौधुरी । प्रेम का बीजवपन होता है। प्रियदर्शिका की सखी उन दोनों प्राच्यवाणी से सन 1958 में, तथा "मंजपा'' में 1961 में को एकाकी छोड कर चली जाती है और वे स्वतंत्रतापूर्वक प्रकाशित। विषय - चैतन्य महाप्रभु की पत्नी विष्णुप्रिया की वार्तालाप करने का अवसर प्राप्त करते हैं। तृतीय अंक में चरितगाथा। अंकसंख्या-ग्यारह है। उदयन व प्रियदर्शिका की परस्पर अनुरागजन्य व्याकुलता का प्रेतप्रदीपिका - ले- गोपीनाथ अग्निहोत्री। दृश्य उपस्थित किया गया है। फिर मनोरंजन के लिये राज-दरबार
प्रेतप्रदीप - ले- कृष्णमित्राचार्य । में वासवदत्ता के विवाह पर आधत रूपक के अभिनय की
प्रेतमंजरी - (या प्रेतपद्धति)- ले. द्यादुमित्र । व्यवस्था की जाती है। इस नाटक में वत्सराज उदयन अपनी भूमिका स्वयं अभिनीत करते हैं, और प्रियदर्शिका (आरण्यका) .
प्रेतमुक्तिदा - ले.- क्षेमराज । वासवदत्ता का अभिनय करती है। यह नाटक केवल दर्शकों
प्रेतश्राद्ध-व्यवस्थाकारिका - ले.- स्मार्तवागीश। के मनोरंजन का साधन न बन कर वास्तविक हो जाती है, प्रेमबन्ध - ले.- प्रेमराज। श्लोक - 1500।
और उदयन व प्रियदर्शिका की प्रीति प्रकट हो जाती है। इस प्रेमरत्नावली - ले.- कृष्णदास कविराज । ई. 15-16 वीं शती। रहस्य को जान कर वासवदत्ता क्रोधित हो उठती है। चतुर्थ प्रेमराज्यम् - ले.- "व्हिकार ऑफ वेकलिल्ड" नामक अंग्रेजी अंक में प्रियदर्शिका रानी वासवदत्ता द्वारा बंदी बनाई जाकर उपन्यास का अनुवाद। ले. रंगाचार्य । तंजौर-निवासी। कारागृह में डाल दी जाती है। इसी बीच रानी की माता का
प्रेमविजयम् (नाटक)- ले.- सुन्दरेश शर्मा प्रकाशित । एक पत्र प्राप्त होता है कि उसके मौसा दृढवर्मा, कलिंग-नरेश
अंकसंख्या-सात । प्रधान रस- शृंगार। कथावस्तु कल्पित। प्राकृत के यहां बंदी हैं। यह जान कर रानी दुखी होती है पर उसी
का अभाव। संस्कृत एकेडमी द्वारा अभिनीत । कथासारसमय राजा उदयन वहां आकर उसे बतलाते हैं कि उन्होंने
मगधनरेश प्रतापरुद्र का रक्षक हेमचन्द्र विदेह से युद्ध कर दृढवर्मा की मुक्ति हेतु अपनी सेना कलिंग भेज दी है। इसी
अपने राज्य की रक्षा करता है। राजा से वह पुरस्कृत होता बीच विजयसेन कलिंग-नरेश को परास्त कर दृढवर्मा कंचुकी
___ है। यह देख सेनापति दुर्मति को ईर्ष्या होती है। वह छद्म के साथ प्रवेश करता है और कंचुकी राजा उदयन को बधाई
से उसको मारना चाहता है परंतु असफल रहता है। राजकुमारी देता है। राजकुमारी प्रियदर्शिका के न पाये जाने पर वह
हेमचन्द्र पर मोहित होती है। हेमचन्द्र दुर्मति का वध करता अपना दुख भी व्यक्त करता है। तभी यह सूचना प्राप्त होती
है परंतु राजकन्या से प्रेम करने पर राजा उसे बन्दी बनाता है कि आरण्यका (प्रियदर्शिका) ने विष-पान कर लिया है।
है। कुछ दिनों बाद शत्रु का विध्वंस करने हेतु उसे मुक्त वह शीघ्र ही रानी द्वारा राजा के पास लायी जाती है, क्यों
किया जाता है। विजय पाने के उपहार स्वयं राजा उसे कन्यादान कि मंत्रोपचार द्वारा राजा को विष का प्रभाव दूर करना ज्ञात
करता है। है। मृतप्राय आरण्यका को वहां लाये जाते ही कंचुकी उसे
प्रेमेन्दुसागर - कवि - रूपगोस्वामी। कृष्णभक्तिकाव्य। 16 वीं पहचान लेता है और घोषित करता है कि वह उसके स्वामी
शती। दृढवर्मा की पुत्री प्रियदर्शिका है। मंत्रोपचार से प्रियदर्शिका
प्रेयसीस्मृति - शेक्सपीयर के सॉनेट क्रमांक 29 का अनुवाद । स्वस्थ हो जाती है। तब रानी वासवदत्ता प्रसन्न होकर उसका हाथ राजा के हाथ में दे देती है। भरतवाक्य के पश्चात् नाटक
अनुवादक हैं महालिंगशास्त्री । की समाप्ति होती है। इस नाटिका में श्रृंगाररस की प्रधानता
प्रोद्गीथागम - शंकर-पार्वती संवादरूप। विषय - दक्षिण है और इसका नायक राजा उदयन धीर-ललित है।
कालिका के दक्षिणत्व और शिवारूढत्व का निरूपण। उग्रतारा, __प्रियदर्शिका में चार अर्थोपक्षेपक हैं। इनमें एक विष्कम्भक,
त्रिपुरा आदि की उत्पत्ति । कालिका का महाविद्यात्व । पूजाविधि, ।
भुवनेश्वरी आदि महाविद्याओं का निरूपण, गुरुक्रमनिरूपण । 2 प्रवेशक और 1 चूलिका है।
प्रचंडचण्डिका के बीजमन्त्र, पूजन आदि का निरूपण, पोडशाक्षर प्रियदर्शिप्रशस्तय - ले. म. म. रामावतार शर्मा । काशी-निवासी।
आदि मन्त्रों का निरूपण।। यह अशोकस्तम्भों के पाली लेखों का संस्कृत सटीक संस्करण है।
प्रौढमताब्जमार्तण्ड - (या कालनिर्णयसंग्रह) ले.-प्रतापरुद्रदेव । प्रियप्रेमोन्माद - ले- प्रज्ञाचक्षु गुलाबराव महाराज।
प्रौढमनोरमा - ले.- भट्टोजी दीक्षित। उन्हीं के सिद्धान्तकौमुदी प्रीतिकुसुमांजलि - (संकलित काव्यसंग्रह)- काशी के कतिपय
नामक नव्यव्याकरण विषयक ग्रंथ की प्रसिद्ध टीका। इसमें पण्डितों द्वारा रानी व्हिक्टोरिया की स्तुति में रचित काव्यों का संग्रह।
प्रक्रिया-कौमुदी (रामचन्द्रकृत) तथा उसकी टीकाओं का स्थान
212 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड
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