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स्थान पर खण्डन किया है। लेखक ने “यथोत्तरं मुनीनां प्रामाण्यम्'' पर विशेष बल दिया है। प्राचीन ग्रंथकारों के समान इसने पूर्वसूरिओं का मत दिग्दर्शन नहीं किया। इसकी टीका के बाद वह प्रथा ही बन्द हो गई। प्रौढमनोरमा पर भट्टोजी के पौत्र हरि दीक्षित ने "बृहच्छन्दरल" और "लघुशन्दर" नाम की दो व्याख्याएं लिखी हैं लघुशब्द पर अनेक वैयाकरणों को टीकाएं है। जगन्नाथ पण्डितराज ने मनोरमाकुचमर्दन नामक टीकाद्वारा प्रौढमनोरमा का खंडन किया है। फक्किकाप्रकाश ले. इन्द्रदत्त उपाध्याय । यह वैयाकरण सिद्धान्तकौमुदी की टीका है।
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फिट्सूत्राणि ले. शंतनु फिट् अर्थात् प्रातिपदिक। प्रातिपदिक अर्थात् अर्थवत् किंतु अधातु तथा अप्रत्यय वर्ण-समूह । इन प्रातिपदिकों के स्वाभाविक उदात्त, अनुदात्त एवं स्वरित स्वर बताने हेतु इन सूत्रों की रचना की गई है। इनकी संख्या केवल 87 है, और उन्हें अंतोदात्त, आद्युदात्त, द्वितीयोदात्त व पर्यायोदात्त नामक 4 पादों में विभाजित किया गया है। पतंजलि ने अपने महाभाष्य में इन सूत्रों का आधार लिया है। अतः शंतनु का काल ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी से भी प्राचीन निश्चित होता है ये सूत्र पाणिनि के भी पहले के होने चाहिये ऐसा मत सिद्धान्तकौमुदी के वैदिक प्रकरण पर सुबोधिनी नामक टीकाग्रंथ के लेखक ने अंकित किया है। फिट् सूत्रकार शंतनु की परंपरा पाणिनि से भिन्न प्रतीत होती है। सामान्यतः लोग समझते हैं कि उदात्तादि स्वर केवल वेदों में ही होते हैं, लौकिक भाषा में नहीं किन्तु यह बात फिट्सूत्रकार नहीं मानते। लौकिक भाषा में भी प्रत्येक शब्द को स्वर होता है। ऐसा वे कहते हैं । रचना, अर्थभेद के कारण लौकिक भाषा में भी प्रत्येक शब्द को स्वर होता है ऐसा वे कहते हैं । उदाहरणार्थ अर्जुन शब्द का एक अर्थ घास होता है । अतः उस अर्थ में वह अंतोदात्त होगा तथा वृक्षादि के अर्थ में आद्युदात्त । कृष्ण शब्द मृगवाचक हो, तब वह अंतोदान्त व विशेषनाम हो तब विकल्प से अंतोदात्त अर्थात् एक बार आनुदान भी होगा। ऐसे अनेक शब्दों की स्वयक चर्चा फिट्सूत्र में आई है।
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बकदूतम् ले. म. म. बगलाक्रम - कल्पवल्ली तीन स्तबकों में पूर्ण विषय बगलामुखी की पूजा-प्रक्रिया। बगलापंचांगम् - श्लोक बगलापटनम् - इसमें संक्षेपतः बगलामुखी की पूजाप्रक्रिया प्रदर्शित है। इसका निर्माण कृष्णानन्द रचित तन्त्रसार के आधार पर माना जाता है।
लगभग 145 1
बगलामुखी
श्लोक
अजितनाथ न्यायरत्न ।
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ले. अनन्तदेव । रेणुकापुरवासी । उपासक के प्रातः कृत्यों के साथ
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500 1
बगलामुखी पंचांगम् रुद्रयामलान्तर्गत श्लोक 2567 बगलामुखीपद्धति से अनन्तदेव श्लोक 8821 बगलामुखी-पूजापद्धति श्लोक 400 I बगला - रहस्यम् श्लोक 600|
1248 I
बगलाचनपदी - ले. राघवानन्दनाथ । श्लोक 400 | बघेलवंशवर्णनम् - ले रूपमणिमिश्र । सन् 1957 में विंध्य संस्कृत विश्व परिषद् द्वारा प्रकाशित । बटुक पंचांग-प्रयोगद्धति - श्लोक बटुकपूजनपद्धति ले. रामभट्ट । श्लोक बटुकपूजापद्धति ले. बालम्भट्ट । श्लोक बटुकदीपदान प्रयोग भी सम्मिलित है। बटुकभैरवतचम् श्लोक 1255 - बटुकभैरव पंचांगम् रुद्रयामलान्तर्गत, श्लोक 362 बटुकभैरव - पुरश्चरणविधि उदण्डमाहेश्वरतन्त्रान्तर्गत श्लोक
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236 I
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बटुकभैरव-बकारादि-सहखनाम रुद्रयामलतन्त्रान्तर्गत देवी - हर संवादरूप ।
ले. - रमानाथ । श्लोक - 60001 ले. श्रीनिवास । श्लोक
बटुकभास्कर बटुकार्चनचन्द्रिका बटुकार्चनदीपिका - ले.- काशीनाथ। श्लोक बटुकार्बनपद्धति (नामान्तर भैरवार्चन चन्द्रिका) बालंभट्ट । श्लोक
1500 I
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146 I
205 | इस में
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विश्वसारोद्धार में
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बटुकार्चनसंग्रह ले. बालंभट्ट । पितामह भट्ट दिवाकर । पिता रामभट्ट 8 अर्चनों (अध्यायों) संपूर्ण विषय बटुकभैरव की पूजा का विस्तार से वर्णन, तान्त्रिक नित्य होम, भस्मसाधन, स्तोत्र, कवच, सहस्रनाम के समग्र आवर्तन पर विचार, दिशा-नियम, शान्ति आदि काम्य कर्मों में पूजाविधान इ. । बटुकोपनिषद् अथर्ववेद से संबंधित गद्य-पद्यात्मक एक नव्य उपनिषद् | शिव का ही दूसरा नाम है बटुक । इसमें ब्रह्मा, विष्णु, इंद्र आदि सभी देवताओं को शिव अर्थात् बटुक के रूप मान कर उनकी वंदना करने के लिये मंत्र दिये गये हैं भस्म में पंचमहाभूतों की शक्ति प्रतीक रूप से रहती है तथा उसके धारण से मुक्ति मिलती है, इस प्रकार भस्मधारण का महत्त्व इसमें बतलाया गया है।
बटुदैवत्यम् (तन्त्र) ले. नारायण। पिता यज्ञ । श्लोक 4940 24 पटलों में पूर्ण विषय विविध देवताओं की पूजाविधि । बद्धयोनिमहामुद्राकथनम् - तोंडलतन्त्र के अन्तर्गत । शिव-पार्वती संवादरूप । यह तोंडल तन्त्र का 3 रा और 4 था पटल ही है। बभ्रुवाहनचम्पू ले कुन्तुकडूण ताम्बरन्। कांगनूर (केरल) निवासी) ।
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ले. -
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संस्कृत वाङ्मय कोश ग्रंथ खण्ड / 213