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प्रमाणशास्त्रन्यायप्रवेश (या प्रमाणशास्त्र)- ले. दिङ्नाग।। प्रयोगचन्द्रिका - ले. वीरराघव। विषय- धर्मशास्त्र । ई.5 वीं शती। तिब्बती तथा चीनी अनुवाद ही सुरक्षित है। प्रयोगचन्द्रिका - ले. सीताराम के भाई । श्रीनिवास के शिष्य। प्रमाणसंग्रह (सवृत्ति) - ले. अकलंक देव। जैनाचार्य। ई. प्रयोगचन्द्रिका - 18 खंडों में। पुंसवन से श्राद्ध तक के 8 वीं शती।
संस्कारों का वर्णन। इसमें आपस्तम्ब गृह्य का अनुसरण है। प्रमाणसंग्रहभाष्यम् - ले. अनन्तवीर्य। जैनाचार्य। ई. 10-11 कण्ठभूषण, पंचाग्निकारिका, जयन्तकारिका, कपर्दिकारिका, वीं शती।
दशनिर्णय, वामकारिका, सुधीविलोचन, स्मृतिरत्नाकर इन ग्रंथों प्रमाणसमुच्चय - ले. दिङ्नाग। शुद्ध संस्कृत अनुष्टुप् छन्द का इसमें यत्र तत्र उल्लेख है। में रचित यह महत्त्वपूर्ण रचना, आज केवल तिब्बती अनुवाद प्रयोगचिन्तामणि (रामकल्पद्रुम का भाग)- ले. अनन्तभट्ट। से ज्ञात है। 6 परिच्छेदों में प्रत्यक्ष, स्वार्थानुमान, परार्थानुमान, प्रयोगचूडामणि - विषय- स्वस्तिक, पुण्याहवाचन, गृहयज्ञ, हेतु-दृष्टान्त, अपोह, जाति आदि न्यायशास्त्र के सर्व सिद्धान्त
स्थालीपाक, दुष्टरजोदर्शनशान्ति, गर्भाधान, सीमान्तोन्नयन, षष्ठीपूजा, प्रतिपादित हैं। तिब्बती अनुवाद के लेखक हैं पं. हेमवर्मा।
नामकरण, चौल, उपनयन, विवाह आदि का विवरण। प्रमाणसमुच्चयवृत्ति - ले. दिङ्नाग। प्रमाणसमुच्चय की
प्रमेयतत्त्वम् - ले. रघुनाथ। पिता- भानुजी। गोत्र- शांडिल्य । लेखककृत टीका केवल तिब्बती अनुवाद में प्राप्य है। 25 तत्त्वों (अध्यायों) मे विभक्त । विषय- सामान्य धार्मिक कृत्य । प्रमाणसुंदर - ले. पद्मसुंदर। प्रमाणादर्श - ले. शुक्लेश्वर ।
प्रयोगतिलक - ले.वीरराघव। प्रमाप्रमेयम् - ले. भावसेन त्रैविद्य । जैनाचार्य । ई. 13 वीं शती।
प्रयोगदर्पण - 1) ले.नारायण। वायम्भट्ट के पुत्र। विषयप्रमिताक्षरा - ले. नंदपंडित। ई. 16-17 वीं शती।
ऋग्वेद विधि के अनुसार गृह्य कृत्य। उज्ज्वला (हरदत्त कृत)
हेमाद्रि, चण्डेश्वर, श्रीधर, स्मृतिरत्नावलि के नाम इसमें उल्लखित प्रमुदितगोविन्दम् (रूपक) - ले. सदाशिव। ई. अठारहवीं हैं। 1400 ई. के उपरान्त यह रचना हुई. है। शती। धारकोटे नरेश की राजसभा में अभिनीत। वैष्णव मत 2) ले. रमानाथ विद्यावाचस्पति। 3) ले. वैदिकसार्वभौम । के प्रचार हेतु रचित। अंकसंख्या -सात। प्रधान रस शृङ्गार । 4) ले. वीरराघव। 5) ले. पद्मनाभ दीक्षित। पिता नारायण । वीर रस से संवलित। दीर्घ नाट्यसंकेत। कीर्तनिया नाटकों विषय- देवप्रतिष्ठा, मंडपपूजा, तोरण आदि। की शैली। विषय- समुद्र मंथन की कथा।
प्रयोगदीप - ले.दयाशंकर (शांखायन गृह्य के लिए)। प्रमेयकमलमार्तण्ड (परीक्षामुख व्याख्या)- ले. प्रभाचन्द्र।
प्रयोगदीपिका- ले.मंचनाचार्य। 2) ले. रामकृष्ण । जैनाचार्य। समय- दो मान्यताएं 1) ई. 8 वीं शती या 2)
प्रयोगपद्धति - 1) ले.गंगाधर (बोधायनीय) । 2) झिंगय्यकोविद 11 वीं शती।
पिता- पैल्ल मंचनाचार्य। इस प्रयोगपद्धति का अपरनाम प्रमेयरत्नाकरालंकार - ले. अभिनव-चारुकीर्ति। जैनाचार्य।
शिंगाभट्टीयं है। 3) ले. दामोदर गार्ग्य। इस ग्रंथ का अपरनाम प्रमेयरत्नमाला - ले. लघु-अनंतवीर्य । ई. 11 वीं शती। यह संस्कारपद्धति है। ग्रंथ पारस्कर गृह्य के अनुसार है। एक टीका ग्रंथ है।
___4) ले. रधुनाथ। पिता- रुद्रभट्ट अयाचित । प्रस्तावतरंगिणी - ले. चारुदेवशास्त्री। दिल्लीनिवासी।
5) ले. हरिहर। दो कांडों में विभक्त। प्रयागकौस्तुभ - ले. गणेश पाठक।
प्रयोगपद्धति- सुबोधिनी - ले.शिवराम । प्रयागधर्मप्रकाश - सन 1875 में पं. शिवराखन के संपादकत्व प्रयोगपारिजात - ले.नृसिंह। कौण्डिन्य गोत्रीय एवं कर्नाटक में प्रयाग में इस मासिक पत्र का प्रकाशन प्रारंभ हुआ। के निवासी। इसमें संस्कार, पाकयज्ञ, आधान, आह्रिक, कालान्तर से इसका प्रकाशन रूडकी से होने लगा। यह गोत्रप्रवरनिर्णय पर पांच काण्ड हैं। संस्कार का भाग निर्णय धार्मिक पत्रिका है।
सागर प्रेस में मुद्रित (1916)। 25 संस्कारों का उल्लेख। प्रयागपत्रिका - प्रयाग से 1895 में प्रकाशित संस्कृत -हिंदी कालदीप, कालप्रदीप, कालदीपभाष्य, क्रियासार, फलप्रदीप, की इस मासिक पत्रिका का सम्पादन जगन्नाथ शर्मा करते थे। विध्यादर्श, विधिरत्न, श्रीधरीय, स्मृतिभास्कर का उल्लेख है। इसमें स्वामी दयानंद सरस्वती के सिद्धान्तों का विवेचन, हेमाद्रि एवं माधव की आलोचना है। 1360 ई. एवं 1435 धर्मसंबंन्धी प्रश्नोत्तर तथा धार्मिक कृत्यों संबंधी जानकारी प्रकाशित ई. के बीच में प्रणीत। 2) ले. पुरुषोत्तम भट्ट। देवराजार्य होती है।
के पुत्र। 3) ले. रघुनाथ वाजपेथी। प्रयुक्ताख्यातमंजरी - ले. कविसारंग। विषय- आख्यातों का प्रयोगप्रदीप- ले. शिवप्रसाद । अर्थबोध।
प्रयोगमंजरी- ले.श्रीरवि। पिता - अष्टमूर्ति। श्लोक- 1950।
संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड / 205
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