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में रचित । 3 अध्याय । विषय छंदः शास्त्र । इस पर दैवज्ञ की गद्य टीका है। विषय- वर्णप्रस्तार, मात्राप्रस्तार तथा खण्डप्रस्तार । प्रस्तारपतन ले- कृष्णदेव ।
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प्रस्तावरत्नाकर ले- हरिदास । पिता- पुरुषोत्तम । आश्रयदातागदापत्तन के अधिपति वीरसिंह । रचना- 1557-8 में विषयनीति, ज्योतिषशास्त्र आदि विषयों के पद्य । प्रस्तारशेखर ले- श्रीनिवास । पिता- वेंकट ।
प्रस्थानभेद - ले- मधुसूदन सरस्वती । काटोलपाडा के (बंगाल) निवासी। ई. 16 वीं शती । वेदान्तविषयक ग्रंथ । प्रस्थानरत्नाकर ले पुरुषोत्तम पुष्टिमार्गी विद्वान् । विषय- न्यायशास्त्र |
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हस्तिका ले गंगाधरभट्ट यह "दुर्जन मुख-पेटिका" नामक एक लघु-कलेवर ग्रंथ की विस्तृत व्याख्या है। पुष्पिका में व्याख्याकार पंडित कन्हैयालाल, गंगाधर भट्ट के पुत्र निर्दिष्ट किये गये हैं। वल्लभ संप्रदाय के मूर्धन्य ग्रंथ भागवत की महापुराणता के विषय में प्रस्तुत किये जाने वाले संदेहों का निरसन करने वाली मूल 'चपेटिका' तो लघु है, किन्तु उसकी प्रस्तुत व्याख्या में विषय का प्रतिपादन बडे विस्तार के साथ किया गया है।
प्रह्लादचंपू (या नृसिंहचंपू) ले- केशवभट्ट । रचनाकाल - 1684 ई. । इस चंपू - काव्य के 6 स्तबकों में नृसिंहावतार की कथा का वर्णन है। यह एक साधारण कोटि की रचना है। और इसमें भ्रमवश प्रह्लाद के पिता को उत्तानपाद कहा गया । इस चंपू-काव्य का प्रकाशन, कृष्णाजी गणपत प्रेस, मुंबई से 1909 ई. में हो चुका है। संपादक हैं हरिहर प्रसाद भागवत । प्रह्लादचरितम् ले नयकान्त
प्रह्लादविजयम् - ले- कथानाथ ।
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प्रह्लाद विनोदनम् (रूपक) ले- नित्यानंद (श. 20) विषय- भक्त प्रह्लाद का चरित्र । अंकसंख्या- पांच । प्राकृत एवं अर्थोपक्षेपक का अभाव इसमें है ।
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प्राकृत-पिंगल
ले- पिंगल मुनि । समय- ई. 14-15 शताब्दियों का मध्य ।
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प्राकृतमणिदीप (नाटक) ले अप्पय्य दीक्षित (तृतीय) ई. 17 वीं शती । प्राकृतव्याकरणम् ले- समन्तभद्र जैनाचार्य । ई. प्रथम शती, अन्तिम भाग पिता शान्ति वर्मा ।
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प्राकृतव्याकरणम् ले पं. हषीकेश भट्टाचार्य अंग्रेजी अनुवादसहित प्रकाशित।
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प्राचीनज्योतिषाचार्यवर्णनम् - ले- बापूदेव शास्त्री । प्राचीनवैष्णवसुधा (पत्रिका) कार्यालय कांचीवरम् 1913 में प्रकाशन।
प्राच्यकठ
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यह कृष्णयजुर्वेद की लुप्त शाखा है। प्राच्यप्रभा (रूपक) ले- गंगाधर कविराज। ई. 20 वीं शती । अग्निपुराण के "अलंकार खण्ड" पर आधारित रचना । प्राणतोषणी - ले- प्राणकृष्ण विश्वास। सहकारी ले. रामतोषण शर्मा । विषय- सब तंत्रों का सार । सहयोगी तथा निर्मातादोनों के नामों के आद्यन्त अक्षरों से ग्रंथ का नामकरण हुआ है। प्राणपणा ले पुरुषोत्तम (ई. 11 वीं शती) पतंजलि के महाभाष्य पर लघुवृत्ति ।
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प्राणाग्निहोत्रम् ईश्वर- कार्तिकेय संवादरूप योगपरक तंत्रग्रंथ । प्राणाग्निहोत्रोपनिषद् - यजुर्वेद से संबंधित एक नव्य उपनिषद् । इसके चार खंड हैं। प्रथम खंड प्रारंभ में शरीर यज्ञ को समस्त उपनिषदों का सार बताते हुए कहा गया है कि शरीर-यज्ञ किया जाने पर अग्निहोत्र की आवश्यकता नहीं रहती। पश्चात् अग्नि की महत्ता का वर्णन है। अन्न, द्विपाद व चतुष्पाद प्राणियों को बल प्रदान करता है। उसे शुद्ध करने के लिये ईशान की प्रार्थना करनी होती है। शरीररस्थ प्राण ही अग्नि है । इस अग्नि को अन्न की आहुति देने के पहले, जल का प्राशन करते हुए सभी पापों को धो डालना होता है। उसी प्रकार पंचप्राणों को आसनस्थ करने हेतु आपोशन के जल का (भोजन के पूर्व आचमन का) उपयोग करना होता है । द्वितीय खंड में अग्नि की स्तुति है। भोजन करते समय मनुष्य वस्तुतः अग्निहोत्र ही किया करता है। मानव के शरीर में सूर्याग्नि, दर्शनाग्नि, कोष्ठाग्नि नाभि-प्रदेश में होती हैं। वह गार्हपत्याग्नि का प्रतीक है। वहीं चतुर्विध अन्न को पचाती है।
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तृतीय खंड में 37 प्रश्न उपस्थित किये गए हैं और चतुर्थ खंड में उनके उत्तर दिये गये हैं। उन उत्तरों के द्वारा आत्म-यज्ञ का ही वर्णन किया गया है। उनमें आत्मा को यजमान, वेदों को ऋत्विज, अहंकार को अध्वर्यु, ओंकार को यूप, काम को पशु, त्याग को दक्षिणा व मरण को अवभृथस्त्रान बताया गया है। अंत में कहा गया है कि प्राणाग्निहोत्र के इस तत्त्व को जानने वाला मुक्त हो जाता है ।
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प्रातः पूजाविधि ले नरोत्तमदास चैतन्य संप्रदाय के अनुयायियों के लिए।
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प्रभावतम् (नाटक) ले रघुनाथ सूरि (18 वीं शती)। रंगनाथ यात्रोत्सव में अभिनीत शृंगारप्रधान अंकसंख्या सात प्रामाण्यभंग ले अनन्तकीर्ति जैनाचार्य । ई. 8-9 वीं शती । प्रामाण्यवाददीधिति (टीका) ले- गदाधर भट्टाचार्य । प्रायश्चित्तम् - ले- अकलंकदेव । (2) नाटक । ले- रामनाथ मिश्र रचनाकाल- सन 1952 में । कथावस्तु उत्पाद्य । अंकसंख्या पांच । नायिका प्रधान नाटक । संभवतः सन 1961 में प्रकाशित । कथासार किसी निराश्रित बालिका को एक किसान आश्रय देकर उसका पालन पोषण करता है। राजा
संस्कृत वाङ्मय कोश ग्रंथ खण्ड / 209
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