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सन 1905 में पुणे से प्रकाशित । गुरुकुल कांगडी के पुस्तकालय में प्राप्य । तत्त्वज्ञान तथा भक्ति हेतु लिखित । प्राकृत का अभाव, सन्धि, सन्ध्यङ्ग, कार्यावस्था आदि की सोई योजना इसमें नहीं है।
कथासार - राजा पुष्पसेन अमरेश्वर को जीत कर छोड देता है। उसकी मृत्यु के पश्चात् उसकी गर्भवती पत्नी कलावती अमरेश्वर की शरण में जाती है। पुष्पसेन का सचिव दुष्टबुद्धि उसे मारना चाहता है, परंतु अमरेश्वर उसे बचा लेता है। उसे मृत पुत्र उत्पन्न होता है, किन्तु पुष्पसेन के गुरु सुधन्वा उसे जीवित करते हैं। अन्त में दृष्टबुद्धि को मारकर वह राज्यसिंहासन पर बैठता है। पुष्पांजलिव्रतपूजा - ले.शुभचन्द्र। जैनाचार्य। ई. 16-17 वीं शती। 2) ले. श्रुतसागरसूरि। जैनाचार्य। ई. 16 वीं शती। 3) ले. ब्रह्मजिनदास। जैनाचार्य। ई. 15-16 वीं शती। पूजनप्रयोगसंग्रह - ले.शिव। श्लोक- 3951 ई. 18-19 वीं शती। पूजनमालिका - ले. भवानीप्रसाद । पूतनाविधानम् -- कमलाकर के शान्तिरत्न में जो विषय वर्णित है, प्रायः वही इसमें प्रतिपादित है। इसमें बालकों मे उत्पात करने वाली पूतना की झाडफूंक का वर्णन है। पूजादीपिका - ले.गोस्वामी सर्वेश्वरदेव । श्लोक- 738.1 पूजापद्धति - ले. नवानन्दनाथ। श्लोक 4501 विषय- आरंभ में उपासक के दैनिक कृत्य और भगवान् कृष्ण की तांत्रिक पूजा । पूजापद्धति - ( या पद्यमाला) ले.जयतीर्थ । आनन्दतीर्थ के शिष्य।
2) ले. रामचन्द्रभट्ट । विष्णुभट्ट शेजवलकर के पुत्र ।
ले. आनन्दतीर्थ । पिता- जनार्दन। पूजाप्रकाश - ले.मित्रमिश्र। यह लेखक के वीरमित्रोदय का अंश है। पूजाप्रदीप - ले. देवनाथ ठक्कुर । पिता- गोविन्द ठक्कुर । पूजापुष्करिणी - ले. चन्द्रशेखर शर्मा। वीथी नामक सात अध्यायों मे पूर्ण। पूजारत्नाकर - ले.चंडेश्वर ठक्कुर । मिथिला नरेश के सन्धि
और विग्रह के मंत्री। श्लोक- 2732। विषय- साधारणतः देवपूजा के देश आदि का विचार, मण्डल, बलिदान आदि की विधि, पुष्प चुनने की विधि, देवी और मण्डप का निर्माण, नैवेद्य का निर्माण, सूर्यपूजा का फल, पूजाधिकारी के नियम, सूर्यमन्दिर का परिष्कार करने का फल इ.।। पूजाविधि (सपाविधि)- ले.रामचन्द्र। श्लोक- 300 । पूर्णकाम (रूपक) ले. ऋद्धिनाथ झा (श. 20)। रचना और अभिनय उमानाथ के पौत्र रत्नानाथ के जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में। दरभंगा से 1960 में प्रकाशित। अनेक दृश्यों
में विभाजित। दीर्घ मंचनिर्देश, मैथिली नाट्य-पद्धति, सुबोध भाषा, गीतों का प्राचुर्य और आध्यात्मिक गौरव की चर्चा यह इसकी विशेषताएं हैं। कथासार-नायक पूर्णकाम की तपस्या भंग करने हेतु इन्द्र, काम, वसन्त तथा अप्सराओं की नियुक्ति करता है। पूर्णकाम अविचल देखकर, मातलि के द्वारा इन्द्र उसे स्वर्ग से बुला लेता है। वहां भी मन्दाकिनी के तट पर तपस्या करके वह विष्णुलोक पाता है। पूर्णचन्द्र - ले.रिपुंजय। विषय- प्रायश्चित्त । पूर्णाज्योति - ले.स्वामी पूर्णानन्द हषीकेश। विषय- मानव जाति के कल्याणार्थ वैराग्य, भक्ति तथा योग का पुरस्कार। पूर्णदीक्षापद्धति - पारानन्दतन्त्र के अन्तर्गत। श्लोक 400 । पूर्णपुरुषार्थचन्द्रोदयम् - ले.जयदेव । ई. 18 वीं शती। इसमें दशाश्वराजा का (दस इन्द्रियों का निग्रह कर्ता आत्मा) आनन्दवल्ली से समागम, सुश्रद्धा तथा सुभक्ति द्वारा घटित दिखाया है। विकार रूपी राक्षस पराभूत होता है। पूर्णयोगसूत्राणि - ले.प्रा. अम्बालाल पुराणी। अरविन्दाश्रम के संस्कृत पण्डित । इसमें योगिराज अरविन्द का तत्त्वज्ञान संगृहीत है। पूर्णानन्दम् - ले.विद्याधर शास्त्री। रचना 1945 में। भक्त पूरनमल की कथा। इसमें आधुनिक जीवनपद्धति की पतनोन्मुखता प्रदर्शित है। अंकसंख्या- पांच । पूर्णानन्दचक्रनिरूपण-टीका - ले.रामवल्लभ शर्मा। वत्सपुरवासी। श्लोक - 750। यह पूर्णानन्द विरचित, मूलाधार प्रभृति योगशास्त्रोक्त छह चक्रों का निरूपण करने वाले "चक्रनिरूपण'"नामक ग्रंथ की व्याख्या । पूर्णानन्दचरितम् - ले.श्री शेवालकर शास्त्री। इस में 19 वीं शताब्दी के, प्रसिद्ध वैदर्भीय साधु, श्रीपूर्णानंद स्वामी का चरित्र, 50 अध्यायों में वर्णित है! लेखक ने इस काव्य का मराठी अनुवाद भी स्वयं ही किया है। पूर्णाभिषेक - पारानन्दतन्त्र के अन्तर्गत। श्लोक- 250 । पूर्णाभिषेकदीपिका - ले.आनन्दनाथ। पिता- अर्घकालीयवंशी रामनाथ । श्लोक- 2000 | विषय- कलिकाल में आगममोक्तपूजा का विधान, चार आश्रमों के कुलाचार का पूर्णाभिषेक, विभिन्न प्रकार के अभिषेक, गुरुनिर्णय, कुलधर्म-प्रशंसा, कौलिकलक्षण, कौलिक ज्ञान की प्रशंसा, कौलपूजा का फल, गृहस्थ कौल का लक्षण, दिव्य और वीर पूजा का कालनिर्णय, योगानुष्ठान, कामकला-निर्णय, तत्त्वज्ञाननिर्णय, कौलों के कम्बल आदि आसनों का वर्णन, कौल योगिरहस्य, माला-निर्णय, कलि में पश्वाचार का अभाव, दिव्य और वीरों के पुरश्चरण का विधान इ.। पूर्णाभिषेकपद्धति - ले. अनन्तभट्ट तथा मुरारिभट्ट । श्लोक 150 । पूर्णाहुति (दृश्यकाव्य)- ले.पं. कृष्णप्रसाद शर्मा घिमिरे । काठमांडु (नेपाल) के निवासी। 20 वीं शती के एक श्रेष्ठ संस्कृत साहित्योपासक हैं। आपके श्रीकृष्णचरितामृत महाकाव्य
196/ संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड
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