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फिर शैव सत्यकाम का (5) वां प्रश्न था- "जो व्यक्ति प्राणांत तक प्रणव का ध्यान करता है, वह ध्यान के कारण किस लोक में जाता है। श्री. पिप्पलाद का उत्तर - "ओंकार रूपी ब्रह्म उभयविध होता है- पर व अपर। अतः संबंधित व्यक्ति जिस प्रकार के ब्रह्म का ध्यान करता है, उसी की ओर वह जाता है। जो व्यक्ति तीनों ही मात्राओं से युक्त ओंकार का ध्यान करता है, वह स्थिर चित्त होकर ज्ञानी बनता है और ब्रह्मलोक को जाता है। ___ अंत में सुकेश भारद्वाज ने अपना (6 वां) प्रश्न प्रस्तुत किया- “षोडशकलात्मक पुरुष कहां रहता है"।
इस प्रश्न का उत्तर देते हुए पिप्पलाद ऋषी ने बताया"षोडशकलात्मक पुरुष मानव-शरीर के अंतर्भाग में रहता है। उसकी 16 कलाएं, उसी की ओर जाने वाली हैं। वे कलाएं उस पुरुष तक पहुंचने पर उससे एकरूप होती है ऐसा ज्ञानी जन कहते हैं। प्रश्नोत्तरोपासकाचार - ले- सकलकीर्ति । जैनाचार्य। ई. 14 वीं शती। 24 परिच्छेद। पिता- कर्णसिंह । माता- शोभा। प्रसंगलीलार्णव - (काव्य) ले- घनश्याम । ई. 18 वीं शती। प्रसन्नकाश्यपम् (रूपक) - ले- जग्गू श्रीबकुलभूषण। सन 1951 में प्रकाशित । अंकसंख्या- तीन । कथावस्तु कल्पित । शाकुन्तल के बाद की घटनाएं चित्रित हैं। कथासार– राजा दुष्यन्त, कण्वाश्रम में शकुन्तला एवं भरत के साथ पधारते हैं। वहां अनसूया, प्रियंवदा, गौतमी, कण्व आदि से भेंट होती है। कण्व प्रसन्न होकर सब को आशीर्वाद देते हैं। प्रसन्नपदा - ले- चन्द्रकीर्ति। शून्यवादी नागार्जुनकृत माध्यमिककारिका पर प्रसिद्ध टीका। गंभीर विषय का सरस एवं प्रसादयुक्त विवेचन इसमें है। विषय- बौद्धदर्शन। प्रसन्न-प्रसादम् (रूपक) - ले- डा. रमा चौधरी (श, 20)। बंगाली गायक रामप्रसाद की जीवनगाथा इस में चित्रित है। उनके गीतों को संस्कृत रूप दिया गया है। दृश्यसंख्या- दस । प्रसन्नमाधवम् - ले- गंगाधरशास्त्री मंगरुलकर । नागपुर निवासी। प्रसन्नराघवम् (नाटक) - ले- जयदेव। इस नाटक की रचना 7 अंकों में हुई है और इसका कथानक रामायण पर आधृत है। जयदेव ने मूल कथा में नाट्य कौशल्य के प्रदर्शनार्थ अनेक परिवर्तन किये हैं व प्रथम 4 अंकों में बालकांड की ही कथा का वर्णन किया है। प्रथम अंक में मंजीरक व नुपूरक नामक बंदीजनों के द्वारा सीतास्वयंवर का वर्णन किया गया है। इस अंक में रावण व बाणासुर अपने-अपने बल की प्रशंसा करते हए व परस्पर संघर्ष करते हुए प्रदर्शित किये गये हैं। द्वितीय अंक में जनक की वाटिका में पुष्पावचय करते हुए राम व सीता के प्रथम दर्शन का वर्णन किया गया है। तृतीय अंक में विश्वामित्र के साथ राम
व लक्ष्मण के स्वयंवर-मंडप में आने का वर्णन है। विश्वामित्र राजा जनक को राम-लक्ष्मण का परिचय देते हैं और राजा जनक उनकी सुंदरता पर मुग्ध होकर अपनी प्रतिज्ञा के लिये मन-ही-मन दुखी होते हैं। विश्वामित्र का आदेश प्राप्त कर राम शिव-धनुष्य को तोड डालते हैं। चतुर्थ अंक में परशुराम का आगमन व राम के साथ उनके वाग्युद्ध का वर्णन है। पंचम अंक में गंगा, यमुना व सरयू के संवाद द्वारा राम-गमन व दशरथ की मृत्यु की घटनाएं सूचित की जाती हैं। हंस नामक पात्र ने सीता-हरण तक की घटनाओं को सुनाया है। षष्ठ अंक में विरही राम का अत्यंत मार्मिक चित्र उपस्थित किया गया है। हनुमान का लंका जाना व लंका-दहन की घटना का वर्णन इसी अंक में है। शोकाकुल सीता दिखाई पडती है और उनके मन में इस प्रकार का भाव है कि, राम को उनके चरित्र के संबंध में शंका तो नहीं है, या राम का उनके प्रति अनुराग तो नहीं नष्ट हो गया है। उसी समय रावण आता है और सीता के प्रति प्रेम प्रकट करता है। सीता उससे घृणा करती है। रावण उन्हें कृपाण से मारने के लिये दौडता है। उसी समय उसके हनुमान् द्वारा मारे गये
अपने पुत्र अक्षय का सिर दिखाई पडता है। सीता हताश होकर चिता में स्वयं को भस्म कर देना चाहती है, पर अंगारे मोती के रूप में परिणत हो जाते हैं। हनुमान् द्वारा राम की अंगूठी गिराने की घटना का भी वर्णन किया गया है। हनुमान् प्रकट होकर सीता को राम के एकपत्नी-व्रत का समाचार सुनाते हैं जिससे सीता को संतोष होता है। सप्तम अध्याय में प्रहस्त द्वारा रावण को एक चित्र दिखाया जाता है जिसे माल्यवान् ने भेजा है। इस चित्र में शत्रु के आक्रमण व सेतु-बंधन का दृश्य चित्रित है पर रावण उसे कोरी कल्पना मान कर उस पर ध्यान नहीं देता। कवि ने विद्याधर व विद्याधरी के संवाद के रूप में युद्ध का वर्णन किया है। अंततः रावण सपरिवार मारा जाता है। नाटक के अंत में राम, लक्ष्मण, सीता, बिभीषण व सुग्रीव के द्वारा बारी-बारी से सूर्यास्त व चंद्रोदय का वर्णन कराया गया है। "प्रसन्न-राघव", हिन्दी अनुवाद सहित, चौखंबा से प्रकाशित हो चुका है। इस नाटक पर (1) लक्ष्मीधर, (2) वेंकटार्य, (3) रघुनंदन, (4) लक्ष्मण, (5) नरसिंह की टीकाएं हैं। प्रसन्नराघव में कुल इकतीस अर्थोपक्षेपक हैं। इनमें 3 विष्कम्भक, प्रवेशक और 27 चूलिकाएं
प्रसन्नरामायणम् - कवि- देवर दीक्षित। पिता- श्रीपाद । प्रसन्नहनुमन्नाटकम् - ले- विश्वेश्वर दयाल चिकित्सा-चूडामणि । (ई. 20 वीं) । इटावा से प्रकाशित । रामकथा पर आधारित । प्रसादस्तव - ले- रामभद्र दीक्षित। कुम्भकोणं निवासी। ई. 17 वीं शती। प्रस्तार-चिन्तामणि - ले- चिन्तामणि ज्योतिर्विद् । ई.स. 1680
208 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड
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